साहित्यकार व अनुवादक डॉ पी माणिक्याम्बा के सम्मान में वाजा इंडिया तेलंगाना इकाई का विशेष कार्यक्रम संपन्न

हैदराबाद (देवा प्रसाद मयला की रिपोर्ट) : प्रमुख साहित्यकार व अनुवादक डॉ पी मानिक्याम्बा ‘मणि’ के जन्मदिन (27 जुलाई) के उपलक्ष्य में उनके सम्मान में राइटर्स एंड जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (वाजा) इंडिया तेलंगाना इकाई के तत्त्वावधान में डॉ शकुंतला रेड्डी की ओर से आयोजित विशेष कार्यक्रम संपन्न हुआ।मंचेरियाल निवासी और तेलंगाना के जाने-माने कथाकार व अनुवादक तथा वाजा इंडिया तेलंगाना इकाई के अध्यक्ष एनआर श्याम ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की और वाजा इंडिया तेलंगाना इकाई महासचव देवा प्रसाद मयला ने कार्यक्रम का संचालन किया।

जारी विज्ञप्ति में बताया गया कि डॉ मणि को वाजा परिवार की ओर से जन्मदिन की बधाई-शुभकामनाएँ देकर संचालक ने उन्हें वर्चुअल मंच पर सादर आमंत्रित किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ अहिल्या मिश्र जी (वाजा तेलंगाना की परामर्शदाता) एवं विशेष अतिथि शिवेन्द्र प्रकाश द्विवेदी (राष्ट्रीय वाजा के महासचिव, भारत) के मंच पर आसीन होने के बाद कार्यक्रम का शुभारम्भ डॉ टीसी वसंता द्वारा रचित सरस्वती वंदना से किया गया। इसे स्वर देकर डॉ टी श्रील़क्ष्मी एवं सुश्री जयश्री ने प्रस्तुत किया है।

पुरस्कार का महत्व

डॉ शकुंतला रेड्डी जी ने हाल ही में आगरा हिन्दी संस्थान के गंगाशरण पुरस्कार ग्रहीता डॉ मणि का संक्षिप्त परिचय देकर उस पुरस्कार का महत्व समझाया। उन्होंने कहा कि मणि ने डॉ एन गोपी की तेलुगु पुस्तक ‘जलगीतम’ का हिन्दी में अनुवाद विजयदशमी के नौ दिन के अंदर ही पूरा किया है, इसकी काफ़ी सराहना की गई है। उन्होंने स्नेहिल, सरल, सज्जन स्वभाववाली डॉ मानिक्याम्बा के साथ अपना व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए उनके साथ केरल यात्रा के अविस्मरणीय क्षणों को स्मरण किया।

सुंदर व्यक्तित्व

डॉ मणि की सहेली-सहपाठी डॉ सुमनलता ने कहा है कि मणि जी की पुस्तकें एवं मित्रों के आधार पर उनके सुंदर व्यक्तित्व को जाना जा सकता है। मणि ने जहाँ पढ़ा है, आगे जाकर वहीं पढ़ाया है। उन्होंने ने समाज के उत्थान एवं श्रेय के लिए साहित्य लिखा है। साहित्य-अनुवाद क्षेत्र में शिखर पर पहुंचना एक दिन की बात नहीं है। मणि ने बहुत श्रम करते हुए धीरे-धीरे सफलता की सीढ़ी चढ़ी है। 59 साल की मित्रता में सुमनलता जी ने डॉ माणिक्याम्बा को इस प्रकार आगे बंढ़ते देखा है। उन्होंने कहा कि मित्रता कैसे की जाती है यह बात कोई डॉ मणि जी से सीख सकते हैं। डॉ अनिता गांगुली ने डॉ मणि को जन्मदिन की बधाई देकर उनके साथ अपने अनुभवों को सभा के साथ साझा किया है। विशेषकर उनके साथ उनकी पहली मुलाक़ात को स्मरण करते हुए कहा है कि डॉ मणि में एक निराडंबर व्यक्ति को देखा है। वे उन्हें मित्र के रूप में पाकर धन्य महसूस करती हैं।

स्त्री सशक्तिकरण की नींव

गुरु-मां डॉ माणिक्याम्बा के प्रेम-शासन तले उभर आयी डॉ कोकिला जी स्वयं को भाग्यशाली मानती हैं। डॉ मणि ने कवि, लेखक और साहित्यकार डॉ सी नारायण रेड्डी की तेलुगु पुस्तक ‘भूमिक’ का हिन्दी अनुवाद किया है। इसकी प्रतिक्रिया में डॉ सिनारे के अंग्रेज़ी लेख में प्रयुक्त सटीक शब्दों का कोकिला जी ने बहुत सुंदर भाव प्रस्तुत किया है। उन्होंने कहा कि डॉ मणि उस्मानिया विश्वविद्यालय की छात्रा रही है। उनकी अपनी योग्यता से वे वहीं पर हिन्दी विभागाध्यक्ष बन गई। डॉ मणि का जन्म इसी दिन साल 1957 में हुआ था। स्त्री सशक्तिकरण की नींव वहीं से डाली है और सौम्यता से लड़ाई कैसे जीती जाती है उनसे सीखा जा सकता है।

