सूत्रधार संस्था का हिन्दी दिवस राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का सफल आयोजन, इन साहित्यकार युगल ने लिया भाग

‘निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल

बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल।।’

हैदराबाद (सरिता सुराणा की रिपोर्ट): सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, भारत हैदराबाद द्वारा हिन्दी दिवस पर ऑनलाइन राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें देश के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार युगलों ने भाग लिया। संस्थापिका सरिता सुराणा ने सभी साहित्यकार युगलों का शब्द पुष्पों से हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया और नई दिल्ली से वरिष्ठ अंतरराष्ट्रीय साहित्यकार एवं मीडिया विशेषज्ञ लक्ष्मीशंकर वाजपेयी और वरिष्ठ अंतरराष्ट्रीय कवयित्री डॉ ममता किरण को अध्यक्षता हेतु मंच पर आमंत्रित किया।

इस कवि सम्मेलन में मुख्य अतिथि दम्पत्ति वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र निगम राज और वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती इन्दु राज निगम गुरुग्राम, हरियाणा से मंच की शोभा बढ़ा रहे थे। वरिष्ठ साहित्यकार प्रोफ़ेसर ऋषभदेव शर्मा और वरिष्ठ कवयित्री डॉ पूर्णिमा शर्मा, हैदराबाद से तथा वरिष्ठ गीतकार डॉ मनोज अबोध और वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती रूबी मोहन्ती ग्रेटर नोएडा उत्तर-प्रदेश से इस कवि सम्मेलन में विशेष आमंत्रित अतिथि के रूप में मंच पर उपस्थित थे। श्रीमती इन्दु राज निगम की सरस्वती वन्दना से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ।

डॉ मनोज अबोध ने हिन्दी भाषा पर अपने शानदार दोहे प्रस्तुत किए। एक दोहा देखिए-

हिन्दी जैसी भावना, हिन्दी का व्यवहार

किस भाषा में है भला, हिन्दी जैसा प्यार।।

रूबी मोहन्ती ने हिन्दी की किटपिट शीर्षक से बहुत ही सुन्दर व्यंग्य कविता प्रस्तुत की। प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने-तोड़ने की साजिशें हैं हर तरफ/है अचरज फिर भी घर बसे हैं/बचे हैं जैसी तीखे तेवर वाली रचना का पाठ करके सभी श्रोताओं की वाहवाही बटोरी। डॉ पूर्णिमा शर्मा ने- ओ मेरी भाषा! तुझसे ही प्रकाशित होती है मेरी दुनिया कविता का पाठ किया। राजेन्द्र निगम ने- आज के दिन हम एक नई सौगंध उठाएंगे/हिन्दी को उसका गौरव वापस लौटाएंगे जैसी भावपूर्ण रचना का पाठ करके दर्शकों को बांधे रखा।

वहीं पर इन्दु राज निगम ने अपने चिर परिचित अंदाज में अपनी रचना- माथे पे जैसे बिन्दी, जैसे शिव का नंदी/जो कुम्भ हो या नौचंदी, ऐसी हमारी हिन्दी प्रस्तुत करके दर्शकों का मन मोह लिया। सरिता सुराणा ने हिन्दी दिवस पर अपनी कविता- हे भारत वासियों जागो/अपने ही घर में/अपनी भाषा का/सप्ताह मनाना त्यागो जैसी यथार्थपूर्ण रचना प्रस्तुत की।

अध्यक्षीय टिप्पणी में श्री लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने सभी सहभागियों की रचनाओं की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उन्होंने काव्य पाठ प्रस्तुत करने से पहले कहा कि उन्होंने सबसे पहले हिन्दी पर ही कविता लिखी थी। उन्होंने कहा कि विदेशों में असलियत में हिन्दी भाषा को सम्मान प्राप्त है, वहां पर हिन्दी के कार्यक्रम में बड़े-बड़े अधिकारी और राजनेता आते हैं, यहां पर तो एक पार्षद तक नहीं आता।

उन्होंने अपनी रचना के माध्यम से हिन्दी दिवस पर व्यंग्य करते हुए कहा कि- सरकारी दफ्तर के बाहर एक बैनर लग गया/डेढ़ मीटर कपड़े के सहारे/राजभाषा दिवस धूमधाम से मन गया। आगे गजल पढ़ते हुए उन्होंने सभी को भावविभोर कर दिया- हर पल मन में क्रंदन सा है/क्या यह जीवन, जीवन सा है? अन्त में डॉ ममता किरण ने अध्यक्षीय काव्य पाठ प्रस्तुत करते हुए हिन्दी भाषा की पीड़ा इन शब्दों में व्यक्त की- नजरें सहानुभूति की मुझ पर न डालिए/बस रस्म निभाने की, रस्म मत निभाइए।

उन्होंने हिन्दी को सशक्त और सक्षम भाषा बताया और कहा कि हिन्दी अपने तरीके से अपना वर्चस्व स्थापित कर रही है। बड़ी संख्या में उपस्थित दर्शकों ने इस कवि सम्मेलन का आनन्द उठाया और ऐसे अनूठे आयोजन की प्रशंसा की, जिसमें साहित्यकार युगलों को आमंत्रित किया गया था। सरिता सुराणा ने काव्यात्मक ढंग से कार्यक्रम का कुशल संचालन किया और सभी साहित्यकारों और दर्शकों का हार्दिक आभार व्यक्त किया।

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