नोट- इस लेख के लेखक नरेंद्र दिवाकर जी है। यह शोध लेख कुश्ती विषय पर आधारित है। लेख की सामग्री विभिन्न स्रोतों से संकलित किया गया है। अब भी संकलन जारी है। विश्वास है कि शोधकर्ताओं के लिए यह लेख काफी लाभदायक साबित होगी। लेखक ने तेलंगाना समाचार से आग्रह और सुझाव दिया कि वह इसे क्रमश…लिखेंगे। अर्थात जैसे-जैसे सामग्री मिलती रहेगी, वैसे-वैसे भेजते रहेंगे। उत्तम लेख के लिए हम लेखक के आभारी है]
शिक्षा और चेतना के आभाव के कारण अपने पुरखों और क्रांतिकारियों के इतिहास जान पाना या इतिहास लिखना असंभव होता है। यही कारण है कि वंचित जातियों के नायकों पर शोध जरूरी हैं। जैसे-जैसे शोध होंगे वैसे-वैसे ही नए तथ्य और गुमनामी के अंधेरे में खोए नायक उद्घाटित होंगे। आज एक ऐसी ही सख्शियत अजयी धोबी की जयंती (अनुमानित) है जो पराक्रमी, बहादुर, कुशल, पहलवान, धोबिया पछाड़ दांव के सृजनकर्ता के रूप में सुविख्यात है। जिस पर न के बराबर ही लिखा गया है। उनके बारे में जो कुछ भी लिखा हुआ मिलता है या पता लगता है वह सब वीर लोरिक पर लिखे गए साहित्य में ही मिलता है। पहलवान अजयी और वीर लोरिक का गुरु शिष्य संबंध एवं मित्रता आज भी मिशाल की तरह है। वीर लोरिक का नाम हम सबने सुना ही होगा!
वीर लोरिक उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश की अहीर (यादव समुदाय) जाति का एक दिव्य चरित्र है। लोरिक की कथा लोरिकायन, जिसे अहीर जाति सहित अन्य जातियों का ‘रामायण’ का दर्जा दिया जाता है (डॉ अर्जुन दास केशरी जी के अनुसार)। एस एम पांडेय जी ने इसे भारत के अहीर कृषक वर्ग का ‘राष्ट्रीय महाकाव्य’ कहा है, इस महाकाव्य में कई छोटे-छोटे राज्यों स्त्रीधन, पशुधन तथा शक्ति प्रदर्शन आदि का वर्णन है। मूलतः यह महाकाव्य वीर लोरिक के जीवन लोरिक-चंदा या मंजरी की प्रेमकथा पर केन्द्रित है। वीर लोरिक को ऐतिहासिक महानायक व अहीरों के महान पराक्रमी पुरखा के रूप में देखा जाता है।
इसी महाकाव्य का एक महत्वपूर्ण चरित्र है वीर लोरिक का गुरु पहलवान अजयी धोबी। अजयी धोबी का जन्म (अनुमानतः ग्यारहवीं सदी में) भरतपुर (वर्तमान में बलिया जनपद) परगना बिहियापुर डंड़ार स्थित गउरा या गौरा गांव में पिंजला धोबी के घर हुआ था। इनके काल निर्धारण को लेकर काफी विवाद है, कुछ लोग ईसा पूर्व का तो कुछ मध्य युग का मानते हैं।
अजयी धोबी एक कुशल योद्धा थे। कुश्ती में तो उनका कोई सानी नहीं था। न केवल वे अपितु उनकी पत्नी बिजवा भी एक कुशल पहलवान थीं, जाहिर सी बात है वह बहुत गुणग्राही रही होंगी तभी तो कुश्ती के दांवपेंच अपने पति अजयी से सीखी होंगी क्योंकि उस समय में महिलाओं के लिए कुश्ती लड़ना ही मुमकिन नहीं था तो अखाड़े में पुरुषों के आधिपत्य वाले खेल के दांवपेंच सीखने को कौन कहे।
एक बार जब अजयी पहलवान कहीं बाहर थे और लोरिक को जरूरत पड़ी तो अजयी की पत्नी बिजवा ने भी दांव सिखाया और उसी दांव से लोरिक ने बण्ठवा को पराजित किया था। यही कारण था कि अजयी और उनकी पत्नी बिजवा को अहीर जाति के लोग खूब सम्मान देते थे।
जब अजयी का जन्म हुआ था तो लोरिक के बड़े भाई संवरू (योगी का वेश धारण कर गए थे) के कहने पर अजयी के माता-पिता ने कपड़े धोने का काम बंद कर अपना काम दूसरों को दे दिया था और अजयी के लिए दूध का प्रबंध कर दिया गया था। इधर अजयी धीरे-धीरे बड़ा हुआ और अखाड़े में कुश्ती लड़ने जाने लगा। कुश्ती लड़ने और कसरत करने के कारण अजयी का शरीर काफी बलिष्ठ हो गया था।
उस समय कुश्ती की प्रतियोगिता या दंगल का आयोजन खूब होता था, जो कि कई-कई दिनों (आज-कल एक-दो दिन का ही आयोजन होता है) तक चलता रहता था। एक बार अजयी सुहवल में कुश्ती की प्रतियोगिता में शामिल होने गए। वहां पर राजा बामरी के लड़कों झिंगुरी और भीमली का बोलबाला था उनके सामने कोई टिक नहीं पाता था, उन्हें अपनी पहलवानी पर बहुत घमंड भी था। अजयी का मुकाबला भी इन दोनों से हुआ।
अजयी ने झिंगुरी और भीमली को धोबिया पछाड़ दांव से इतनी पटखनी दी कि लोगों ने दांतों तले उंगली दबा ली। बाद में इन दोनों को बुखार आ गया। अपने पुत्रों को हारा हुआ देखकर राजा बामरी को बहुत आघात पहुंचा तब उसने अपने पुत्रों को बहुत फटकारा भी। बामरी ने अपने मंत्रियों से अजयी के बारे में पता करना चाहा कि उसका नाम-गांव क्या है तो सबने कहा कि नहीं पता। एक मंत्री ने कहा कि हम तो कुश्ती देखने भी न गए थे कि वीर कैसा है और कौन है?
