किसी भी राष्ट्र के लिए उसकी स्वतंत्रता, उसका आज और कल अर्थात विकास निर्भर करता है और भारत एक ऐसा देश रहा जिसे सदियों मुगलों एवं अंग्रेजी शासन के गुलामी का दंश झेलना पड़ा, किंतु कब तक देश की जनता इस बर्बरता को झेल पाती। भारत वीर भूमि ऐसे ही तो नहीं है, भारत मां के वीर सपूतों ने ठान लिया कि अब समय आ गया है कि अंग्रेजों को इस पावन भूमि से खदेड़ भगाया जाए।
भारत भर में क्रांति का बिगुल बज उठा और स्वतंत्रता आंदोलन को देश के हर एक कोने – कोने में जागृत किया गया। जनता की रग – रग में उत्साह का स्पंदन किया, वहीं देश का आम जन मानस भी इस स्वतंत्रता संग्राम की आग में कूद पड़ा और देश की आजादी का सपना साकार हुआ। कोटि – कोटि बलिदानों एवं शहीदों की शहादत से लिपटी हमें भारत मां की स्वतंत्रता स्वरूप शीतलता से युक्त ममता भरी आंचल का छांव मिला और 15 अगस्त सन 1947 को देश को स्वतंत्रता मिली।
किंतु हैदराबाद को लेकर और एक साल की लंबी लड़ाई लड़नी पडी। 17 सितंबर सन 1948 का दिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक स्वर्णिम दिन था। इसी दिन हैदराबाद के स्वतंत्रता सेनानियों के प्रदीर्घ मुक्ति आंदोलन के उपरांत सन 1948 में निजाम शासन को ध्वस्त कर हैदराबाद को भारत में सम्मिलित कर लिया गया।
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इस मुक्ति संग्राम की सफलता के पीछे हैदराबाद के साथ आर्यसमाज की दृढ़ इच्छाशक्ति थी, इन्हीं मे से एक थे क्रान्तिकारी, अदम्य साहसी, निर्भीक योद्धा पंडित गंगाराम जी। बाल्यावस्था से ही पण्डित गंगाराम जी के समाज सेवा की कहानियां का सिलसिला चल पड़ा था। वैसे तो इनके जीवन से संबंधित अनेक ऐसी घटनाएं हैं जो सदा हमें इनके धवल व्यक्तित्व को स्मरण कराती रहेंगी किंतु यह कहने में हमें जरा भी गुरेज नहीं है कि हैदराबाद मुक्ति संग्राम की सफलता की कहानी तभी साकार होती है जब महान क्रांतिकारी पंडित गंगाराम जी के त्याग को भी भावभीनी श्रद्धांजलि दी जाए, जिन्होंने देश हेतु अपना तन – मन – धन सब कुछ चुपचाप न्योछावर कर दिया और आज तक गुमनामी के अंधेरे में उनका बलिदान रहा। ठीक अपने नाम की तरह ही जैसे मां गंगा सभी के दुखों को अपने में चुपचाप समाहित कर लेती है और राम जनता के सेवक थे वैसे ही समाज सेवक थे पंडित गंगाराम। निर्भीक, निडर, अदम्य साहस से युक्त, आत्म स्वाभिमानी एवं सहृदयी, जन मानस की सेवा हेतु बचपन से ही तत्पर रहने वाले।
जिन्हें हैदराबाद के मुक्ति संग्राम का यदि नीव की ईट कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, यही नहीं पंडित जी का योगदान हैदराबाद के मुक्ती स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में ऐसा रहा जैसे किसी पथिक के लिए तपती धूप में छाया, जैसे नींव की ईंट अंधेरे में जाकर मंदिर की कलश को सुंदरता एवं सार्थकता प्रदान करती है, ठीक उसी प्रकार का व्यक्तित्व था पंडित गंगाराम जी का। ऐसा प्रतीत होता है जैसे ये स्वयं मां शारदे के वरदान स्वरूप हैदराबाद की स्वतंत्रता हेतु अवतरित हुए थे। इनका व्यक्तित्व निर्मल जल की तरह था इनकी कथनी और करनी में अंतर न होता था जो इनके मन में होता उसे अत्यंत ही बेबाकी एवं सहजता के साथ अभिव्यक्त करते थे।
