हैदराबाद: साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘साहित्य मंथन’ के तत्वावधान में पुस्तक-चर्चा कार्यक्रम का आयोजन (सिद्धार्थ अपार्टमेंट, रामंतापुर) किया गया। प्रत्यक्ष और आभासी माध्यम से संपन्न इस संयुक्त कार्यक्रम में अपभ्रंश भाषा और जैन साहित्य के विद्वान, कवि और अध्यापक डॉ प्रेमचंद्र जैन की स्मृति में प्रकाशित महाकाय ग्रंथ ‘इतिहास हुआ एक अध्यापक’ के विविध पक्षों पर व्यापक विचार विमर्श हुआ।
बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व अधिष्ठाता प्रोफेसर देवराज ने डॉ प्रेमचंद्र जैन के व्यक्तित्व, कृतित्व, सामाजिक सक्रियता और विचारों की विवेचना के सिलसिले में कहा कि अध्यापक हो या कवि, दोनों का सामाजिक दायित्व कक्षा और किताब के बाहर व्यापक जन-गण से जुड़े बिना पूरा नहीं माना जा सकता। विवेच्य ग्रंथ इस बात का गवाह है कि स्वर्गीय प्रेमचंद्र जैन सामाजिक और राष्ट्रीय एकता के कार्यों भी उसी तरह सक्रिय रहे, जिस तरह व्याख्यान और लेखन में। समाज ही विद्या और साहित्य की प्रयोगशाला है। इसे इस ग्रंथ में चरितार्थ होते दिखाया गया है।
ग्रंथ की समीक्षा करते हुए जामनगर (गुजरात) से डॉ. चंदन कुमारी ने बताया कि इसमें डॉ.प्रेमचंद्र जैन के समस्त अप्रकाशित साहित्य के अलावा देश भर के 45 लेखकों के संस्मरण और आलोचनात्मक आलेख शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि इनमें से 8 लेखक हैदराबाद से हैं, जिन्हें इस अवसर पर ग्रंथ की लेखकीय प्रतियाँ ‘साहित्य मंथन’ की अध्यक्ष डॉ. पूर्णिमा शर्मा के हाथों सादर भेंट की गईं।
कार्यक्रम का संचालन डॉ ऋषभदेव शर्मा ने किया। आरंभ में डॉ बी बालाजी ने गुरु-वंदना की तथा अंत में प्रवीण प्रणव ने एक सामयिक ग़ज़ल सुनाई। अवसर पर डॉ गुर्रमकोंडा नीरजा, डॉ सुपर्णा मुखर्जी, डॉ मंजु शर्मा और शीला बालाजी ने भी ग्रंथनायक के बारे में अपने विचार प्रकट किए। संपादक दानिश सैफ़ी के अलावा प्रो गोपाल शर्मा, समीक्षा शर्मा, लिपि भारद्वाज और ध्रुवी ने कार्यक्रम की सफलता में सराहनीय भूमिका निभाई।