केंद्रीय हिंदी संस्थान: ‘भारतीय भाषाओं में चिकित्‍सा विज्ञान की शिक्षा’ विषयक संगोष्ठी, वक्ताओं ने बताई खूबियां

हैदराबाद/नई दिल्ली: केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्व हिंदी सचिवालय के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से शिक्षा विमर्श की कड़ी में भारतीय भाषाओं में चिकित्‍सा विज्ञान की शिक्षा (विशेष संदर्भ मध्‍य प्रदेश) विषय पर आभासी संगोष्‍ठी आयोजित की गई। संकल्‍प संस्‍था के संस्‍थापक संतोष तनेजा की अध्‍यक्षता में हुई संगोष्‍ठी में डॉ मनोहर लाल भंडारी (सदस्‍य चिकित्‍सा शिक्षा पाठ्यक्रम), डॉ अरविंद राय (अधिष्‍ठाता गांधी चिकित्‍सा महाविद्यालय, भोपाल), डॉ खेम सिंह डहरिया (कुलपति अटल बिहारी वाजपेयी विवि, भोपाल) ने हिस्‍सा लिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ जवाहर कनार्वट (निदेशक हिंदी भवन भोपाल) ने किया।

कार्यक्रम की प्रस्‍ताविकी पेश करते हुए दिल्‍ली विवि के एसोसिएट प्रोफेसर विजय कुमार मिश्र ने कहा कि नई शिक्षा नीति के लागू होने से भारतीय भाषाओं को लेकर एक आश्‍वस्ति जगी है। केंद्र की एनडीए सरकार जीवन के हर क्षेत्र में भारतीय भाषाओं के उन्‍नयन के लिए बने कार्यक्रमों के क्रियान्‍वयन का सतत प्रयास कर रही है। केंद्रीय हिंदी संस्‍थान गुवाहटी के क्षेत्रीय निदेशक राजवीर सिंह ने गणमान्‍य अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्‍वागत किया।

विशिष्‍ट वक्‍ता के रूप में बोलते हुए डॉ मनोहर लाल भंडारी ने कहा कि दशकों के प्रयास के बाद चिकित्‍सा की शिक्षा हिंदी में किए जाने का मार्ग प्रशस्‍त हुआ है। उन्‍होंने बताया कि 30 दिसम्‍बर, 1981 को मध्‍य प्रदेश में एमबीबीएस की पढ़ाई हिंदी में कराए जाने की मांग को लेकर प्रतिवेतन दिया गया था जिस पर दिल्‍ली ने सहमति दी थी। फिर 15 नवम्‍बर 1979 को भी इस विषयक प्रपत्र जारी हुए थे। 31 दिसंबर 1990 को चिकित्‍सा और पराचिकित्‍सा की समिति ने हां की थी। जुलाई 1998 में राजस्‍थान सरकार में प्रदेश में हिंदी में चिकित्‍सा की शिक्षा देने की घोषणा की थी। लेकिन 7 मई 1999 को अवर सचिव स्‍तर के एक अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि हिंदी में शिक्षा महंगी पड़ेगी तथा इस विषय के शिक्षक भी नहीं मिलेंगे। लेकिन नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व में अब बात बनती नजर आ रही है। हमें भी हिंदी के विराट आभामण्‍डल को पहचानना होगा। विद्वान चेमेस्‍की को कोट करते हुए उन्‍होंने कहा मध्‍य प्रदेश में चिकित्‍सा शिक्षा की पुस्‍तकें तैयार की जा रही हैं छापने के लिए प्रकाशक भी तैयार बैठे हैं। जो ग्रिक और लैटिन के शब्‍द हैं उन्‍हें फिलहाल उसी रूप में रखते हुए अप्रैल मई से एमबीबीएस की पढ़ाई हिंदी में हो सकेगी।

गांधी चिकित्‍सा महाविद्यालय, भोपाल, अधिष्‍ठाता डॉ अरविंद राय ने आंकड़ों के जरिए बताया कि चिकित्‍सा के क्षेत्र में प्रवेश लेने वाले 50 प्रतिशत से अधिक छात्र हिंदी माध्‍यम के होते है। उन्‍होंने बताया कि मध्‍य प्रदेश में चिकित्‍सा से जुड़े कुल 25 कॉलेज हैं जिनमें लगभग 4000 छात्र एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हैं। हिंदी माध्‍यम वाले बच्‍चों के मन में भाषा के सवाल पर एक हीन भावना घर कर लेती है अगर उन्‍हें मात्र भाषा में शिक्षा दी जाए तो वे अपना और बेहतर दे सकते हैं। उन्‍होंने आशा व्‍यक्‍त की कि आगामी मई महीने से जब भोपाल के गांधी चिकित्‍सा महाविद्यालय में एमबीबीएस की पढ़ाई होगी तो कुल 250 बच्‍चों में 125 से अधिक बच्‍चे हिंदी की ओर अग्रसर होंगे।

