गीता जयंती पर विशेष: कर्म किये जा फल की चिंता मत कर

[नोट-लेख में प्रकाशित विचार लेखक के है। संपादक का सहमत होने आवश्यक नहीं है]

भगवत गीता एक ऐसा ग्रंथ है, इसमें प्रत्यक्ष स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में मनुष्य को इस संसार में कैसे जीवन यापन करना चाहिए, क्या कर्म करना चाहिए, मनुष्य क्यों इस दुनिया में आया है, कहां वापस जाना है, के बारे में विस्तार सहित अपने प्रिय शिष्य अर्जुन को मौक्षदा एकादशी पर कुरुक्षेत्र के मैदान में अमृत संदेश दिया था। इसलिए गीता जयंती मनाई जाती है। जो मानव कल्याण के लिए लाभदायक है, भगवान कृष्ण ने अर्जुन को अपने मुख से युद्ध में उपदेश दिया था जिसका ग्रंथ में उल्लेख मिलता है। श्रीकृष्ण ने धर्म और कर्म को समझाते हुए अर्जुन को उपदेश दिया था।

पूरे देश में इस बार गीता जयंती 11 दिसंबर को बड़े धूमधाम से मनाई जाएगी। यह शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को होती है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि क्षत्रिय धर्म का पालन करो और एक क्षत्रिय की भांति मैदान में अपने अधिकारों के लिए लड़ो। यही तुम्हारा धर्म है। अर्जुन अपने परिवार के प्रति युद्ध करने में हिचकिचा रहे थे, तो श्रीकृष्ण ने कहा कि अपने कर्तव्य को पूरा करो अन्यथा आपकी प्रतिष्ठा नष्ट हो जाएगी तथा पाप के भागी बनोगे। सम्मानित व्यक्ति को अपमान बर्दाश्त नहीं होता और वह मृत्यु से भी ज्यादा खतरनाक होता है।

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प्रत्येक मनुष्य इस संसार में कर्म करने के लिए आया है। सत्कर्म से भी ऊपर उठकर मुक्ति को प्राप्त किया जा सकता है। यह भगवत गीता पढ़ने के बाद ही समझ आ सकता है। हमें क्या कर्म करने चाहिए। असली में कर्म क्या होता है। यह सब गीता में लिखा हुआ है। जिसको हर मनुष्य को समझने की जरूरत है। हम कितने भाग्यशाली हैं कि स्वयं भगवान ने हमें संसार में कर्म करने का तरीका बताया है।

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कर्म करो फल की चिंता मत करो। यही मूल मंत्र है। अपने कर्म को लगातार करते रहो और उसके मिलने वाले परिणामों पर बिल्कुल भी ध्यान न दो तथा जो भी कुछ परिणाम आएगा वह भगवान श्रीकृष्ण की महिमा से प्राप्त होगा। एक यही ऐसा ग्रंथ है जिसकी जयंती मनाई जाती है। यहां तक की कोर्ट कचहरी में भी इसी ग्रंथ को हाथ में लेकर शपथ दिलाई जाती है कि जो कहूंगा सच कहूंगा। इस प्रकार इस ग्रंथ की बहुत अधिक मान्यता है।

गीता व महाभारत पर श्रीकृष्ण ने पद्म पुराण में कहा है कि भव बंधन से मुक्ति के लिए गीता ही अकेली पर्याप्त ग्रंथ है। संसार में जो भी आया है उसको सुख दुख दोनों मिलते रहते हैं और संघर्ष हमेशा चलता रहता है, जिसको भली भांति सहन करके उससे छुटकारा पाया जा सकता है। जब भगवान श्रीकृष्ण मानव जीवन में आए, तब उन्हें भी अनेक प्रकार की सांसारिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण ने सांसारिक जीवन में अनेक प्रकार की चुनौतियों का सामना किया और फिर विजयी रहे। इस प्रकार मनुष्यों को भी मानव जीवन में कष्टों से छुटकारा पाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण के नाम ध्यान और दान पुण्य की सीख दी गई है।

गीता जयंती के अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा पाठ और प्रार्थना की जाती है। भारत और विदेशों में श्रीकृष्ण के अनुयायी गीता जयंती बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इस्कान मंदिर में अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस दौरान भक्तजन पवित्र नदी और तालाबों में डुबकी लगाते हैं। कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं। व्रत रखकर भगवान कृष्ण को याद करते हैं। दान पुण्य करते हैं। ऐसा करने से सुख एवं सौभाग्य प्राप्त होता है। मन पवित्र होता है। ऐसे करने वालों को जीवन में खुशियां ही खुशियां प्राप्त होती है।

भगवान श्री कृष्ण उपदेश

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।।
श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥

के पी अग्रवाल हैदराबाद

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