केंद्रीय हिंदी संस्थान: ‘हिंदी सीखने-सिखाने की नई पद्धतियाँ, नई सोच की जरूरत’ पर संगोष्ठी, ख्याति प्राप्त हिंदी विद्वानों के ये हैं विचार

हैदराबाद: केंद्रीय हिंदी संस्‍थान, अंतरराष्‍ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्‍व हिंदी सचिवालय के तत्‍वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से भाषा विमर्श की श्रृंखला के अंतर्गत ‘हिंदी सीखने-सिखाने की नई पद्धतियाँ, नई सोच की जरूरत’ विषय पर आभासी संगोष्ठी आयोजित की गई। जिसमें इस क्षेत्र के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त हिंदी विद्वानों ने अपने विचार प्रकट किए। इस कार्यक्रम में सैकड़ों की संख्या में देश विदेश से जुड़े प्रतिभागियों द्वारा आभासी रूप से नई और अद्यतन जानकारी सुरूचपूर्ण ढंग से आत्मसात की गई।

कार्यक्रम की अध्यक्षता

केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्व हिंदी सचिवालय के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा आयोजित आभासी वैश्विक संगोष्ठी का विधिवत आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता अमेरिका के पेंसिल्वेनियाँ विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त आचार्य डॉ सुरेन्द्र गंभीर द्वारा की गई जिसमें 25 से अधिक देशों के हिंदी से जुड़े विचारकों, साहित्यकारों और भाषाकर्मियों, शिक्षकों तथा शोधार्थियों ने उत्साहवर्धक ढंग से भाग लिया।

डॉ राजेश कुमार का बखूबी संचालन

कार्यक्रम के आरंभ में भोपाल से साहित्यकार डॉ जवाहर कर्नावट ने सबका आत्मीयतापूर्वक स्वागत किया तथा दिल्ली से साहित्यकार एवं विद्यालयी शिक्षा के पूर्व निदेशक डॉ राजेश कुमार द्वारा बड़े ही संयत भाव से कार्यक्रम को संयोजित करते हुए बखूबी संचालन किया गया। उन्होंने वक्ताओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए प्रस्तुति हेतु आमंत्रित किया।

प्रो हाइन्स वर्नर वेसलर का संक्षिप्त प्रकाश

विशिष्ट वक्ता के रूप में स्वीडन के उप्साला विश्वविद्यालय के भाषा विज्ञान एवं भारतीय वाङ्ग्मय के प्रो हाइन्स वर्नर वेसलर ने विदेश में हिंदी शिक्षण की पेरिस में 1814 में की गई शुरुआत से लेकर अब तक की स्थिति पर संक्षिप्त प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि महाशक्ति के रूप में उभरते भारत को देखते हुए पूरी दुनियाँ में हिंदी के विदेशी भाषा के रूप में पढ़ाने के लिए बहुत हिम्मत की निहायत जरूरत है। इसके ऑनलाइन मानक पाठ्यक्रम शुरू होने चाहिए।

संपादक उमेश मेहता की पुरजोर अपील

हिंदी प्रचारक और संपादक उमेश मेहता ने अपने देश विदेश के अनगिनत दौरों की अनुभवजन्यता के आधार पर हिंदी में ही बात करने की पुरजोर अपील की। अटलांटा यूनिवर्सिटी के प्रो ब्रजेश समर्थ ने कहा कि विश्व भाषा के लिए निराशा नहीं बल्कि निजदोषदर्शन करके सम्मान सहित प्रोत्साहन देना चाहिए। उन्होंने शिक्षक, शिक्षण और प्रशिक्षण के साथ समयानुरूप नए पाठयक्रम बनाकर लागू करने की सलाह दी।

