विश्लेषानात्मक लेख : तेलंगाना में तीन पार्टियों की लड़ाई ऐसी होती जा रही हैं दिलचस्प, यह है रणनीति

देश भर में हर आम चुनाव में कई राज्य महत्वपूर्ण प्रदेश बन जाते हैं। 2019 में पश्चिम बंगाल एक गंभीर राज्य बन गया था। बंगाल में मुख्य रूप से दो राष्ट्रीय पार्टियां हैं। वो हैं- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और वामपंथी दल। ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) एक क्षेत्रीय पार्टी है। 2019 के संसदीय चुनावों में बंगाल ने 42 लोकसभा क्षेत्रों में से 18 एमपी सीटें जीतकर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था।

इसी क्रम में आम चुनाव के मद्देनजर देशभर की राजनीतिक को तेलंगाना आकर्षित कर रहा है। देश के लिए तेलंगाना महत्वपूर्ण राज्य बनता जा रहा है। कांग्रेस पार्टी ने केसीआर के नेतृत्व वाली बीआरएस को तगड़ा झटका देकर एक रिकॉर्ड बनाया है। पहली बार कांग्रेस पार्टी ने सत्ता में मौजूद किसी क्षेत्रीय पार्टी को हराया है और राज्य सरकार पर कब्ज़ा किया है। दूसरी ओर बीजेपी भी निर्णायक हो गई है। भारत में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। तेलंगाना में 2024 के चुनावों के नतीजे अनेक परिणामों को जन्म देने की संभावना है।

कांग्रेस की हवा

2023 में तेलंगाना में कांग्रेस की जीत ने राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस पार्टी को बड़ा बढ़ावा दिया है। कांग्रेस को उम्मीद है कि 2024 के संसदीय चुनावों में अच्छे परिणाम मिलेंगे और तेलंगाना में स्थिरता हासिल करेगी। साथ ही सांसदों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि करके कांग्रेस पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर उच्चता स्थापित कर सकती है।

स्कोर बढ़ाने जुटी है बीजेपी

2018 और 2023 के बीच बीजेपी ने तेलंगाना में आगे बढ़ने और जीतने के लिए साहसिक प्रयास किए। लेकिन बीजेपी अपेक्षित नतीजे हासिल करने में नाकाम रही है। 2023 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव में बीजेपी सिर्फ 8 विधायकों के साथ तीसरे स्थान पर रही है। हालाँकि, सौभाग्य से बीजेपी 14 फीसदी वोट शेयर हासिल करने में सफल रही है। अब चार सीटों से और अधिक सीटे जीतने पर ध्यान केंद्रीत किया है। देखते हैं ये कैसे पूरे होते हैं।

अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है बीआरएस

केसीआर की बीआरएस पार्टी ने करीब 10 साल तक तेलंगाना पर शासन किया। इसी क्रम में केसीआर को राष्ट्रीय स्तर पर एक राजनीतिक नेता के रूप में पहचान मिली है। लेकिन 2023 में बीआरएस की हार ने केसीआर को राजनीतिक तौर पर नुकसान पहुंचाया। अब यह दिलचस्प हो गया है कि क्या केसीआर पार्टी के अस्तित्व के लिए कुछ सांसद जिता पाएंगे या फिर केसीआर की पार्टी और खराब प्रदर्शन करेगी।

राजनीतिक मुद्दें

कांग्रेस पार्टी चुनाव से पहले जनता से किए गए सभी आश्वासनों को पूरा करने की पूरी कोशिश कर रही है। लेकिन अहम सवाल यह है कि क्या वे वादे तेलंगाना के लोगों के लिए कांग्रेस को और अधिक सांसद देने के लिए पर्याप्त हैं या नहीं। सवाल उठ रहे हैं कि क्या तेलंगाना के लोग केसीआर को वोट देंगे जो बीआरएस पार्टी की साख बचाने में जुटे है या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्राथमिकता देंगे जिन्हें पूरे देश में वाह-वाही लूट रहे है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यह चुनाव तेलंगाना कांग्रेस और नेताओं के लिए एक चुनौती बन गई हैं। बीआरएस नेताओं पर जीत हासिल करके कांग्रेस पार्टी मजबूत हुई है।