कहते हैं न कि “होनहार वीरवान के होत चिकने पात” बचपन से ही ये साहसी प्रवृत्ति के थे, बाल्यावस्था में ही इन्होंने बासर ग्राम के निकट उफनती गोदावरी नदी में एक डूबती बाल विधवा के प्राणों की रक्षा की थी। यह घटना अपने आप में अविस्मरणीय है, जिस उम्र में बच्चे खेल – कूद में रमे रहते हैं उस उम्र में अपने प्राणों की बाजी लगा दी। यह सिलसिला यहीं नहीं थमने वाला था, कहते हैं कि सोना आग में तपकर ही निखरता है, ठीक वैसा ही व्यक्तित्व था गंगाराम जी का। एक बार नहीं कई बार इन्होंने अपनी जान हथेली पर रखकर कई मासूम प्राणों की रक्षा की, इसी संदर्भ में एक और घटना है कि एक बार चारमीनार के पास कई इमारतों में आग लग गई जहां स्वयं आग में झुलस कर एक मां का आंचल सूनी होने से बचाया।
यही नहीं पहली बार निजाम के खिलाफ क्रान्तिकारी कदम उठाने की हिमाकत किसी ने की थी तो वो थे पंडित गंगाराम जी जिन्होंने निजाम शासन के विरुद्ध इतिहास में पहली बार बम ब्लास्ट कर निजाम के प्रति अपना विरोध जताया और इस प्रकार का बम ब्लास्ट चार अलग-अलग जगहों पर किया गया, जिसमें एक की मौत हुई, इन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया। तत्कालीन निज़ाम के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह का बिगुल बज उठा। तभी चिकोलिया कांड में पहली गिरफ्तारी भी इन्हीं की हुई इल्जाम था चार लोगों की मस्जिद में मौत। निजाम सरकार ने इन्हें धर दबोचा और सलाखों के पीछे डाल दिया। तैसे – तैसे जेल से छूटे ही थे कि प्रताप सिंह बम केस में गिरफ्तार कर लिए गए, अतः इन हालातों में सरकार के अधीन कार्य करना इनके लिए संभव नहीं था, सरकारी नौकरी को छोड़कर भूमिगत हो गए। निजामी शासन की बर्बरता एवं अत्याचारों को देखकर उनके मन में निजाम के विरुद्ध क्रांति की ज्वाला फूट पड़ी थी।
उन्होंने तत्कालीन आर्य क्रांतिकारी नेता दत्तात्रेय प्रसाद जी के नेतृत्व में आर्यन डिफेंस लीग की स्थापना की, जिसका उद्देश्य आर्य और हिंदू समाज की सुरक्षा करना था। हैदराबाद से नोआखाली जो अब बांग्लादेश में है सहायतार्थ (25,000 रुपये) राशि, देवीदीन बाग, सुलतान बाजार में प्रदर्शनी कर जमा किया तथा राशि के साथ पण्डित सोहनलालजी व्यास, असम, बंगाल, बिहार में लगभग दस महीने तक कई शिवरों में हिन्दुओं के आस्तीतत्व की रक्षा हेतु कार्य किया। वहां गांधी जी, ठक्कर बापा, मुखर्जी, चेटर्जी आदि के संग काम किया और दस शिविरों की देख रेख नेतृत्व इन्ही से होती थी। गांधी जी के कहने पर दो महीने बिहार और असम में भी रक्षार्थ काम किया। उस समय की राशि, आज की लगभग 5,00,00,000 रुपये से भी अधिक ही होगी। इतनी बड़ी राशि, कभी किसी को सहायता हेतु भेजना, हैदराबाद के इतिहास में पहली बार ही हुआ होगा।