प्रो सुनील बाबुराव कुलकर्णी का मन्तव्य

केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा के निदेशक प्रो सुनील बाबुराव कुलकर्णी का मन्तव्य था कि भाषा शिक्षण के पुराने उपकरणों की बजाय अब आधुनिक तकनीकी अधिक कारगर होगी जिसके लिए शिक्षक अद्यतन रहें और गुणवत्ता सहित शिक्षण हो। प्रो ललिता रामेश्वर ने कहा कि भाषा शिक्षण औपचारिकता की पूर्ति मात्र तक सीमित नहीं होना चाहिए। अमेरिका की प्रो कुसुम नैपसिक का कहना था कि युगीन परिस्थितियों में शिक्षण की समस्याओं का अविलंब निराकरण आवश्यक है। डॉ सुरेश कुमार उरतृप्त का मत था कि हिंदीतर विद्यार्थियों के लिए विशेष पाठ्यक्रम बनाया जाना चाहिए। जापान से पद्मश्री डॉ तोमियो मिजोकामी की गरिमामयी उपस्थिति और सान्निध्य अभिप्रेरक था।

आचार्य सुरेन्द्र गंभीर ने कार्यक्रम की सराहना की

अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रस्तुति देते हुए पेंसिल्वेनियाँ से समाज भाषा वैज्ञानिक आचार्य सुरेन्द्र गंभीर ने सभी वक्ताओं और कार्यक्रम की सराहना की तथा भाषा शिक्षण में नई सोच सहित ग्लोबल पहल की जरूरत बताई। उन्होंने कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए मार्गदर्शिका, मूल्यांकन टूल्स और आधुनिक प्रौद्योगिकी अपनाने का सुझाव दिया। वैश्विक दीर्घानुभवी प्रो गंभीर जी ने ऐतिहासिक सिद्धान्त, शिक्षण प्रविधि, अधिगम शैली, स्वाध्याय, प्रशिक्षक निष्पादन और शिक्षण रणनीति पर क्रमबद्ध रूप से प्रकाश डाला। उन्होने कहा कि प्रौद्योगिकी के अंतर्गत प्राधिकृत सामग्री, शिक्षार्थी सहभागिता, कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग, ऑनलाइन पाठ्यक्रम, वैश्विक पहुँच और शब्दार्थ तथा उच्चारण पर बल देना होगा जिससे विद्यार्थी विषय का कम से कम 90 प्रतिशत ज्ञान कक्षा से लेकर कर जाएँ और हम हिंदी का वैश्विक शिक्षण कर पाएँ।

खूब रहा सहयोग

संयोजन एवं सहयोग मॉरीशस से विश्व हिंदी सचिवालय की महासचिव डॉ माधुरी रामधारी, केंद्रीय हिंदी संस्थान के निदेशक प्रो सुनील कुलकर्णी, सिंगापुर से प्रो संध्या सिंह, कनाडा से डॉ शैलेजा सक्सेना यू के की साहित्यकार दिव्या माथुर एवं डॉ पदमेश गुप्त तथा भारत से प्रो वी जगन्नाथन, डॉ जवाहर कर्नावट, डॉ विजय मिश्र, डॉ विजय नगरकर, डॉ गंगाधर वानोडे तथा डॉ जयशंकर यादव द्वारा किया गया। तकनीकी सहयोग का दायित्व डॉ मोहन बहुगुणा और डॉ सुरेश मिश्र उरतृप्त तथा कृष्ण कुमार द्वारा बखूबी संभाला गया।

संचालन और आभार प्रकट

समूचा कार्यक्रम वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष अनिल जोशी के कुशल एवं सुयोग्य मार्गदर्शन में संचालित हुआ। अंत में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की विदुषी प्रो अरुणा अजितसरिया द्वारा सामूहिक विद्वता की समन्वययुक्त आवश्यकता का सुझाव देते हुए सभी अतिथियों, वक्ताओं एवं सुधी श्रोताओं के प्रति आत्मीयता से आभार प्रकट किया गया। यह कार्यक्रम यू-ट्यूब पर “वैश्विक हिंदी परिवार” शीर्षक से उपलब्ध है। रिपोर्ट लेखन का कार्य डॉ जयशंकर यादव ने किया।

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