दूसरी ओर, कांग्रेस पार्टी ने कई मौजूदा बीआरएस सांसदों को पार्टी में शामिल किया और उन्हें टिकट दिया है। सभी स्तरों के नेताओं को भी पार्टी में आमंत्रित किया है। बीआरएस के नेताओं को पार्टी में शामिल करना कांग्रेस की मुख्य राजनीतिक रणनीति रही है। हालाँकि, इससे वास्तव में मूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं को बहुत दुख पहुंचाया है। क्योंकि नये नेताओं को भारी कार्यभार सौंपने के कारण वे पार्टी में पीछे रह गये हैं।

ऐसे में अगर रेवंत रेड्डी बड़ी संख्या में सांसद नहीं जीत पाए तो संभावना है कि ये कार्यकर्ता विद्रोह कर देंगे। कई दलबदलुओं के कारण तेलंगाना कांग्रेस में राजनीतिक अस्थिरता का खतरा झेलते आया है। कांग्रेस पार्टी ने बीआरएस के मुस्लिम वोटों को कम करने के लिए एआईएमआईएम के अध्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी के साथ खुलेआम गठबंधन किया है। शक्तिशाली बीआरएस या कांग्रेस उम्मीदवार को मुस्लीम समुदाय वोट देंगे जो भाजपा को हरा सकते हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प हो गया है कि क्या कांग्रेस को मुस्लिम वोट मिल पाते हैं या नहीं।

क्या केसीआर अपनी पार्टी बचा पाएंगे?

ऐतिहासिक रूप से केसीआर का बड़ा फायदा यह है कि कोई भी क्षेत्रीय पार्टी हार के बाद भी गायब नहीं हुई है। क्षेत्रीय दलों के लिए चुनाव हारने पर भी अपनी स्थानीय वर्चस्व खोना आसान नहीं है। केसीआर की पार्टी के सामने बेटी कविता के शराब घोटाले के कारण जेल में होने जैसी चुनौतियां हैं। इससे केसीआर की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है। केसीआर को पार्टी में नेतृत्व के लिए खुलापन रखना होगा ताकि कार्यकर्ता खुश रहें। केसीआर की बीआरएस पार्टी बच सकती हैं, लेकिन इसमें तेजी से बदलाव होना चाहिए। जीवन और राजनीति में सौ फीसदी सटीक भविष्यवाणियां मुश्किल होती हैं।

आलाकमान ने रेवंत रेड्डी को दी खुली छूट

मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने कांग्रेस आलाकमान को किसी को भी पार्टी में शामिल करने की छूट दे दी है। उम्मीदवारों के चयन में रेवंत की राय को प्राथमिकता दी जाती है। कांग्रेस आलाकमान को पार्टी की ओर से सांसदों को जिताना रेवंत की जिम्मेदारी है। कांग्रेस नेतृत्व को उम्मीद है कि सीएम रेवंत रेड्डी ऐसा करने में सफल होंगे। इस बीच, केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी मुख्य रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा पर निर्भर है।

दोनों प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं हैं

तेलंगाना के पूर्व सीएम केसीआर और न ही वर्तमान मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं हैं। 2019 में बीजेपी के जीते चार सांसदों से ज्यादा सीटें जीतना चाहिए. यदि यह संख्या कम हो जाती है, तो इसका मतलब है कि तेलंगाना भाजपा नेतृत्व विफल हो गया है। बीजेपी कई बाहरी नेताओं को भी शामिल कर रही है। लेकिन यहां सत्ता में नहीं होने से कांग्रेस से बीजेपी पिछे है।

कठिन परिस्थिति में बीआरएस

सत्ता गंवा चुकी केसीआर की बीआरएस पार्टी को आम चुनाव के मद्देनजर मुश्किल हालात का सामना करना पड़ रहा है। केसीआर की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं अब पूरी तरह से ठप हो गई हैं। संभावना है कि केसीआर बीआरएस को बदलकर टीआरएस कर सकते है। बीआरएस ने दो को छोड़कर बाकी सभी सांसद खो दिये है। वर्तमान में बीआरएस विधायक बड़ी संख्या में दलबदल नहीं कर सकते हैं। क्योंकि उन्हें एक साथ दलबदल करने के लिए बहुमत की आवश्यकता होती है। विधायक यह इंतजार कर रहे हैं कि 2024 का संसदीय चुनाव कैसे होते हैं और नतीजे कैसे आते हैं। अजीब बात है कि कांग्रेस मुख्य रूप से केवल केसीआर की बीआरएस पार्टी पर हमला कर रही है, बीजेपी पर नहीं।