अनमोल धरोहर

डॉ टी सी वसंता ने कहा कि डॉ माणिक्याम्बा का व्यक्तित्व-कृतित्व साहित्य जगत के लिए अनमोल धरोहर है। वह कवयित्री, अनुवादक एवं समीक्षक हैं; सज्जन एवं सहृद हैं। उनके सृजन एवं अनुसृजन में विविधता है। उन्होंने सदैव स्त्री के प्रति समाज में व्याप्त अस्वस्थ धारणाओं, कुप्रथाओं तथा अन्याय अत्याचारों का विरोध किया है। डॉ मणि ने वोल्गा के स्त्रीवीदी विचारों की समीक्षा करके पाठकों को उस दिशा में सोचने पर विवश किया है। डॉ वसंता ने अनेक उदाहरणों से अपने कथन को सशक्त बनाया है।

बहुआयामी व्यक्तित्व

श्रीमती सरिता सुराणा जी ने कहा है कि रचनात्मक सृजन अपने विस्तृत फलक में जीवन और समाज से जुड़ा हुआ है। सामाजिक चेतना को अनुप्राणित करने का अनुपम कार्य साहित्य के माध्यम से होता है। मानव अस्मिता का संरक्षण और संवर्द्धन करने में साहित्यकारों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। अनुभव और विचार एक दूसरे में अन्तर्प्रवेश पाकर ही सही समझ विकसित करने में समर्थ हो सकते हैं। डॉ. माणिक्यांबा जी की रचनाएं इसका जीवन्त प्रमाण हैं। डॉ सुरभि दत्त ने अथर्ववेद से एक मंत्र पढ़कर कहा है कि वह मंत्र डॉ माणिक्याम्बा पर खरा उतरता है। उनका आचरण एवं उनकी विचारशैली ज्ञान की आभा बिखेरते हैं। उनका व्यक्तित्व मधुमय व अमृत कलश समान है। वे साहित्य जगत के दमकते नक्षत्र हैं। भाषा में माधुर्य है। मुख स्मित-मुस्कान भरा रहता है। इनका अनुवाद मूल रचना को जीवित रखता है। हम आशा करते हैं कि उनकी स्वर्णिम कलम अनवरत चलता रहेगा।

जीवन के मूल्य सीखने को मिले

डॉ इनगंटि लावण्या ने कहा है कि डॉ माणिक्याम्बा से जीवन के मूल्य सीखने को मिले हैं। उनमें मां और गुरु आइन देखाई देता है। उनके निर्देशन में पीएचडी करते समय के अपने अनुभव को सभा के साथ साझा करते हुए कहा कि वे उनके सान्निध्य में गौरवान्वित महसूस करती हैं। हिन्दी और तेलुगु में इनकी समान पकड़ है। चार भाषाओं की विदुषी हैं डॉ माणिक्याम्बा। इनके संपर्क में जो भी आया है लाभान्वित हुआ है। डॉ पी राजश्री मोरे ने कहा कि डॉ माणिक्याम्बा के साहित्यिक मूल्यों से वे प्रभावित तो हैं ही, लाभान्वित भी हैं। वह डॉ माणिक्याम्बा में महादेवी वर्मा को देखती हैं। इनसे बहुत प्रोत्साहन मिला है। इनके प्रोत्साहन से उस्मानिया विश्वविघालय में छात्रों द्वारा पेपर प्रस्तुत करने का दौर चला है। वे महिला सशक्तिकरण के सशक्त उदाहरण हैं। राजश्री मानती हैं कि शिक्षा क्षेत्र में वह आज जो भी हैं माणिक्याम्बा के कारण ही हैं।

सरल एवं आत्मीयता

डॉ राधा सागिली ने डॉ मणि को जन्मदिन की बधाई देकर कहा कि 20-25 सालों का उनके साथ परिचय है। डॉ मणि एक सरल एवं आत्मीयता हैं। डॉ सोमा दत्ता ने कहा कि वे डॉ माणिक्याम्बा से थोड़े समय के परिचय में उनसे बहुत प्रभावित हुई है। ऐसे लगा जैसे उनके साथ इनकी बहुत पुरानी जान-पहचान है। उनके सुंदर व्यक्तित्व के कारण उन संग जुड़ी रह गई। डॉ पार्वती ने कहा कि डॉ मणि के मार्गदर्शन में पीएचडी किया है। डॉ मणि के ज्ञान का आलोक सभी को मिलता रहता है। उनके पढ़ाने की क्षमता ऐसी कि उनका पढ़ाया मन में अंकित होकर रह जाता है। उनके पुस्तकों ने पाठकों को बहुत प्रभावित किया है। एन गोपी के जलगीतम का इनके द्वारा अनूदित पुस्तक तेलंगाना विश्वविघालय में पीजी के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है, जिससे विद्यार्थी लाभान्वित हुए हैं। श्रीमती इंदिरा ने कहा कि डॉ माणिक्याम्बा से उनका नाता लगभग 55 साल पुराना है। वह भी उनकी छात्रा रही हैं। उन्हीं के कारण जीवन में उभरी हैं और आज सेवानिवृत्त हैं। उनके साथ हुए इनके अनुभवों को सभा के साथ संक्षेप में साझा किया।