जब सन् 1940 में सत्याग्रह विजय के उपरांत चारों और आर्य समाज का प्रभाव दावानल की तरफ बढ़ रहा था तब हैदराबाद में हिंदी माध्यम से हाई स्कूल खोलने की बात रखी गई परंतु निजाम शासक राजकीय मान्यता देने हेतु तैयार नहीं था किंतु सत्याग्रह के उपरांत ₹40,000 की सहायता देने हेतु सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा दिल्ली ने देना स्वीकार किया। तब केशव स्मारक आर्य विद्यालय की स्थापना की गई जिसमें पंडित गंगाराम जी का अभूतपूर्व योगदान रहा और इसी विद्यालय में अध्यापक के रूप में आने वाले समय हेतु नव निर्माण की नींव तैयार करते रहे। किंतु कुछ समय पश्चात निजाम सरकार ने उन पर प्रतिबंध लगा दिया कि वे किसी भी शिक्षण संस्था से संबंधित न रखें और उन्हें उस संस्था से निकाल दिया गया और उनके द्वारा लिखित “ऋषि चरित्र प्रकाश” को भी जब्त कर लिया गया।
इनका चयन विश्वविद्यालय से सीधे भारतीय वायुसेना में भी हो गया था किंतु यह तो ठहरे जनसेवक इनका मन कहां टिकता भला विदेशी सरकार के अधीन, अतः इन्होंने इनकार कर दिया। ये आर्य प्रतिनिधि सभा,हैदराबाद राज्य के मंत्री बनाए गए और इन्होंने अपना सम्पूर्ण समय आर्य समाज को अर्पित कर दिया। सदा जनता के बीच रहकर जनता के हित के लिए अनवरत अथक परीश्रम करते रहे गाहे-बगाहे निजामी शासन की तलवार इनके ऊपर लटकती रही और इन्हें फिर एक बार नजरबंद कर लिया गया। रजाकारी आंदोलन के समय इनका जीवन कल आज और कल आने वाले कल सभी पीढ़ियों हेतु प्रेरणाप्रद है यह शुक्र तारे के समान थे। हैदराबाद मुक्ति संग्राम के इतिहास में इनके योगदान को युगांत तक बिसराया नहीं जा सकता इनका व्यक्तित्व समूचे भारतवर्ष हेतु आभा है जिसके प्रकाश से आने वाला कल दमकता रहेगा। इसके लिए अगर कहा जाए कि इनका व्यक्तित्व – “सतसैया के दोहरे ज्यों नावक के तीर, देखने में छोटन लगे घाव करे गंभीर” तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, परंतु सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि ऐसे महान जनसेवक एवं सहृदयी क्रांतिकारी के अभूतपूर्व योगदान को सदियों तक गुमनामी का दंश क्यों झेलना पड़ा ?
भारत जिसका अर्थ है अनवरत प्रकाश पथ पर अग्रसर होते जाना, जिसका नक्शा अपने आप में अदम्य, अद्भुत, अप्रतिम है क्या इसका यही रूप होता अगर 17 सितंबर सन 1948 के दिन हैदराबाद को भारत में सम्मिलित न किया गया होता और पंडित गंगाराम जैसे वरद पुत्र न होते तो क्या ये नक्शा अधूरा न होता?
हैदराबाद के मुक्ति स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में ही नहीं बल्कि पूरे भारतवर्ष के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में जन सेवक पंडित गंगाराम जी का नाम अमर रहेगा एवं युगों युगों तक उनकी शहादत आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक होगी चाहे हैदराबाद की धरती हो या समूचा भारत वर्ष। ऐसे वीर सेनानी पंडित गंगाराम जी को मैं शत-शत नमन करती हूं।
डॉ सुमन सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर,
हिन्दी विभाग,
श्री अग्रसेन कन्या PG कॉलेज
वाराणसी