‘भारतीय संविधान में नागरिकों के अधिकार और कर्त्तव्य’ संगोष्ठी में एडवोकेट बबीता झा का दमदार संंबोधन

हैदराबाद (सरिता सुराणा की रिपोर्ट) : विश्व भाषा अकादमी, भारत की तेलंगाना इकाई के तत्वावधान में हाल ही में कार्यकारिणी समिति की मासिक गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। यह गोष्ठी दो सत्रों में आयोजित की गई। प्रथम सत्र में ‘भारतीय संविधान में नागरिकों के अधिकार और कर्त्तव्य’ विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया।

सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली की एडवोकेट और सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती बबीता झा इस गोष्ठी में विशेष वक्ता के रूप में मंचासीन थीं। तेलंगाना इकाई की अध्यक्ष श्रीमती सरिता सुराणा ने सभी अतिथियों और कार्यकारिणी सदस्यों का स्वागत किया। श्रीमती हर्षलता दुधोड़िया की सरस्वती वन्दना से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। उसके बाद हाल ही में दिवंगत सीडीएस जनरल विपिन रावत और उनकी पत्नी मधुलिका रावत एवं अन्य अफसरों और जवानों के आकस्मिक निधन पर दो मिनट का मौन रखकर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई।

तत्पश्चात् अध्यक्ष ने अकादमी की गतिविधियों के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्रदान की। उन्होंने कहा कि यह वर्ष हमारी आज़ादी का अमृत महोत्सव वर्ष है इसीलिए हमें हमारे अधिकारों और कर्तव्यों की जानकारी होनी चाहिए और इसीलिए हमारी आज की गोष्ठी इसी विषय पर केन्द्रित है। हमारे संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 12 से लेकर 35 तक अधिकारों का विस्तृत विवरण दिया गया है। प्रारम्भ में संविधान में 7 मौलिक अधिकार थे लेकिन 44वें संवैधानिक संशोधन 1978 के तहत ‘संपत्ति के अधिकार’ को हटा दिया गया और अब हमें 6 मौलिक अधिकार प्राप्त हैं।

बबीता झा ने अपने वक्तव्य में कहा कि जिस तरह से हवा बहते हुए हमें नजर नहीं आती और सहज सुलभ है तब हम उसका महत्त्व नहीं पहचानते लेकिन जब हमें वह नहीं मिलती और सांस लेने में तकलीफ़ होती है तब उसका महत्त्व पता चलता है, ठीक उसी तरह मौलिक अधिकार जो हमें सहज रूप से प्राप्त हैं उनका हनन होने पर ही उनका महत्त्व पता चलता है।

उन्होंने संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान की। उन्होंने कहा कि अभी हमें समानता, स्वतंत्रता, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार तथा संवैधानिक उपचार का अधिकार प्राप्त हैं। लेकिन उनके साथ-साथ कुछ कर्त्तव्य भी हैं और राज्यों के लिए नीति निर्देशक तत्वों का प्रावधान रखा गया है। आपातकालीन स्थिति में हमारे अधिकारों पर सरकार अंकुश लगा सकती है, जैसा प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के शासन काल में हुआ था। स्वतंत्रता का अधिकार सदैव विवादों के घेरे में रहा है। हमें एक-दूसरे की स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए।

उन्होंने आर्या झा के प्रश्नों का जवाब देते हुए कहा कि अब संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है, केवल कानूनी अधिकार है। सरकार चाहे तो सार्वजनिक निर्माण कार्यों के लिए देश हित में आपकी संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है लेकिन बिना वजह उसे ऐसा करने का अधिकार नहीं है। भूमि अधिग्रहण कानून के तहत उसे आपको मुआवजा देना पड़ेगा। सभी सदस्यों ने इस परिचर्चा को बहुत ही सार्थक और सारगर्भित बताया। अध्यक्ष ने इस विषय पर महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने के लिए मुख्य वक्ता और सभी सहभागियों का हार्दिक आभार व्यक्त किया और इसके साथ ही प्रथम सत्र समाप्त हो गया।

द्वितीय सत्र में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें उपस्थित सदस्यों ने विभिन्न रसों से परिपूर्ण रचनाओं का पाठ किया। इसमें श्रीमती भावना पुरोहित, डॉ.संगीता जी.शर्मा, श्रीमती आर्या झा, श्रीमती हर्षलता दुधोड़िया और श्री प्रदीप देवीशरण भट्ट ने काव्य पाठ किया। कटक, उड़ीसा से विशेष अतिथि के रूप में श्रीमती रिमझिम झा ने भाग लिया और अपनी रचना का पाठ किया। सरिता सुराणा ने अध्यक्षीय काव्य पाठ किया। श्रीमती हर्षलता दुधोड़िया ने कुशलतापूर्वक गोष्ठी का संचालन किया। भावना पुरोहित के धन्यवाद ज्ञापन के साथ गोष्ठी सम्पन्न हुई।

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