– डॉ पेंटपाटी पुल्लाराव, राजनीतिक विश्लेषक (26 मार्च 2024 के V6 Velugu से साभार)

తెలంగాణలో ఆసక్తికరంగా మారుతున్న మూడు పార్టీల పోరాటం

దేశవ్యాప్తంగా జరిగే ప్రతి సార్వత్రిక ఎన్నికల్లోనూ పలు రాష్ట్రాలు క్లిష్టమైన రాష్ట్రాలుగా మారతాయి. 2019లో పశ్చిమ బెంగాల్ క్లిష్టమైన రాష్ట్రంగా మారింది. బెంగాల్‌‌‌‌లో ప్రధానంగా రెండు జాతీయ పార్టీలు ఉన్నాయి. అవి భారతీయ జనతా పార్టీ (బీజేపీ), లెఫ్ట్ పార్టీలు. మమతా బెనర్జీ సారథ్యంలోని అధికార తృణమూల్​ కాంగ్రెస్ (టీఎంసీ)​ ప్రాంతీయ పార్టీగా ఉంది. 2019 పార్లమెంట్ ఎన్నికల్లో బెంగాల్‌‌‌‌లో 42 లోక్​సభ నియోజకవర్గాల్లో 18 ఎంపీ స్థానాలను కైవసం చేసుకుని ఆశ్చర్యానికి గురిచేసింది.

సార్వత్రిక ఎన్నికల నేపథ్యంలో తెలంగాణ దేశ వ్యాప్తంగా రాజకీయంగా ఆకర్షిస్తున్నది. దేశమంతా గమనించాల్సిన కీలక రాష్ట్రంగా మారుతున్నది. కేసీఆర్​ సారథ్యంలోని బీఆర్ఎస్​కు ఒక గొప్ప షాక్‌‌‌‌ ఇచ్చిన కాంగ్రెస్​ పార్టీ రికార్డు సృష్టించింది. మొదటిసారిగా కాంగ్రెస్ పార్టీ అధికారంలో ఉన్న ఒక ప్రాంతీయ పార్టీని ఓడించి రాష్ట్ర ప్రభుత్వాన్ని కైవసం చేసుకుంది. మరోవైపు బీజేపీ కూడా కీలకంగా మారింది. భారతదేశంలో గతంలో ఎన్నడూ ఇలా జరగలేదు. తెలంగాణలో 2024 ఎన్నికల ఫలితాలు అనేక పరిణామాలకు దోహదం కానున్నాయి.

కాంగ్రెస్ హవా

2023లో తెలంగాణాలో కాంగ్రెస్ విజయం సాధించడం వల్ల జాతీయ స్థాయిలో కాంగ్రెస్ పార్టీకు పెద్ద ఊపు వచ్చింది. 2024 పార్లమెంట్ ఎన్నికల్లో గొప్ప ఫలితాలు సాధించి తెలంగాణలో సుస్థిరత సాధించాలని, గణనీయంగా ఎంపీలను పెంచుకోవడం ద్వారా జాతీయస్థాయిలో కాంగ్రెస్ పార్టీని ఉన్నత స్థాయిలో నిలబెట్టవచ్చని కాంగ్రెస్ ఆశిస్తోంది.

స్కోరు ఆరాటంలో బీజేపీ

2018 నుంచి 2023 మధ్య కాలంలో తెలంగాణలో ఎదగడానికి, గెలవడానికి బీజేపీ సాహసోపేతమైన ప్రయత్నాలు చేసింది. అయితే బీజేపీ ఆశించిన ఫలితాలను సాధించడంలో విఫలమైంది. 2023లో జరిగిన తెలంగాణ అసెంబ్లీ ఎన్నికలలో బీజీపీ కేవలం 8 మంది ఎమ్మెల్యేలతో మూడవ స్థానంలో నిలిచింది. అయితే, అదృష్టవశాత్తు బీజేపీకి 14% ఓట్లు వాటా పొందగలిగింది. ఇపుడు ఆ పార్టీ ఆరాటమంతా 4 స్థానాల నుంచి స్కోరు మరింత పెంచుకోవాలనే. అది ఏమేరకు నెరవేరుతుందో చూడాలి.

