कई मायनो में टोक्यो ओलिंपिक-2020 में भारत को मिली सफलता भविष्य में भी सफलताओं की बुनियाद रखता हुआ प्रतीत हो रहा है। टोक्यो ओलिंपिक कई सारे पहलुओं में भारत के लिए ऐतिहासिक रहा है। यह अलग बात है कि पदक तालिका में भारत सात पदकों के साथ 48वें स्थान पर रहा है। यह अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा है। फिर भी भारत के लिए आगामी ओलिंपिक में पदकों की सम्भावी दावेदारों के चेहरे अब साफ़ दिखते नज़र आ रहे हैं।
भारत को गोल्ड मेडल दिलाने वाले प्रतिभाशाली एथलीट नीरज चोपड़ा भाग्यशाली रहे है। 16 साल की उम्र में ही एक अच्छे कोच द्वारा उनकी प्रतिभा को भांप ली गयी थी। भारत में अधिकांशत एथलीटों को तब तक देखभाल नहीं मिलती, जब तक कि वे पहले से ही अपने प्रतिभा को एक विशिष्ट स्तर तक नहीं पहुंचाते हैं।
देश को नीरज चोपड़ा, मीराबाई चानू, लवलीना बोरगोहेन, रवि दहिया, पीवी सिंधु, बजरंग पुनिया और पुरुष हॉकी टीम के साथ-साथ दूसरे खिलाडियों के शानदार प्रयासों को भी याद रखना महत्वपूर्ण है।
ओलंपिक में भाग लेने वाली भारत की पहली तलवारबाज भवानी देवी, ओलिंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय महिला नाविक नेथरा कुमानन, दुनिया की सर्वश्रेष्ठ महिला गोल्फरों से भरे मैदान में सिर्फ एक शॉट से पोडियम फिनिश करने से चूक जाने वाली अदिति अशोक और भारतीय महिला हॉकी टीम जिन्होंने पदक के लिए एड़ी चोटी का दम लगाया है, इन सभी खिलाड़ियों ने आगामी ओलिंपिक के लिए भारत के लिए एक आशा किरण जगाई है। यह खिलाड़ी भविष्य में होने वाले खेल प्रतियोगिता/प्रतिस्पर्थाओं के लिए देश के लिए आशा की किरण है।
एक स्वागत योग्य बदलाव का प्रतीक है कि जहां महिलाएं अपने भविष्य को चमकाने के लिए सामाजिक बाधाओं को पार करती दिख रही है। टोक्यो ओलंपिक भारत को पदक का कम मिलना सही प्रकार के वातावरण में उचित प्रशिक्षण की कमी को भी दिखाता है। हाल ही में किया गया भारत के खेल संचालन निकायों का फैसला भी स्वागत योग्य है। जिसमे निकायों ने बिना किसी हस्तक्षेप के किसी एथलीट को अपने कोच और प्रशिक्षण का आधार चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता की दी है।
अब बुनियादी ढांचे का निर्माण करके अपने खेल के लिए एक व्यापक आधार बनाने में देर नहीं होनी चाहिए। एक सही व्यवस्था अधिकतम संभावित खेल प्रेमी युवाओं के पहुंच में होनी ही चाहिए। हमें नहीं भूलना चाहिए कि देश की पहली तलवारबाज भवानी देवी ने तलवारबाजी कमोबेश छोड़ ही दी थी। क्योंकि भारत में इस खेल की लगभग कोई उपस्थिति नहीं है। यह समझ में आता है कि बाड़ लगाने की सांस्कृतिक जड़ें यूरोप में पाई जाती हैं और यह महंगी भी है। लेकिन हमारे पास खिलाडियों के लिए पर्याप्त रनिंग ट्रैक, एस्ट्रोटर्फ्स, कुश्ती के लिए मैट, पंचिंग बैग, भाला क्यों नहीं हैं? इन सवालों के उत्तर हमें जल्द तलाशने होंगे।
भविष्य की संभावनाओं को ज़िंदा रखने के लिए आने वाले सालों हमें अपनी इन कमियों को दूर करना ही होगा। प्रशिक्षित और अनुशासित खिलाडी के साथ आगामी सफलता न सिर्फ पेरिस बल्कि आनेवाले ओलम्पिक में भी देश को अवश्य गौरान्वित करेगा। ऐसी उम्मीद हमारे खिलाड़ी और सरकार से की जा सकती है।
ओलंपिक 2020 के तहत कुल 33 प्रतिस्पर्धाएं आयोजित हुईं। जिनके लिए कुल 42 स्थानों पर 339 अलग-अलग मैच आयोजित किये गये। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि टोक्यो ओलंपिक इस साल का खेलों का सबसे बड़ा आकर्षण रहा है। इन खेलों में भारत ने भी 126 एथलीटों वाला दल यहां भेजा था। जब से भारत ने ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेना शुरू किया है, तब से यह ओलंपिक इतिहास में भारत का सबसे बड़ा दल भी रहा है।
भारत के अलावा टोक्यो ओलंपिक खेलों में कुल 205 देशों ने हिस्सा लिया। संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) ने इन खेलों के लिए अपने 630 खिलाड़ियों को वहां भेजा था। इस लिहाज से अमेरिका ओलंपिक 2020 में सबसे ज्यादा खिलाड़ी भेजने वाला देश था। अमेरिका 39 गोल्ड मेडल समेत कुल 113 पदक जीतकर पहले स्थान पर रहा। चीन 38 गोल्ड समेत 88 पदक जीतने के साथ दूसरे स्थान पर रहा है। भारत 7 पदकों के साथ 48वें स्थान पर रहा है।
-अमृता श्रीवास्तव बेंगलुरु की कलस से…