इस क्रम में वरिष्‍ठ पत्रकार एवं भाषाकर्मी राहुल देव ने कहा कि 100 साल पहले देश के उसमानिया विवि हैदराबाद में मैडिकल की पढ़ाई उर्दू में होती थी। महाराजा गायकवाड़ ने इंजीनिरिंग की शिक्षा गुजाराती में शुरू कराई थी। हमें हिंदी की ओर लगन के साथ बढ़ना चाहिए क्‍योंकि हर भाषा में उच्‍चतम ज्ञान लिया और दिया जा सकता है। राज्‍य समाज और तंत्र अगर मिलकर काम करे तो भाषा का विकास शीघ्र संभव है।
मुख्‍य अतिथि के रूप में बोलते हुए डॉ खेम सिंह डहेरिया ने कहा कि भारत गांव का देश है अगर चिकित्‍सा की पढ़ाई हिंदी में होगी तो गांव के लोगों को बहुत लाभ होगा। उन्‍होंने बताया कि जिस त‍रह इजराइल अपनी मातृ भाषा हिब्रू में पढ़ लिखकर उपलब्धियां हासिल की है उसी तरह भारतीय भाषाओं में ज्ञानार्जन भारतीयों के लिए नई दरवाजें खोलेगा।

इसी क्रम में भाषाविद् चम्‍मू कृष्‍ण शास्‍त्री ने पढ़ते-पढ़ाते ही लिखने का सुझाव दिया और कहा कि इससे ढेर सारी सामग्री तैयार होगी। उन्‍होंने शब्‍दावली के निर्माण पर भी काम करने की राय देते हुए छात्रों से भी लिखवाने का आग्रह किया। मातृभाषा से शिक्षा और मातृभाषा में शिक्षा के लिए सबकी मदद लेने का आह्वान करते हुए उन्‍होंने राय दी कि लैटिन और ग्रीक के शब्‍दों का भारतीय भाषाओं में विवरण शामिल करना चाहिए। हिंदी और अंग्रेजी एक साथ पैराग्राफ अथवा पेज के हिसाब से रखना चाहिए तथा हिंदी के प्रति रूझान पैदा करने के लिए अलग से प्रोत्‍साहन दिए जाने पर भी विचार करना चाहिए।

कार्यक्रम की अध्‍यक्षता करते हुए संतोष तनेजा कहा कि मातृभाषा में उच्‍च शिक्षा में अभाव के कारण देश की 90 प्रतिशत मेधा के साथ अन्‍याय हुआ है। श्री तनेजा ने मध्‍य-प्रदेश तमिलनाडु आदि राज्‍यों का अनुभव साझा करते हुए कहा कि अब हिंदी के साथ-साथ अन्‍य भारतीय भाषाओं में उच्‍च शिक्षा के प्रति आकर्षण बढ़ा है। केंद्र सरकार की नीतियां भी अनुकूल हैं। मध्‍य प्रदेश के संदर्भ में उन्‍होंने कहा कि केवल एक कॉलेज में नहीं बल्कि राज्‍य के सभी मैडिकल कॉलेज में हिंदी माध्‍यम से पढ़ाई प्रारम्‍भ करनी चाहिए। उन्‍होंने महीने में दो बार रीव्‍यू का भी सुझाव दिया।

केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्‍यक्ष अनिल शर्मा जोशी ने कुछ समाहार कुछ सुझाव देते हुए कहा कि मध्‍य प्रदेश के गांधी चिकित्‍सा महाविद्यालय द्वारा अप्रैल-मई 2022 से चिकित्‍सा शिक्षा हिंदी में प्रारम्‍भ किया जाना स्‍वागत योग्‍य कदम है। किंतु हमें पूर्व के अनुभवों के प्रति सजग होकर काम करना होगा ताकि उसकी पुनवृत्ति की गुंजाइश न रहे। (ज्ञात हो कि दस एक साल पहले भी मध्‍य प्रदेश में हिंदी माध्‍यम से चिकित्‍सा शिक्षा प्रारम्‍भ की गई थी किंतु अपरिहार्य कारणों उसे स्‍थगित करना पड़ा था।

श्री जोशी ने वॉलीवुड के प्रसिद्ध निदेशक डॉ चंद्र प्रकाश द्विवेदी की हिंदी पक्षधरता का जिक्र करते हुए कहा कि आज केवल मध्‍य प्रदेश नहीं बल्कि देश के सभी प्रांत अपनी मातृभाषा भारतीय भाषाओं में उच्‍च शिक्षा का अध्‍यन करना चाहते हैं। उन्‍होंने कहा कि एआईसीटीई अनुवाद के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाते हुए इंजीरिंग का पाठ्यक्रम तैयार करने में जुटा रहा है। मैडिकल के पाठ्यक्रम में भी उसकी मदद् ली जा सकती है। श्री जोशी ने केंद्रीय हिंदी संस्‍थान की ओर से हर संभव मदद का आश्‍वासन दिया तथा कहा कि राष्‍ट्रीय स्‍तर पर इसके लिए काम किया जाना चाहिए। अंत में सिंगापुर से जुड़ी संध्‍या सिंह सभी प्रतिभागियों का धन्‍यवाद किया।

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