डॉ माणिक्याम्बा एक सशक्त महिला एवं संपूर्ण साहित्यकार

मुख्य अतिथि वक्ता डॉ अहिल्या मिश्र ने इस कार्वायक्रम के आयोजन के लिए डॉ शकुंतला रेड्डी और वाडा इंडिया तेलंगाना इकाई के सभी सदस्यों की सराहना की। उन्होंने डॉ माणिक्याम्बा को एक सशक्त महिला एवं संपूर्ण साहित्यकार बताया है। तीन प्रकार की स्त्रियों का उदाहरण देकर डॉ मणि को स्त्री सशक्तिकरण का पर्याय बताया है। उनके निजत्व पर प्रकाश डालते हुए उनके साथ इनके हुए अपने अनुभवों को भावुकता से स्मरण किया है। डॉ मणि में अलग विशेषता है कि वे तेलंगाना की विभूति हैं। ऐसे कार्यक्रमों के ज़रिए उजागर करना ज़रूरी है। वे छायावादी, रहस्यवादी महादेवी वर्मा की छवि को स्वयं में दर्शाती हैं। जितने भी स्त्री सशक्तिकरण के उदाहरण दिये गए हैं, डॉ माणिक्याम्बा उन से भी सौ सीढ़ियां ऊपर हैं। वे अनुवाद को मौलिक रूप में प्रस्तुत करती हैं। हमारे हृदय में उनके लिए एक कोना सुरक्षित है। स्त्री को बहुत संघर्षों से होकर बीतना पड़ता है, उसके साथ परिवार के लोग होते हैं, मित्र होते हैं, जैसे कि डॉ मणि के साथ हैं।

तेलंगाना साहित्य का जगमगाता नक्षत्र हैं

विशेष अतिथि वाजा इंडिया के राष्ट्रीय महासचिव शिवेन्द्र प्रकाश द्विवेदी ने कार्यक्रम के आयोजक एवं सहयोगियों के नाम लेकर प्रशंसा की और कहा कि इतने बड़े हस्ताक्षर डॉ पी माणिक्याम्बा के बारे में बयान करने के लिए अभिव्यक्ति को शब्द नहीं मिलते है। भाषा असमर्थ, प्रयत्न-शब्द व्यर्थ और शब्दकोश बौना पड़ जाता है। वे तेलंगाना साहित्य के जगमगाता नक्षत्र हैं। शिवेनिद्र ने डॉ मणि की उपलब्धियों के लिए उन्हें बधाई दी। यह भी कहा है कि जो तेलुगु नहीं जानते, ऐसे अनुवादकों के ज़रिए तेलुगु साहित्य समझने लगते हैं।

मित्रों की भरमार

डॉ माणिक्याम्बा ने अपने भावभीनी उद्गार में सभी स्नेहिल मित्रों, वाजा के सदस्यों, विशेषकर आयोजक डॉ शकुनंतला रेड्डी एवं उनके सहयोगियों, सरस्वती वंदना प्रस्तुत करने के लिए डॉ. टी. श्रीलक्ष्मी एवं सुश्री जयश्री को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए एक-एक वक्ता का नाम लेकर जिस किसी ने जो कुछ उनके बारे में कहा उसे दोहराकर आभार व्यक्त किया। उन्होंने महादेवी वर्मा की पंक्तियाँ सुनाकर कहा है कि उनके पास मित्रों का अभाव था, परन्तु इनके पास मित्रों की भरमार है।

धन्यवाद और आभार

अध्यक्षीय टिप्पणी में एनआर श्याम ने पहले तो ऐसे कार्यक्रम के आयोजन के लिए आयोजक एवं वाजा की प्रशंसा की और फिर हर एक वक्ता के वक्तव्य का सार प्रस्तुत किया। डॉ माणिक्याम्बा को तेलुगु की महादेवी वर्मा कहा गया है। श्याम ने कहा कि डॉ मणि को इस उपाधि से नवाज़ा जाना चाहिए। आयोजक डॉ शकुंतला रेड्डी ने वाजा को, सभी वक़्ताओं को तथा श्रोता के रूप में कार्यक्रम में उपस्थित शारदा के, प्रद्युन रेड्डी, डॉ तृप्ति मिश्र, देशमुख, डॉ किट्टी वर्मा, डॉ लक्ष्मणा चारी का नाम लेकर धन्यवाद ज्ञापित किया और आभार व्यक्त किया। डॉ शकुंतला रेड्डी के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

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