[राइटर्स एंड जर्नलिस्ट एसोशिएशन आफ इंडिया (WAJA) के तेलंगाना इकाई की वर्चुवल सभा 23 अगस्त को संपन्न हुई। यह सभा तेलुगु के प्रमुख क्रांतिकारी कवि निखिलेश्वर के केंद्रीय साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत होने के संदर्भ में उनके सम्मान में आयोजित की गयी थी। इस सभा में अनेक साहित्यकार, पत्रकार, लेखक और वक्ताओं ने भाग लिया। वाजा के तेलंगाना इकाई के अध्यक्ष एनआर श्याम इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की। उनके अध्यक्षीय भाषण का संक्षिप्त संदेश ‘तेलंगाना समाचार’ के पाठकों के लिए यहां दिया जा रहा है। विश्वास है कि उभरते कवि और लेखकों को यह संदेश प्रभावित करेगा। – संपादक]
हाल ही में उनकी पत्नी का देहांत हुआ है। मैं दिवंगत निखिलेश्वर जी के पत्नी के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। सबसे पहले मैं निखिलेश्वर जी को केंद्रीय साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत होने पर बधाई देता हूं। निखिलेश्वर तेलुगु में दिगंबर कविता आंदोलन के एक प्रमुख स्तंभ रहे हैं। दिगंबर कविता का काल 1960 से 1970 तक का रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जो मोहभंग हुआ है, उसके प्रति तीव्र आक्रोश ही दिगंबर कवियों की कविताएं हैं। इस दिगंबर कविता आंदोलन को निखिलेश्वर औक तेलुगु के पांच अन्य कवियों ने साथ मिलकर आरंभ किया था। इनमें पहली शर्त थी जाति सूचक अपने नामों को बदल जाये।
दिगंबर कवियों के असली नाम
इनके मूल स्तंभों में से एक मानेपल्ली हृषिकेश राव का नाम बदलकर नग्नमुनि रखा गया। इसी तरह बद्दम भास्कर रेड्डी का अवतार चेराबंडा राजू के रूप में हुआ। तेलुगु में चेरा का अर्थ जेल और बंडा का अर्थ पत्थर है। यानी वो जेल के पत्थर का राजा बन गये। अपने नाम के अनुरुप ही वे जेल के पत्थर साबित हो गये। जेल की यातनाएं उन्हें कुछ नहीं कर सकी। इन यातनाओं के कारण ही वो मौत का शिकार हो गये। इसी तरह कम्मिशेट्टी वेंकटेश्वर राव को महास्वप्न बन गये। वीर राघव चार्युलु का नाम ज्वालामुखी रखा गया और मनमोहन सहाय का नाम भैरवय्या किया गया। निखिलेश्वर का असली नाम था- कुम्भम यादव रेड्डी।
दिगम्बर कवियों के तीन कविता संकलन
इन सबकी विशेषता यह थी कि ये सब इन्ही नामों में पूरी तरह घुलमिल गये। ये सब बदले गये उप नामों से ही प्रसिद्ध हुए और हैं। अब स्थिति यह बन गई है कि कुछ ही लोग ही उनके असली नामों से परिचित हैं। साल1970 में दिगम्बर आंदोलन के समाप्ति की घोषणा कर दी गई। इस दरम्यान इन दिगम्बर कवियों के तीन कविता संकलन आये जो तेलुगु कविता साहित्य में अपना एक खास महत्व रखते हैं।
“लेखकों/ बुद्धिजीवियों! आप किस तरफ हैं?
उसी साल विशाखा में एक साहित्यिक सभा में कुछ युवकों ने एक पाम्प्लेट बांटा था। उसमें सीधा सवाल किया था कि हे “लेखकों/ बुद्धिजीवियों! आप किस तरफ हैं? शोषकों की तरफ या शोषितों की तरफ?” इस कर-पत्र से तेलुगु लेखकों और बुद्धिजीवियों में एक खलबली सी मचा गई। और यही करपत्र विरसम् (विप्लव रचयितला संघम) यानी क्रांतिकारी लेखक संघ की स्थापना का कारण बन गया। निखिलेश्वर इसके संस्थापक सचिव बने। विरसं के कार्यकलापों के बारे में अलग से बतलाने की आवश्यकता नहीं है। वे केवल लेखक और कवि ही नहीं थे, बल्कि ह्युमन राइट आंदोलनों भी बहुत सक्रिय हो गये।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद समाजवाद
अपने क्रांतिकारी लेखन और मानव अधिकार हनन के विरुद्ध आवाज उठाने के जुर्म में चेराबंडा राजू और ज्वालामुखी के साथ उन्हें भी जेल के सलाखों के पीछे डाल दिया गया था। निखिलेश्वर की कविताएं बहुत ही सटीक होती हैं। एक कविता में उन्होंने लिखा है कि बड़ी मछली जब तक जिंदा रखना चाहती है तब तक ही छोटी मछली जिंदा रहती है। इस तरह निखिलेश्वर ने कार्पोरेट शक्तियों के चरित्र को दर्शाया है। उनके घिनौने चेहरों का दर्शन कराया है। एक अन्य कविता में वे लिखते हैं कि हैदराबाद के अबिड्स में मेन पोस्ट आफिस के सामने नेहरू जी की एक प्रतिमा है। उनके एक हाथ पर उड़ने के लिए तैयार एक कबूतर बैठा हुआ है। इसे अपनी कविता में बिंब की तरह उपयोग कर बतलाते हैं कि 1952 से वह कबूतर आज भी उसी तरह बैठा हुआ है। अर्थात स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से समाजवाद का जो सपना दिखलाया गया था वह कबूतर की तरह आज भी जहां का तहां ही है।
निखिलेश्व को पुरस्कृत कर स्वयं केंद्रीय साहित्य अकादमी गौरन्वित
एक समय जिस सरकार ने निखिलेश्वर जी को जेल में डाला था आज उसी सरकार ने पुरस्कार से सम्मानित किया है। मेरा मानना है कि निखिलेश्व को पुरस्कृत कर स्वयं केंद्रीय साहित्य अकादमी गौरन्वित (पुरस्कृत) हुई है। परन्तु इस पुरस्कार के बाद भी वे लीक से नहीं हटे हैं। समय-समय पर उन्होंने बुद्धिजीवियों के गिरफ्तारी के विरुद्ध आवाज उठाई और उठा रहे है। वाजा की ओर इस वर्चुअल मीट में निखिलेश्वर जी बारे में बोलने का जो मौका दिया गया है। इसीलिए मैं वाजा का आभारी हूं। एक बार फिर क्रांतिकारी कवि निखिलेश्वर को केंद्रीय साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत किये जाने पर बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं। धन्यवाद।
वाजा तेलंगाना इकाई के अध्यक्ष एन आर श्याम