మనుగడ కోసం బీఆర్​ఎస్​ పోరాటం

కేసీఆర్ పార్టీ దాదాపు 10 ఏండ్లు తెలంగాణను పాలించింది. ఈక్రమంలో కేసీఆర్ జాతీయస్థాయిలో రాజకీయనేతగా గుర్తింపు పొందాడు. కానీ, 2023లో బీఆర్​ఎస్​ ఓటమి కేసీఆర్‌‌‌‌ను రాజకీయంగా దెబ్బతీసింది. ఇప్పుడు కేసీఆర్ పార్టీ మనుగడ కోసం కొంతమంది ఎంపీలనైనా గెలిపించుకుంటారా లేక కేసీఆర్ పార్టీ మరింత దిగజారిపోతుందా అనేది ఆసక్తికరంగా మారింది.

రాజకీయ అంశాలు

కాంగ్రెస్ పార్టీ ఎన్నికల ముందు ప్రజలకు ఇచ్చిన హామీలన్నీ అమలు చేసేందుకు అన్ని ప్రయత్నాలు చేస్తోంది. అయితే తెలంగాణ ప్రజలు కాంగ్రెస్‌‌‌‌కు ఎక్కువ మంది ఎంపీలను ఇచ్చేందుకు ఆ హామీలు సరిపోతాయా లేదా అనేది కీలక ప్రశ్న. తెలంగాణ ప్రజానీకం కూడా బీఆర్ఎస్​ పార్టీని కాపాడే కేసీఆర్‌‌‌‌కు ఓటేస్తుందా లేక దేశవ్యాప్తంగా అధికశాతం మన్నన పొందిన ప్రధాని నరేంద్ర మోదీకి ప్రాధాన్యత ఇస్తుందా అనే ప్రశ్నలు తలెత్తుతున్నాయి. ఈ ఎన్నికలు తెలంగాణ కాంగ్రెస్‌‌‌‌కు, నాయకులకు సవాల్‌‌‌‌గా నిలిచాయంటే అతిశయోక్తి కాదు. కాంగ్రెస్ పార్టీ బీఆర్​ఎస్​ నేతలపై గెలుపొంది బలోపేతమైంది.

మరోవైపు కాంగ్రెస్ చాలామంది సిట్టింగ్ బీఆర్​ఎస్​ ఎంపీలను పార్టీలో చేర్చుకుని వారికి టిక్కెట్లు ఇచ్చింది. అన్ని స్థాయిలలో నాయకులను కూడా ఆహ్వానించింది. బీఆర్‌‌‌‌ఎస్‌‌‌‌ నుంచి నేతలను దిగుమతి చేసుకోవడం కాంగ్రెస్‌‌‌‌ ప్రధాన రాజకీయ వ్యూహం. అయితే, వాస్తవానికి ఇది అసలైన కాంగ్రెస్ కార్యకర్త లకు తీవ్ర బాధను కలిగించింది, ఎందుకంటే కొత్తవారికి పెద్దపీట వేయడంతో వారు పార్టీలో వెనుకపడ్డారు.

ఈ నేపథ్యంలో రేవంత్ రెడ్డి గణనీయ సంఖ్యలో ఎంపీలను గెలిపించుకోలేకపోతే ఈ కార్యకర్తలు తిరుగుబాటు చేసే అవకాశం ఉంది. చాలామంది ఫిరాయింపుదారులతో తెలంగాణ కాంగ్రెస్ రాజకీయ అస్థిరతకు గురవుతుంది. బీఆర్‌‌‌‌ఎస్‌‌‌‌కు ముస్లిం ఓట్లను తగ్గించేందుకు కాంగ్రెస్ పార్టీ ఎంఐఎం నేత ఒవైసీతో బహిరంగంగా దోస్తీ చేసింది. బీజేపీని ఓడించగల బలమైన బీఆర్ఎస్​ లేదా కాంగ్రెస్ అభ్యర్థికి ముస్లింలు ఓటు వేస్తారు. కాబట్టి కాంగ్రెస్ మొత్తం ముస్లింల ఓట్లను పొందగలదా అనేది ఆసక్తిగా చూడాల్సిందే.

కేసీఆర్ తన పార్టీని కాపాడుకోగలడా?

