जुबान फिसलते तेलंगाना के नेता, लगाओ लगाम, वर्ना…

तेलुगु में कहावत के अर्थ है कि पैर फिसल जाए तो वापस लिया जा सकता है, लेकिन मुंह फिसल जाए तो वापस नहीं लिया जा सकता। मुँह अच्छा तो शहर भी अच्छा होता है! यदि सार्वजनिक जीवन में रह रहे लोग मुख्य रूप से नेता इस सिद्धांत का पालन नहीं करते हैं, तो मुश्किलें खड़ी होती है और होगी। हालाँकि, पिछले कुछ सालों से तेलुगु राजनीति में ‘मौखिक दस्त’ (Verbal diarrhoea) बढ़ रहा है। आलोचना को गाली-गलौज माना जा रहा है।

इसी क्रम में आरोप-प्रत्यारोप भी संयम की सीमा लांघ रही हैं। सभी चोरों का उपनाम मोदी क्यों होता है, जैसी टिप्पणी करने पर राहुल गांधी को न केवल जेल हुई, बल्कि उनकी लोकसभा सदस्यता भी चली गई। यह एक असामान्य घटनाक्रम है। अगर यही आधार बना तो दोनों तेलुगु राज्यों में कई मंत्रियों और विधायकों को अपने पद से हाथ धोना पड़ेगा!

हाल ही में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में दोनों विपक्षी नेताओं की टिप्पणियां सत्ताधारी दलों को एक हथियार के रूप में मिल गई हैं। जन सेना पार्टी के अध्यक्ष पवन कल्याण ने टिप्पणी की कि राज्य में युवतियों के गायब होने के पीछे स्वयंसेवकों का हाथ हैं। आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी के लिए एक हथियार बन गया। वहीं तेलंगाना में सत्तारूढ़ भारतीय राष्ट्र समिति ने टीपीसीसी अध्यक्ष की टिप्पणी पर किसानों को कांग्रेस के खिलाफ भड़काने की कोशिश की। रेवंत रेड्डी ने कहा कि किसानों को 3 घंटे मुफ्त बिजली देना पर्याप्त होगा। यदि शब्दों का प्रयोग संयम से नहीं किया गया तो ऐसे ताने-बाने अपरिहार्य हैं।

आइए यहां पर हम केवल तेलंगाना टीपीसीसी के अध्यक्ष रेवंत रेड्डी द्वारा मुफ्त बिजली के संबंध में की गई टिप्पणियों पर आते हैं। एक यथार्दवादी (सच बोलने वाला ) दुनिया का विरोधी कहलाता है। राजनीति में लोग तथ्यों पर खुलकर बात करना पसंद नहीं करते है। सत्ताधारी दल से जुड़े मंत्री और विधायक निजी बातचीत में मुख्यमंत्री केसीआर के व्यवहारशैली की शिकायत करते हैं। लेकिन उनमें से कोई भी खुलकर नहीं बोलता है। उल्टे मुख्यमंत्री की प्रशंसा इंद्र देव और चंद्र देव के रूप में करते हैं। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि रेवंत रेड्डी आक्रामक हैं और उनका अपनी वाणी पर कोई नियंत्रण नहीं होता है। यही कारण है कि रेवंत रेड्डी मुफ्त बिजली के बारे में मुंह फिसल कर तथ्यात्मक बातें की होगी।

चर्चा है कि तेलंगाना में बीजेपी कमजोर पड़ गई है और कांग्रेस पार्टी की ताकत बढ़ रही है। इस बात से चिंतित भारत राष्ट्र समिति के लिए रेवंत रेड्डी का यह बयान एक हथियार के रूप में मिल गया। केसीआर के आदेश मिलते ही बीआरएस के मंत्री, विधायक और नेता भड़क उठे। उन्होंने किसानों को कांग्रेस के खिलाफ भड़काने की कोशिश की, लेकिन उनके प्रयास व्यर्थ रह गये। रेवंत रेड्डी के बयान पर सत्तारूढ़ दल की हर टिप्पणी या प्रतिक्रिया राह भटक गई। यह जवाबी हमले के बजाये पीछे मुड़ में बदल गई। दरअसल, मुफ्त बिजली राजनीतिक दलों के लिए एक जरूरत है। 2004 से पहले मुख्यमंत्री रहते हुए मुफ्त बिजली का विरोध करने वाले चंद्रबाबू ने 2014 में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में किसानों को मुफ्त में पर्याप्त बिजली उपलब्ध करायी थी।

