अल्लूरी सीताराम राजू का जन्म सन् 1897 या 1898 में वर्तमान आंध्र-प्रदेश में हुआ था। कहा जाता है कि वह 18 साल की उम्र में संन्यासी बन गए थे और अपनी तपस्या व ज्योतिष के ज्ञान के साथ-साथ पहाड़ी और आदिवासी लोगों के बीच उन्होंने अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया।
अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष
बहुत कम उम्र में ही अल्लूरी सीताराम राजू ने गंजम, विशाखापट्टणम और गोदावरी क्षेत्र में पहाड़ी लोगों के असंतोष को अंग्रेजों के खिलाफ अत्यधिक प्रभावी गुरिल्ला प्रतिरोध में बदल दिया।
औपनिवेशिक शासन ने आदिवासियों की पारंपरिक पोडु (स्थानांतरण) खेती को खतरे में डाल दिया। क्योंकि सरकार ने वन भूमि को सुरक्षित करने की मांग की थी। 1882 के वन अधिनियम ने जड़ और पत्तियों जैसे छोटे वन उत्पादों के संग्रह पर प्रतिबंध लगा दिया और आदिवासी लोगों को औपनिवेशिक सरकार के लिए श्रम करने के लिए मजबूर किया गया।
पुलिस थानों पर हमला
आदिवासियों का जमींदारों द्वारा शोषण किया जाता था। औपनिवेशिक सरकार द्वारा लगान वसूलने के लिए नियुक्त किए गए ग्राम प्रधानों, नए कानूनों और प्रणालियों ने उनके जीवन जीने के तरीके को ही खतरे में डाल दिया। अगस्त 1922 में अल्लूरी सीताराम राजू के नेतृत्व में कई सौ आदिवासियों ने गोदावरी एजेंसी के चिंतापल्ले, कृष्णादेवीपेटा और राजावोम्मंगी पुलिस थानों पर हमला किया।
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अल्लूरी सीतारामराजू की गोरिल्ला युद्ध नीति
अल्लूरी सीतारामराजू क्षत्रिय समुदाय के थे। वे बाल संन्यासी के रूप में संस्कृत पढ़ने बनारस गए थे। वहां पर उन्होंने वेदांत और योग का अध्ययन किया था। वापस लौटकर उन्होंने विशाखापट्टणम के आसपास के इलाकों में आदिवासियों को संगठित किया। उनका यह संगठन तत्कालीन उप तहसीलदार और अन्य राजस्व अधिकारियों के खिलाफ था। उनके नेतृत्व में आदिवासियों ने कई पुलिस स्टेशनों पर हमला किया था और पुलिस से हथियार और गोला-बारूद भी छीने थे।
घात लगाकर हमला
सीताराम राजू ने गवर्नमेंट रिजर्व पुलिस के कई ठिकानों पर घात लगाकर हमला किया था, जिसमें दो ब्रिटिश अधिकारी स्कॉट और हाइटर मारे गए थे। उनका मानना था कि असली ताकत उसी वीर में होती है जो दुश्मन को पहले चेतावनी देता है और फिर हमला करता है। इतिहास में उनके द्वारा की गई कार्रवाईयों को रंपा क्रांति के नाम से जाना जाता है। रंपा विद्रोह अगस्त 1922 में शुरू हुआ था और मई 1924 में राजू के पकड़े जाने तक उनकी मृत्यु तक चला था।
अंग्रेज सरकार द्वारा धोखा
रंपा विद्रोह महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के साथ शुरू हुआ। एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तक में कहा गया है कि “अल्लूरी सीताराम राजू ने महात्मा गांधी की महानता की बात की। कहा कि वह असहयोग आंदोलन से प्रेरित थे और उन्होंने लोगों को खादी पहनने और शराब न पीने के लिए राजी किया। लेकिन साथ ही, उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत केवल बल के प्रयोग से ही आजाद हो सकता है, अहिंसा से नहीं।”
अंग्रेजों के खिलाफ गोरिल्ला युद्ध
इस बगावत में राजू ने अंग्रेजों के खिलाफ गोरिल्ला युद्ध छेड़ दिया था। पूर्वी गोदावरी के जंगलों और विशाखापट्टणम में सीताराम राजू की सेना ने अंग्रेजों को खूब परेशान किया। सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के लिए उस वक्त 10,000 रुपए का इनाम घोषित किया था। उनको गिरफ्तार न कर पाने के कारण क्षुब्ध होकर पुलिस ने आदिवासियों को सताना शुरू कर दिया था।
जंगल का हीरो
तब आदिवासियों को बचाने और न्याय की उम्मीद में राजू ने आत्मसमर्पण कर दिया था। लेकिन अंग्रेज पुलिस ने 7 मई 1924 को धोखे से गोली मारकर उनकी हत्या कर दी और उनके शव को खाट से बांधकर जुलूस निकाला और यह दावा किया कि राजू की मौत के साथ ही विद्रोह समाप्त हो गया है। जब वे शहीद हुए तो उनकी उम्र मात्र 27 वर्ष थी। आंध्र-प्रदेश के लोग उन्हें आज भी ‘मन्यम वीरुडु’ अर्थात् ‘जंगल का हीरो’ कहते हैं। आदिवासी लोग सीतारामराजू को अलौकिक शक्तियों से युक्त मसीहा मानते थे।
राजू के सम्मान में डाक टिकट जारी
1986 में भारतीय डाक विभाग ने राजू और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया। सन् 1974 में उनके जीवन पर आधारित एक फिल्म बनाई गई, जिसमें तेलुगु एक्टर कृष्णा ने उनकी भूमिका निभाई। फिर सीतारामराजू की प्रतिमा भी स्थापित की गई। इस तरह उन्होंने आजादी के संघर्ष में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
– सरिता सुराणा वरिष्ठ लेखिका एवं पत्रकार हैदराबाद