చారిత్రాత్మకంగా కేసీఆర్‌‌‌‌కు ఉన్న పెద్ద ప్రయోజనం ఏమిటంటే, ఓటమి తర్వాత కూడా ఏ ప్రాంతీయ పార్టీ కనుమరుగైపోలేదు. ఎన్నికల్లో ఓడినా ప్రాంతీయ పార్టీలు స్థానికంగా ఒకేసారి ఉనికి కోల్పోవడం సులభంకాదు. లిక్కర్ స్కామ్ కారణంగా కవిత జైలులో ఉండటం వంటి సవాళ్లను కేసీఆర్ పార్టీ ఎదుర్కొంటుంది. దీంతో కేసీఆర్‌‌‌‌కు ఉన్న ప్రతిష్ట దెబ్బతింది. కార్యకర్తలు సంతోషంగా ఉండేలా కేసీఆర్ పార్టీలో నాయకత్వానికి తెరతీయాల్సిన అవసరం ఉంది. కేసీఆర్ పార్టీని బతికించుకోవచ్చు. కానీ అది వేగంగా మారాలి. కానీ జీవితంలో, రాజకీయాలలో నూటికి నూరుశాతం కచ్చితమైన అంచనాలు కష్టం.

రేవంత్​కు హైకమాండ్ ఫ్రీ హ్యాండ్

ముఖ్యమంత్రి రేవంత్ రెడ్డి ఎవరినైనా పార్టీలో చేర్చుకునేందుకు కాంగ్రెస్​ హైకమాండ్​ స్వేచ్ఛను ఇచ్చింది. అభ్యర్థులను ఎంపికలోనూ రేవంత్ అభిప్రాయానికి ప్రాధాన్యమిస్తోంది. కాంగ్రెస్‌‌‌‌ హైకమాండ్‌‌‌‌కి పార్టీ తరఫున ఎంపీలను గెలుచుకోవాలి. సీఎం రేవంత్‌‌‌‌ రెడ్డి ఆ పని చేస్తారని కాంగ్రెస్​ అధిష్టానం భావిస్తోంది. కాగా, కేంద్రంలో అధికారంలో ఉన్న బీజేపీ ప్రధానమంత్రి నరేంద్ర మోదీ ప్రతిష్టపై ప్రధానంగా ఆధారపడుతోంది.

తెలంగాణ మాజీ సీఎం కేసీఆర్ గానీ, ప్రస్తుతం ముఖ్యమంత్రి రేవంత్ రెడ్డి గానీ ప్రధాని అభ్యర్థి కాదు. 2019లో బీజేపీ గెలిచిన నలుగురు ఎంపీల కంటే ఎక్కువ గెలవాలి. ఈ సంఖ్య తగ్గితే తెలంగాణ బీజేపీ నాయకత్వం విఫలమైందని అర్థం. చాలా మంది బయటి నేతలను కూడా బీజేపీ చేర్చుకుంటున్నది. అయితే ఇక్కడ అధికారంలో లేనందున కాంగ్రెస్ కంటే బీజేపీ వెనుకపడి ఉంది.

క్లిష్ట పరిస్థితిలో బీఆర్ఎస్​

అధికారం కోల్పోయిన కేసీఆర్ పార్టీ సార్వత్రిక ఎన్నికల నేపథ్యంలో క్లిష్ట పరిస్థితిని ఎదుర్కొంటోంది. కేసీఆర్ జాతీయ ఆశయాలు ఇప్పుడు పూర్తిగా నిలిచిపోయాయి. కేసీఆర్ పేరును తిరిగి టీఆర్‌‌‌‌ఎస్‌‌‌‌గా మార్చవచ్చు. బీఆర్‌‌‌‌ఎస్‌‌‌‌ ఇద్దరు మినహా మిగతా ఎంపీలను కోల్పోయింది. ప్రస్తుతం, బీఆర్ఎస్​ ఎమ్మెల్యేలు ఎక్కువ సంఖ్యలో ఫిరాయించలేరు. ఎందుకంటే వారు కలిసి ఫిరాయించడానికి మెజార్టీ సంఖ్య అవసరం. 2024 పార్లమెంట్ ఎన్నికలు ఎలా జరుగుతాయో, ఫలితాలు ఎలా వస్తాయో అని ఎమ్మెల్యేలు ఎదురుచూస్తున్నారు. విచిత్రమేమిటంటే, కాంగ్రెస్ కేవలం కేసీఆర్ పార్టీపైనే ప్రధానంగా దాడి చేస్తోంది, బీజేపీపై కాదు.

– డా పెంటపాటి పుల్లారావు, పొలిటికల్​ ఎనలిస్ట్​ V6 వెలుగు 26 మార్చి 2024 సౌజన్యంతో

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

Recent Comments

    Archives

    Categories

    Meta

    'तेलंगाना समाचार' में आपके विज्ञापन के लिए संपर्क करें

    X