इसी पृष्ठभूमि में रेवंत रेड्डी ही नहीं बल्कि किसी और नेता में मुफ्त बिजली नीति को बदलने की हिम्मत नहीं है। लेकिन रेवंत रेड्डी की फिसली जुबान की वजह से सत्ता पक्ष ने मौके का फायदा उठाया। अमेरिका से लौटे रेवंत रेड्डी ने जवाबी हमला किया तो सत्तारूढ़ बीआरएस ठंडा पड़ गया। सांसद कोमटिरेड्डी वेंकट रेड्डी ने सब-स्टेशनों की लॉग बुक के आधार पर साबित कर दिया कि किसानों को 24 घंटे मुफ्त बिजली देने का दावा करने वाली सरकार वास्तव में 11 घंटे से अधिक बिजली की आपूर्ति नहीं कर रही है। यह सुनकर सत्ता पक्ष के नेताओं की जुबान बंद हो गई। हालाँकि, यह घटना साबित करती है कि रेवंत रेड्डी को अपनी आक्रामकता कम करनी चाहिए और अपने मुँह पर नियंत्रण रखना चाहिए।

भारत राष्ट्र समिति के नेता उम्मीद कर रहे हैं कि तेलंगाना में स्थिति कांग्रेस के पक्ष में होने की धारणा के बावजूद कांग्रेस नेता मुंह फिसल कर उन्हें हमला करने के लिए हथियार दे देंगे। सत्ताधारी दल के नेता यही उम्मीद कर रहे हैं कि क्या कांग्रेस के नेता, जो आंतरिक झगड़ों और आजादी के नाम पर मनमर्जी की बातें करने के आदी हैं, क्या गलती नहीं सकते हैं? क्या वे हमारे जाल में फंस नहीं सकते है? ऐसे हालात में यह कांग्रेस पार्टी नेताओं को तय करना है कि क्या केसीआर एंड कंपनी की इस जाल में फंस जाना चाहिए? या फिर कांग्रेस पार्टी को सत्ता में लाने के लिए एकजुट और अनुशासित होकर काम करना चाहिए? क्षेत्रीय पार्टियों में नेता के बयान और आदेश ही पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए रामबाण होते हैं। यह मुख्य हैं कि नीतिगत मुद्दों पर मुख्य नेता ही बोलते हैं और बोलना चाहिए।

तेलुगु राज्यों में लोग भी इस प्रवृत्ति के आदी हैं। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर, खासकर कांग्रेस पार्टी में यह स्थिति नहीं है। हर कोई नीतिगत मुद्दों पर घोषणा करते हैं और बोलते हैं। कांग्रेस नेताओं को यह समझना चाहिए कि तेलुगु लोग इन रुझानों पर खुशी मनाने की स्थिति में नहीं हैं। राजनीतिक रूप से दबंग माने जाने वाले मुख्यमंत्री केसीआर को एक छोटा सा मौका मिला तो वे क्या कांग्रेस पार्टी को चबाकर नहीं निगलेंगे? कल तक भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ एक पैर पर खड़े रहने वाले केसीआर एंड कंपनी का ध्यान अब कांग्रेस पार्टी पर केंद्रित हो गया है। इसी के चलते वह कह रहे हैं कि तेलंगाना में उनका मुख्य प्रतिद्वंद्वी कौन है। अब यह कांग्रेस नेताओं को यह सोचकर निर्णय लेना है कि केसीआर के हाथ में उनके बाल पकड़ने के लिए देना है या नहीं?

दूसरी ओर, मुख्यमंत्री केसीआर के पोते और मंत्री केटीआर के बेटे हिमांशु की सरकारी स्कूलों की दुर्दशा पर की गई टिप्पणी ने सरकार की कमजोरी उजागर कर दी है। हालाँकि, एक बच्चा होने पर भी हिमांशु ने दयालु हृदय से प्रतिक्रिया व्यक्त की और दान एकत्र करके एक सरकारी स्कूल विकसित किया। इसके लिए हिमांशु को बधाई दी जानी चाहिए। लेकिन यह उनके पोते ही थे जिन्होंने ऐसी स्थिति पैदा की जहां केसीआर को अपने नौ साल के शासन के दौरान सरकारी स्कूलों की दुर्दशा के लिए जवाब देना पड़ा। केसीआर ने दावा किया कि उन्होंने राज्य को स्वर्णिम तेलंगाना में बदल दिया है और अब वह देश को ठीक करेंगे। बैठक में शिक्षा मंत्री सबिता इंद्रा रेड्डी भी उपस्थित थी। जहां हिमांशु मुख्य अतिथि थे, की भी आलोचना हुई।

कुल मिलाकर पोते हिमांशु की पहल की सराहना करने वालों को भी इस कार्रवाई से दादा केसीआर के शासन की आलोचना करने का मौका मिल गया है। अगर समय अच्छा न हो तो ऐसा भी हो सकता है! सावधान नेताओं! मुंह को लगाम लगाइए। वर्ना लेने के देने पड़ सकते हैं। पांच महीने में चुनाव होने वाले हैं। (तेलुगु आंध्रज्योति में प्रकाशित लेख कोत्तापलुकु के कुछ अंश)

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