चित्रकूट (शोधछात्र रामचंद्र की रिपोर्टिंग) : 8 दिसंबर को चित्रकूट (बुंदेलखंड क्षेत्र-उत्तर प्रदेश) जिले के अमानपुर माफी में ममता देवी के परिवार ने पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही मृत्युभोज जैसी अमानवीय प्रथा का त्यागकर अपने पति श्रद्धेय वंशगोपाल एवं बड़े बेटे श्रद्धेय मनीष कुमार की स्मृति में कर्वी स्थित दृष्टि नेत्रहीन बालिका विद्यालय को 33,000 रुपये की आर्थिक सहायता, एक गरीब बालिका को स्कूल जाने के लिए साइकिल भेंट की और श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया।
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ज्ञात हो पिछले 9 अगस्त को पेशे से शिक्षक अवनीश कुमार के पिता का कैंसर के कारण निधन हो गया था। इसके कुछ ही दिनों बाद उनके बड़े भाई का भी हृदयाघात से निधन हो गया। अवनीश के पिता शिक्षा के पेशे से जुड़े हुए थे और शोषणमुक्त समाज बनाने का सपना देखते थे। गरीब व वंचित तबके के लोगों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। जिसकी बदौलत उनके बेटे सहित पूरे परिवार ने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए मृत्युभोज जैसी अमानवीय, अंधविश्वासी परंपरा का त्याग करने का निर्णय लिया।
स्मृति सभा को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता डॉ नरेंद्र दिवाकर ने कहा कि पढ़े लिखे लोगों के द्वारा मृत्यभोज करना अपनी शिक्षा के साथ अन्याय करना है। हमें चाहिए कि जो पैसे हम मृत्युभोज पर खर्च करते हैं उस राशि को हमें उसे स्कूल, लाइब्रेरी, अस्पताल बनाने में खर्च करना चाहिए। यह विज्ञान और तकनीक का युग है। इसलिए हमें चाहिए कि जो प्रथा आतर्किक और पाखंड पर आधारित है उसको त्यागे और कुप्रथाओं से मुक्त समाज बनाने के लिए आगे आये।
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एक अन्य वक्ता आलोक बौद्ध ने कहा कि श्राद्ध और मृत्युभोज एक अमानवीय प्रथा है। ऐसी प्रथाओं का जल्द ही अंत कर देना चाहिए। शिक्षक रामलखन ने बताया कि वंश गोपाल ने उनके जीवन को काफी प्रभावित किया और वो उनके लिए पिता और मित्र की तरह थे। दया प्रकाश बौद्ध ने संविधान की प्रस्तावना को पढ़ा और हर तरह के पूजा–पाठ को त्यागने के लिए अपील की क्योंकि यह सिर्फ और सिर्फ फिजूलखर्ची है। इससे हमारे जीवन में कोई बदलाव नहीं आता है।
अध्यापिका सुनीता ने कहा कि हमारे समाज में महिलाएं अंधविश्वास और आडम्बर को ज्यादा लेकर चलती है। इसलिए महिलाएं को आगे आना चाहिए और कुरीतियों को त्यागना चाहिए तभी हमारा समाज आगे बढ़ेगा। हम आडम्बर और पाखंड इसलिए मानते हैं क्योंकि हम डरते है। क्योंकि हमें ऐसा बताया गया है अगर हम यह कर्मकांड नहीं करेंगे तो हमारे साथ अनहोनी हों जाएगी। इसी डर के कारण हमारा समाज इस प्रथा को मानते हैं। अगर हम डरना बंद कर देंगे तो आसानी से हम आडम्बर से बच सकते हैं।
शिक्षक संग्राम सिंह ने वंशगोपाल के साथ की सुखद यादों को साझा किया और उनके व्यक्तित्व के सभी पहलुओं को समाने रखा। केशव बाबू ने श्राद्ध के पीछे मनोविज्ञान के विषय में चर्चा की और बताया कि इसके पीछे भय और धर्म ग्रंथों की कथाएं है। इसलिए अंधविश्वास विरोधी समाज समाज बनाने के लिए इनका त्याग करना जरूरी है।
इलाहाबाद से आए रितेश विद्यार्थी ने कहा कि पाखंड–अंधविश्वास का विरोध करने और वैज्ञानिक सोच को फैलाने की जिम्मेदारी सिर्फ हम कुछ लोगों की नहीं बल्कि सरकार की है। हालांकि सरकार और व्यवस्था खुद वैज्ञानिक चेतना की जगह अंध विश्वास को फैलाती है। इसलिए इस तरह के कर्मकांड विरोधी कार्यक्रम को ज्यादा से ज्यादा करने की जरूरत है और पाखंड के खिलाफ हम सबको मिलकर एक सामाजिक आंदोलन खड़ा करने की जरूरत है।
स्मृति सभा में मुख्य रूप से प्रियंका, मनीष कुमार, गयाप्रसाद बौद्ध, दिनेश आर्टिस्ट, आशीष कुमार, लवकुश कुमार, डॉ. अनुपम कुमार, आनंद यादव, लवलेश कुशवाहा, सुधाकर चौधरी ने भी अपनी बात रखी। सभा में मुख्य रूप से दिव्या, पूनम, शकुंतला देवी, संगीता देवी, वंदना वर्मा, गीता देवी, प्रदीप, प्रभाकर, लवलेश बाबू, बृजेश कुशवाहा, जग्गीलाल, श्रवण कुमार, अनिलकुमार, रामनरेश, सौरभ, राविन सहित लगभग 200 लोग मौजूद रहे।
सभी वक्ताओं ने अपनी बातचीत में मृत्युभोज जैसी अमानवीय प्रथा को बोझ की तरह ढ़ोने की बजाय इसका त्याग करने पर जोर दिया। धन्यवाद ज्ञापन वंशगोपाल के पुत्र अवनीश कुमार ने किया और सभा का संचालन शोधछात्र रामचंद्र ने किया।