हमारी भारतीय संस्कृति में माँ और मातृभूमि को सबसे ऊंचा स्थान दिया गया है और कहा गया है कि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान हैं। ऐसा कहने के पीछे अनेक कारण हैं, जो आज तक सर्वमान्य है। यह दिन माँ के प्यार, त्याग और उसकी महानता को समर्पित किया गया है। सबसे पहले जानते हैं कि मदर्स डे मनाना कब से और कहां से शुरू हुआ?
सबसे खूबसूरत और प्यारा रिश्ता मां
माना जाता है कि दुनिया में सबसे खूबसूरत और प्यारा रिश्ता मां और बच्चे का होता है। मां अपने बच्चे को बिना किसी शर्त या स्वार्थ के प्यार करती है। मां के इसी गुण को सम्मान देने हेतु अमेरिका की प्रसिद्ध एक्टिविस्ट एना जार्विस ने ‘मदर्स डे’ मनाने की शुरुआत की। वे अपनी मां से बहुत प्यार करती थीं और उनकी देखभाल करने के लिए उन्होंने शादी तक नहीं की। जब उनकी मां की मृत्यु हो गई तो उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी दूसरों की सेवा में लगा दी।
और मदर्स डे’ मनाया जाने लगा
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान एना ने घायल अमेरिकी सैनिकों की सेवा बिल्कुल एक मां की तरह की। उनकी सेवा भावना को सम्मान देने के लिए अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन ने एक कानून पास किया और तब से ही मई महीने के दूसरे रविवार को पूरी दुनिया में ‘मदर्स डे’ मनाया जाने लगा। इसलिए हमें भी सदैव मां का सम्मान करना चाहिए। मां की महानता के कई पहलू हैं, जिनके बारे में हम सब जानते हैं लेकिन फिर भी मां को वह अपेक्षित सम्मान नहीं मिला, जो उन्हें मिलना चाहिए था। आइए हम मां के इन्हीं गुणों के बारे में बात करें-
जननी जन्मदात्री है मां
वह मां ही है, जो बच्चे को नौ महीने अपनी कोख में रखकर उसे जीवन देती है और बाद में अपार कष्ट सहन करके उसे जन्म देती है। इसलिए हम मातृ ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकते। केवल अपनी सेवा और सहयोग से उनके जीवन को आरामदायक बना सकते हैं। लेकिन आज के भौतिकवादी युग में शिक्षित और एकल परिवारों में बच्चे इतने स्वार्थी होते जा रहे हैं कि अपना स्वार्थ सिद्ध होने के बाद वे मां-बाप को भगवान भरोसे छोड़ देते हैं।
शर्मनाक
अगर मां-बाप में से पिता का देहान्त हो जाता है तो मां के लिए बच्चों के पास समय नहीं होता। उनकी देखभाल करने हेतु वे अपने फर्ज़ से पीछे हट रहे हैं। प्राइवेसी के नाम पर उन्हें अकेला छोड़ कर खुद ऐशो आराम की जिन्दगी जी रहे हैं और उन्हें न तो आर्थिक रूप से मदद करते हैं और न ही उन्हें मानसिक रूप से कोई संबल प्रदान करते हैं। बहुत से लोग तो अपनी मां को वृद्धाश्रम में छोड़ देते हैं। ऐसी स्थिति में एक मां को सबसे ज्यादा कष्टों का सामना करना पड़ता है, जो निश्चित रूप से समाज के लिए शर्मनाक है।
प्रथम गुरु है मां
Happy Mother’s Day Amma ❤️ pic.twitter.com/DXgOK8eELW
— Kavitha Kalvakuntla (@RaoKavitha) May 14, 2023
एक अबोध बच्चे की प्रथम गुरु मां ही होती है। जन्म से पहले गर्भ में और जन्म के पश्चात् बाहरी दुनिया में सबसे पहले बच्चा मां के सम्पर्क में ही आता है। मां ही उसे चलना-फिरना, बोलना, खाना-पीना और पढ़ना सब कुछ सिखाती है। इतिहास साक्षी है कि माता सुभद्रा के गर्भ में ही वीर अभिमन्यु ने व्यूह रचना सीख ली थी। ऐसे अनेक उदाहरण हमें इतिहास में और वर्तमान में देखने को मिलते हैं।
संस्कारदायिनी पालक है मां
वीर शिवाजी महाराज और वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की माताएं जीजाबाई और महारानी जयवंता बाई ने गर्भ काल से और जन्म के पश्चात् अपने पुत्रों को ऐसे संस्कार दिए कि मातृभूमि की रक्षा करने हेतु उन्होंने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की माताएं धन्य थीं, जिनकी दी हुई शिक्षा और संस्कारों ने उनमें देशभक्ति की भावना का अद्भुत संचार किया। झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई की मां की मृत्यु यद्यपि उनके बचपन में ही हो गई थी लेकिन उनके दिए हुए संस्कारों की बदौलत ही वे इतनी छोटी उम्र में मातृभूमि की रक्षा करने हेतु युद्ध के मैदान में कूद पड़ी थीं और हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था।
शक्ति स्वरूपा दुर्गा है मां
हम सब जानते हैं कि जब कभी एक बच्चे के प्राणों का संकट उत्पन्न होता है, तब एक मां अपनी जान पर खेलकर उसकी रक्षा करती है। उस समय वह साक्षात् दुर्गा का रूप धारण कर लेती है और बड़े से बड़े राक्षस या हिंसक पशु से भी भिड़ जाती है। बच्चे को जन्म देते समय भी उसकी यही भावना रहती है कि चाहे मेरी जान चली जाए लेकिन मेरे बच्चे को कुछ नहीं होना चाहिए।
इन सब गुणों को देखते हुए हम कह सकते हैं कि मां के समस्त गुणों को शब्दों में बयां करना सम्भव नहीं है। इस धरती पर एक बच्चे के लिए ईश्वर का दूसरा रूप है मां। मां के लिए एक दिन तो क्या, पूरी जिन्दगी समर्पित करें तो भी कम है। सभी मांओं को समर्पित है मेरा सादर प्रणाम।
– सरिता सुराणा
स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखिका
हैदराबाद
sarritasurana@gmail.com