इस पर राजा बामरी ने गउरा के सभी लड़ाकों को बुलवाया। जब अजयी ने अपने गांव का परिचय विस्तार से दिया और लोरिक व उसके बड़े भाई संवरू के बारे में बताया तो सबकी आंखें फटी रह गईं। इस घटना के बाद कुश्ती के मामले में अजयी की तूती बोलने लगी। इधर झिंगुरी और भीमली मन में खार खाए बैठे थे और अपने पराजय का बदला लेना चाहते थे। पुनः सुहवल में झिंगुरी और अजयी में मुकाबला हुआ तो अजयी ने झिंगुरी को बुरी तरह से हराया। झिंगुरी अपनी दोनों हार का बदला लेने के लिए अजयी के साथ छल किया और धोखा देकर अजयी का पैर फंसा दिया जिससे अजयी बुरी तरह से घायल हो गया। सभी पहलवान अखाड़ा छोड़कर चले गए अजयी वहीं अचेत पड़ा रहा।
कुछ लोगों ने सुहवल के ही मक्खू धोबी से कहा कि यह तुम्हारी ही जाति का है, इसका यहां कोई नहीं है। तब मख्खू धोबी ने उसके मुंह पर पानी का छीटा मारा और उसके दांतों (अचेत होने के कारण दांत बैठ गए थे) को खोलकर मुंह में पानी डाला। फिर उन्हीं लोगों की सहायता से मचोला या खटिया पर लादकर अजयी को अपने घर लाया। मख्खू धोबी की पत्नी और बेटी बिजवा ने एक सप्ताह तक खूब सेवा की तब जाकर अजयी को होश आया। घी और आटा का हलवा खिलाया और सेवा की। सात माह की अनवरत सेवा के बाद ही अजयी ठीक हो सका। इधर मख्खू और उसकी पत्नी ने बेटी बिजवा का विवाह अजयी से करने का फैसला किया और गुप्त रूप से तैयारी शुरू कर दी। बिजवा की मां राजा बामरी के मंत्री के पास गई और छत्तीस जातियों की कुंवारी कन्याओं की दुर्दशा का वर्णन किया। वह इसी के बहाने अपनी बेटी की शादी करने की बात भी सूचित करना चाहती थी।
इससे यह पता चलता है कि उस दौर में बिना राजा की अनुमति के आमजन अपनी कन्याओं का विवाह नहीं कर पाते थे। जब बात नहीं बनी तो पुनः पति-पत्नी दोनों राजा बामरी की की कचहरी में बेटी के विवाह की अनुमति लेने पहुंचे। जब राजा बामरी को पता चला कि मख्खू अपनी बेटी का विवाह अजयी पहलवान से करना चाहते हैं तो वह भड़क गया और मख्खू को डांटने लगा। तो मंत्री ने बताया कि अजयी इतने दिन से बीमार है, 7 माह से बिस्तर पर ही पड़ा रहा, अब वह किसी काम का नहीं रहा, उसकी वीरता ही खत्म हो गई होगी और वह नामर्द बन गया होगा। तब उसने चुपचाप शादी की अनुमति दे दी और बिना मण्डप, बिना कलश, बिना ब्राह्मण के वेदपाठ के ही शादी करने की शर्त लगा दी। मख्खू और उसकी पत्नी ने इसे विधि का विधान मान अपनी बेटी का विवाह अपने आंगन में अजयी धोबी से ही कर दिया।
विवाह के दौरान जब राजा बामरी की बेटी ने अजयी को पीले कपड़े में देखा तो वह आवाक रह गई और मन ही मन बिजवा से जलने लगी। सोच रही थी कि बिजवा की किस्मत कितनी अच्छी है जो अजयी पहलवान (इतने अच्छे वर) से इसका विवाह हो रहा है। पीले कपड़ों में अजयी राजकुमार से कम नहीं लग रहा था और वह बिजवा की सेवा और देखभाल से पहले से भी ज्यादा हृष्ट-पुष्ट हो गया था।
अजयी को उसके सास-ससुर कुछ न दे पाने के लिए बहुत परेशान थे तो अजयी ने कहा कि आप परेशान न हों पहले ही आप लोगों ने इतना कुछ किया है कि उसके आगे सब कुछ कम है। अजयी जब बिजवा को विदा करा रहा था तो छत्तीस जाति की लड़कियां भी बहुत खुश हो रही थीं, कहीं न कहीं उन्हें भी अपनी शादी की उम्मीद अवश्य जगी होगी। जब बिजवा को लेकर अजयी अपने गांव गउरा पहुंचा तो वहां पर उत्सव सा माहौल हो गया था। क्रमश…
– लेखक नरेेंद्र दिवाकर (98396 75023)