“पत्रकारिता और लेखन के मजबूत स्तम्भ थे माखनलाल चतुर्वेदी”

हैदराबाद (सरिता सुराणाकी रिपोर्ट): विश्व भाषा अकादमी, भारत की तेलंगाना इकाई और सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, भारत (हैदराबाद) के संयुक्त तत्वावधान में 24 वीं मासिक गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन रविवार को किया गया। अध्यक्ष सरिता सुराणा ने दोनों संस्थाओं की ओर से सभी अतिथियों और सहभागियों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया और हैदराबाद के प्रसिद्ध साहित्यकार दर्शन सिंह को प्रथम सत्र की अध्यक्षता करने हेतु मंच पर सादर आमंत्रित किया। श्रीमती रिमझिम झा की सरस्वती वन्दना से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ।

माखनलाल चतुर्वेदी जी का रचना संसार’

तत्पश्चात् प्रथम सत्र के लिए प्रदत्त विषय- ‘माखनलाल चतुर्वेदी जी का रचना संसार’ पर अपने विचार रखते हुए सरिता सुराणा ने कहा कि माखनलाल चतुर्वेदी जी का जन्म 4 अप्रैल 1889 को मध्य-प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बावई ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम नन्दलाल चतुर्वेदी था। प्रारम्भिक शिक्षा के पश्चात इन्होंने घर पर ही संस्कृत, बांग्ला, गुजराती और अंग्रेजी भाषाओं का अध्ययन किया और कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया। उनकी प्रसिद्धि एक कवि के रूप में ज्यादा है लेकिन वे बहुत अच्छे पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी भी थे। गांधीजी के असहयोग आन्दोलन में भाग लेकर गिरफ्तारी देने वाले वे पहले व्यक्ति थे। उनकी रचनाएं देशभक्ति और राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत हैं। उन्हें सन् 1943 में ‘हिम किरीटनी’ के लिए उस समय के सर्वोच्च सम्मान ‘देव पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।

‘पुष्प की अभिलाषा’

उन्होंने कहा कि साल 1954 में ‘हिम तरंगिनी’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार और सन् 1963 में भारत सरकार द्वारा ‘पद्म भूषण’ सम्मान से अलंकृत किया गया। लेकिन 10 सितम्बर 1967 को राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक के विरोध स्वरूप उन्होंने वह अलंकरण लौटा दिया। कटक, उड़ीसा से विशेष वक्ता रिमझिम झा ने कहा कि उन्हें माखनलाल चतुर्वेदी जी की कविता- ‘पुष्प की अभिलाषा’ को विद्यार्थियों को पढ़ाना बहुत अच्छा लगता है। जब एक पुष्प अपने आपको वीरों को समर्पित करना चाहता है तो एक इंसान अपने निजी स्वार्थ के लिए दूसरों की गुलामी कैसे सहन कर सकता है? इसी बात को आगे बढ़ाते हुए रांची, झारखण्ड से ऐश्वर्यदा मिश्रा ने कहा कि अगर पृथ्वीराज चौहान के समय ही जयचन्द ने गद्दारी नहीं की होती तो आज भारत का इतिहास कुछ और ही होता। माखनलाल चतुर्वेदी जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीयता की भावना को जागृत किया।

अध्यक्षीय टिप्पणी

अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए प्रसिद्ध कवि दर्शन सिंह ने माखनलाल चतुर्वेदी जी की दो रचनाओं- पुष्प की अभिलाषा और अमर राष्ट्र पर विस्तार से प्रकाश डाला और उस समय के स्वतंत्रता सेनानियों के विषय में बहुत से अनजान तथ्यों से अवगत कराया। उन्होंने सभी वक्ताओं के वक्तव्य की प्रशंसा की और कहा कि ऐसे देशभक्त कवियों के त्याग और बलिदान स्वरूप आज हम आजादी की खुली हवा में सांस ले रहे हैं। परिचर्चा सत्र बहुत ही सार्थक और सारगर्भित रहा।

दूसरा सत्र

दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। कोलकाता से वरिष्ठ कवयित्री एवं गीतकार श्रीमती विद्या भण्डारी ने इस काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता की। ऐश्वर्यदा मिश्रा ने अपने चिरपरिचित अंदाज में अपना व्यंग्य प्रस्तुत किया तो रिमझिम झा ने मां की महिमा पर अपनी रचना प्रस्तुत करके वाहवाही बटोरी। कोलकाता से श्रीमती सुशीला चनानी और श्रीमती हिम्मत जी चौरड़िया ने छन्दबद्ध रचनाएं, दोहे और माहिया सुनाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। जयपुर, राजस्थान से श्री चन्द्र प्रकाश दायमा व हैदराबाद से श्री दर्शन सिंह ने अपनी-अपनी रचनाएं प्रस्तुत करके सभी को भावविभोर कर दिया।

एक से बढ़कर एक रचना

सरिता सुराणा ने इस दौरान पुस्तकें अनमोल धरोहर हैं रचना का पाठ किया। अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए विद्या भण्डारी ने अवसर पर होती जो मैं खजूर का पेड़, रहती तनकर खड़ी जैसी सारगर्भित रचना के माध्यम से बहुत सुन्दर सन्देश दिया और बहुत-सी अन्य रचनाओं के पाठ से वातावरण को आनन्ददायक बना दिया। उन्होंने सभी सहभागियों की रचनाओं के बारे में टिप्पणी देते हुए कहा कि सभी की रचनाएं एक से बढ़कर एक थीं। ऑनलाइन काव्य गोष्ठियों के माध्यम से हमें बहुत कुछ नया सीखने को मिला है, साथ ही देश और विदेश के बहुत से नए साहित्यकारों से परिचय भी हुआ है। सीखने की प्रक्रिया निरन्तर जारी रहती है।

रिमझिम झा के धन्यवाद ज्ञापन

इस दौरान फेसबुक पर हजारों महिलाओं ने अपने मन की बात को सबके सामने रखने का प्रयास किया है, जो बहुत ही प्रशंसनीय है। श्रीमती भावना पुरोहित और के राजन्ना भी गोष्ठी में उपस्थित थे। सरिता सुराणा ने सभी अतिथियों और सहभागियों का हार्दिक आभार व्यक्त किया। रिमझिम झा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

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