संत कबीर दास जयंती पर विशेष लेख : काल करे सो आज कर, आज करे सो अब

संत कबीर भक्ति काल के ऐसे कवि हैं जिन्होंने अपनी विचारधारा से कुरीतियों, अंधविश्वासों के खिलाफ एक सच्चे संत महात्मा फकीर बनकर सकारात्मक विचारों को अपनी वाणी द्वारा जन-जन तक पहुंचाया, जो आज भी अमृत समान बरस रही हैं। उस काल में समाज आडंबरों से भरा हुआ था। अंधविश्वास, छुआछूत कर्मकांड व सांप्रदायिकता उन्माद व अन्य प्रकार के अंध विश्वास फेले हुए थे। उन्होंने उन आडंबरों के प्रति समाज में जागरूकता का काम किया। उनके दोहे मौखिक थे जो बाद में उनके शिष्यों ने लिखा। उनके दोहे जीवन को नई, प्रेरणा प्रदान करते हैं, आज भी उनके दोहों को बड़े मान से लिया जाता है। उनके दोहे आज भी प्रचलित है।

कबीर दास जी ने कहा:-

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोई,
ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

कबीर दास जी का जन्म काशी में 1398 संवत 1455 ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था। कबीर दास जी की जयंती 22 जून को मनाई जा रही है। उन्होंने विधिवत शिक्षा प्राप्त नहीं की। उनका हिंदू और मुस्लिम दोनों ही सम्मान करते थे। उनके जन्म का रहस्य रहा है। उन्होंने राम को जीवन आश्रय माना, वह भारतीय संस्कृति का हीरा है। जिनकी चमक आज भी मौजूद है। जिन्होंने लोगों को प्रेम सद्भाव एकता बनाए रखने के लिए प्रयास किया। धर्मदास द्वारा संग्रह बीजक ग्रंथ में उनकी वाणियों का संग्रह किया गया है।

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बताया जाता है कि उस समय स्वर्ग-नरक के बारे में अंधविश्वास फैला हुआ था। कहते हैं उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के नजदीक मगहर में रहने पर नर्क में जाने का अंधविश्वास फैला हुआ था, तो उन्होंने उस अंधविश्वास को तोड़ने के लिए वहां जाकर रहे और वही 1518 में अंतिम सांस ली। कहते हैं कि देहावसान के बाद उनके अंतिम संस्कार को लेकर हिंदू और मुस्लिम भक्तों में विवाद हो गया। जब चादर हटाई गई तो सिर्फ फूलों का ढेर था। जिसमें आधे फूल हिंदू और आधे फूल मुसलमानों ने लेकर अपनी-अपनी परंपरा के अनुसार अंतिम संस्कार किया। जहां कबीर दास जी के दोहों ने हमको ज्ञान के प्रकाश में बढ़ने को प्रेरित किया। आज भी उनके एक-एक दोहे अति प्रचलित हैं। उनकी वाणी अमृत के समान थी।

कबीर दास के कुछ दोहे :-

काल कर सो आज कर, आज करे सो अब,
पल में प्रलय होगी बहुरि करेगा कब।
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए,
औरन को शीतल करे, आप ही शीतल होय,
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलिया कोय।
लूट सके तो लूट ले, हरि नाम की लूट,
अंत समय पछताएगा, जब प्राण जाएंगे छूट।

लेखक के पी अग्रवाल, हैदराबाद

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