पिछले कुछ वर्षों में हैदराबाद शहर में निर्माण क्षेत्र तेजी से विकास हो रहा है। हैदराबाद में कई गगनचुंबी इमारतें देखने को मिल रही हैं। जीएचएमसी का दावा है कि तेलंगाना सरकार द्वारा 2020 में शुरू की गई टीएसबीपास प्रणाली के माध्यम से बिल्डिंग परमिट जारी करने की गति में वृद्धि हुई है। सरकार की ओर से बड़े-बड़े प्रोजेक्टों के लिए भी नियमों के मुताबिक जल्द-जल्द अनुमति दी जा रही है। 75 गज तक की भूमि पर तत्काल पंजीकरण के माध्यम से 75-600 वर्ग मीटर के भीतर भूमि पर निर्मित संरचनाओं की तत्काल स्वीकृति के माध्यम से और इससे अधिक भूमि भवनों को सिंगल विंडो के जरिए तुरुंत अनुमति जा रही है।
ग्रेटर हैदराबाद में आवास निर्माण में बिल्डरों को वित्तीय वर्ष 2022-23 में 13,522 निर्माणों की मंजूरी मिली है। इससे पहले वर्ष 2021-22 में 17,334 परमिट जारी किये गये। अर्थात तीन हजार से ज्यादा परमिट कम हो गये। हालाँकि, बिल्डरों ने विश्लेषण किया है कि कोविड के कारण स्थगित की गई सभी अनुमतियों को वित्तीय वर्ष 2021-22 के साथ लिये जाने से बेस एफेक्ट के चलते अनुमतियों में वृद्धि हुई है।

हैदराबाद शहर में गगनचुंबी इमारतें हर साल बढ़ रही हैं। पिछले वित्तीय वर्ष में 40 मंजिल से ऊंची चार परियोजनाओं को मंजूरी दी गई थी। इनमें से एक 50 मंजिला प्रोजेक्ट है। इसकी ऊंचाई 165 मीटर है। 10 से 40 मंजिल की 53 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। इनमें वाणिज्यिक श्रेणी में सात परियोजनाएं हैं। गगनचुंबी इमारतों की परियोजनाएं पहले की तुलना में बढ़ी हैं।
दूसरी ओर, यदि बड़ी संख्या में निर्माण कार्यों को मंजूरी मिल रही है, तो निर्माण क्षेत्र में कुशल श्रमिकों की कमी के कारण बिल्डरों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। वर्तमान समय में हमारे देश से अनेक श्रमिक उचित वेतन न मिलने के कारण विदेश जा रहे हैं। परिणामस्वरूप यहां के काम के लिए पड़ोसी राज्यों के श्रमिकों पर पर निर्भर होना पड़ रहा हैं। ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई हैं उन्हें अधिक वेतन देकर काम लेना पड़ रहा है। खासकर निर्माण क्षेत्र में यह कमी साफ नजर आती है।

हैदराबाद में इस समय गगनचुंबी निर्माण कार्य जोरों पर जारी हैं। 60 मंजिल तक निर्माण कार्य के लिए कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। बिल्डरों का कहना है कि कुशल श्रमिकों की कमी है। इसीलिए प्रवासी श्रमिकों पर निर्भर होना पड़ा हैं।
निर्माण क्षेत्र के काम करने वाले श्रमिक अधिकांश प्रवासी श्रमिक हैं। ये श्रमिक बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, यूपी जैसी जगहों से आते हैं और यहां काम करते हैं। स्थानीय श्रमिक उचित वेतन नहीं मिलने के काण दुबई और अन्य अरब देशों में जा रहे हैं और वहां निर्माण क्षेत्र में रोजगार पा रहे हैं।
यह देख क्रेडाई तेलंगाना ने सरकार के निर्देशानुसार स्थानीय लोगों का कौशल विकास कर उन्हें रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने की योजना तैयार की है। कौशल विकास करके निर्माण क्षेत्र में स्थानीय श्रमिकों के लिए रोजगार के अवसर पैदा किये जा सकते हैं। क्रेडाई चैप्टर्स की ओर से ग्रामीण स्तर से इच्छुक श्रमिकों का चयन करने से लेकर ऑनसाइट प्रशिक्षण के लिए क्रेडाई बिल्डर और अन्य बिल्डरों की साइटों का उपयोग करने तक विभिन्न योजनाएं हैं। इस संबंध में मंत्री केटीआर के पिछले सुझाव के अनुसार एक कार्य योजना बनाई जाएगी और मंत्री और अधिकारियों को प्रस्तुति दी जाएगी।

इंजीनियरिंग के छात्र शैक्षणिक रूप से अच्छे हैं। मगर व्यावहारिक ज्ञान में पर्याप्त योग्यता नहीं दिखा पा रहे हैं। ज्यादातर लोग 10वीं कक्षा से पहले पढ़ाई छोड़ने वाले सीधे काम से जुड़ रहे हैं। वरिष्ठ श्रमिकों के साथ काम करना सीख रहे हैं। इन्हें निर्माण क्षेत्र से जुड़ी न्यूनतम तकनीकी जानकारी नहीं है। निर्माण यूनियनों का कहना है ऐसे श्रमिकों को कौशल की सही समझ नहीं होती है।
इंजीनियरिंग, पॉलिटेक्निक और आईटीआई कॉलेजों के साथ-साथ आर्किटेक्ट, स्ट्रक्चरल इंजीनियर, कंस्ट्रक्शन सोसायटी को सरकार के साथ समन्वय बनाकर काम करना होता है। वर्तमान में ये सभी संस्थाएं ऐसे काम कर रही हैं मानो उनकी अपनी संस्थाएं हैं। सरकारी एवं निजी महाविद्यालयों की मूलभूत सुविधाओं एवं शिक्षकों का उपयोग कार्य समय के बाद इनकी सेवाओं का उपयोग किया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सरकार की वित्तीय सहायता से सभी को पर्याप्त प्रशिक्षण प्रदान किया जाए।
श्रमिकों के संबंध में यह निष्कर्ष निकाला गया कि प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन, टाइल लेयर, पेंटर, राजमिस्त्री, नाई, बढ़ई किसी भी ग्रेड के कौशल विकसित करने के लिए 180 दिनों के प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। 90 दिन कक्षा में और वरिष्ठ इंजीनियरों की देखरेख में साइट पर अन्य 90 दिनों के लिए व्यावहारिक शिक्षण प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
निर्माण उद्योग के बिल्डरों का अनुमान है कि निर्माण क्षेत्र को अगले दस वर्षों में देश में 4.5 करोड़ कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होगी। आँकड़े बताते हैं कि केवल एक लाख लोग ही ऐसे हैं जिन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त किया है। अन्य लोग काम पर सीख रहे हैं। बिल्डरों का कहना है कि पूर्व प्रशिक्षण से न केवल काम की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है बल्कि मजदूरी भी अधिक पा सकते हैं।