नोट-यह समाचार हमारे पास विलंब से प्रकाशन के लिए आया है। ‘तेलंगाना समाचार’ के पाठकों के लिए इसे प्रकाशित कर रहे हैं। श्रीलाल शुक्ल स्मारक राष्ट्रीय संगोष्ठी समिति के प्रति हम आभारी है।]
हैदराबाद: श्रीलाल शुक्ल स्मारक राष्ट्रीय संगोष्ठी समिति और केंद्रीय हिंदी संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में ‘सोद्देश्य व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हाल ही में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में श्रीराम तिवारी (आईपीएस, सेनि) भाग लिया। तिवारी अपने वक्तव्य में कहा कि याद करने से व्यक्ति जीवित रहता है। अपने वक्तव्य को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि सत्य की खोज भारतीय संस्कृति की परम्परा रही है। उन्होंने कहा श्रीलाल शुक्ल की कृतियाँ समाज में दर्पण का कार्य करती है। कृतियों को सिर्फ पढ़ना और समस्याओं की चर्चा करना ही काफी नहीं है, बल्कि उन समस्याओं को दूर करने का प्रयास भी करना चाहिए।
कार्यक्रम की प्रमुख वक्ता डॉ आशा मिश्रा (संपादक-पुष्पक साहित्यिकी त्रैमासिक पत्रिका, लेखिका एवं कवयित्री) ने अपने संबोधन में कहा कि श्रीलाल शुक्ल ने अपनी कालजयी कृति ‘राग दरबारी’ में शिवपालगंज नामक एक साधारण गाँव को एक चरित्र बना दिया। उन्होंने श्रीलाल शुक्ल के कई उपन्यासों की चर्चा करते हुए कहा कि ‘राग दरबारी’ उपन्यास इतना चर्चित हुआ कि उसने श्रीलाल शुक्ल की अन्य कृतियों को दबा दिया। पाठक यह नहीं समझ पाते कि ‘राग दरबारी’ श्रीलाल शुक्ल के कारण चर्चा में है या श्रीलाल शुक्ल ‘राग दरबारी’ के कारण चर्चित हुए हैं।
साहित्य गरिमा पुरस्कार समिति की संस्थापक अध्यक्षा डॉ अहिल्या मिश्रा ने संदेश के माध्यम से संयोजिका एवं उनके पुत्र अभियंता चि आकाश तिवारी को अपना आशीर्वाद दिया। पिता तुल्य / ससुर एवं उत्तर भारत भारतीय संघ के संस्थापक सदस्य एवं प्रथम महामंत्री स्व. पं. बाला प्रसाद तिवारी जी को स्मरण / नमन किया एवं उनके द्वारा किए गए कार्यों की भूरि- भूरि प्रशंसा की। भवंस विवेकानंद कॉलेज की भाषा विभाग की हिंदी प्राध्यापक डॉ सुपर्णा मुखर्जी ने कहा कि समाज मूल्य हीनता से ग्रसित है। सुधार पहले भी नहीं था और आज भी नहीं है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ गंगाधर वानोडे (क्षेत्रीय निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र) ने कहा कि श्रीलाल शुक्ल एक विलक्षण गद्यकार हैं। वे किरदार नहीं, मनुष्य को रचते हैं। उन्होंने आगे कहा कि श्रीलाल शुक्ल के उपन्यासों की काफ़ी चर्चा हुई है। दृष्टिकोण में बदलाव लाने की आवश्यकता है। अच्छे कार्य करें एवं औरों को भी प्रेरित करें।
कार्यक्रम के सानिध्य एवं परामर्श अथिति व प्रसिद्ध साहित्यकार प्रो ऋषभ देव शर्मा ने अपने सुझाव में कहा कि साहित्य का कार्य सुधार करना नहीं है, सुधार के लिए प्रेरित करना है। आगे उन्होंने कहा कि केवल लिखना और पढ़ जाना ही काफी नहीं है। उसे आचरण में लाना और समस्याओं को सुधारने के लिए प्रयत्नशील रहना / प्रयास करना हैं। शर्मा ने आगे कहा कि शिक्षा के बावजूद नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है। गंदलापन फैलता जा रहा है। हमें सुधार हेतु इतना समझना है कि यह गंदलापन क्या है? कहाँ है? और कितना है? इतना जान लिया तो लेखक और पाठक दोनों का कार्य सार्थक हो जाता है। यह आयोजन विगत 17 वर्षों से निरंतर ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता प्रसिद्ध उपन्यासकार पद्मभूषण पं. श्रीलाल शुक्ल के जन्मोत्सव संगोष्ठी के रूप में मनाया जा रहा है, जिसमें अपने जीवनकाल में स्वयं श्रीलाल शुक्ल चल दूरभाष माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि ठाकुर गोपाल सिंह (न्यायिक अधिकारी, तेलंगाना राज्य, सूचना आयोग) ने अपने वक्तव्य में कहा कि गाँव में आज भी भ्रष्टाचार हो रहा है। हमारा उद्देश्य श्रीलाल शुक्ल का जन्मदिन मनाना नहीं है, बल्कि भ्रष्टाचार जैसी अनैतिकता को दूर करने का प्रयास करना भी है। इसी श्रृंखला में सम्माननीय अतिथि के सार्वभौंमा राव (अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट (भारत) नई दिल्ली) ने आयोजन की सफलता की कामना करते हुए संदेश भेजा। कार्यक्रम के मुख्य बिंदु अर्मीनिया से पधारी सुश्री अल्विना एवं अफगानिस्तान से पधारे मो फहीम थे। उन्होंने अपने शोध पत्र के माध्यम से श्रीलाल शुक्ल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की चर्चा करते हुए उनकी रचनाओं की विस्तार से चर्चा की और इस राष्ट्रीय संगोष्ठी ने अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का रूप धारण कर लिया। कार्यक्रम का आरंभ शंखनाद एवं सरस्वती वंदना से हुआ, जिसे अभियन्ता चि. आकाश तिवारी एवं चि श्याम के सहयोग से पूर्ण किया गया।
विषय प्रवर्तक तथा कार्यक्रम की संयोजिका दक्षिण भारत की प्रसिद्ध लेखिका, शिक्षाविद एवं अखिल भारतीय कान्यकुब्ज ब्राह्मण महासभा (रजि.) कानपुर की राष्ट्रीय अध्यक्षा (महिला प्रकोष्ठ) डॉ सीमा मिश्रा, जिन्होंने एम.फिल. लघु शोध कार्य: श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास ‘राग दरबारी’ में राजनैतिक चेतना-2008, एवं पीएचडी शोध कार्य: ‘श्रीलाल शुक्ल के साहित्य का समाजशास्त्रीय अध्ययन-2012’ में उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद केंद्र से सफलतापूर्वक संपन्न किया।
डॉ सीमा मिश्रा ने कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए ‘सोद्देश्य व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल’ विषय पर साहित्यिक परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए कुशलतापूर्वक संपन्न किया। अंत में उन्होंने संगोष्ठी में उपस्थित सभी शोधार्थियों, अध्यापकों एवं देश के विभीन प्रांतो से पधारे सभी गणमान्य साहित्यकारों एवं पत्रकारों का अपने ह्रदय की गहराइयों से आभार प्रकट किया। राष्ट्र-गान के साथ राष्ट्रीय संगोष्ठी समाप्त हुई।