सर्वविदित है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। साहित्य का उद्देश्य भी वही है जो जीवन का है यानी आनंद में विलीन हो जाना और सत्य की खोज आदि। आज की संगोष्ठी में पद्मश्री से सम्मानित साहित्यकार डॉ ज्ञान चतुर्वेदी जी के व्यंग्य उपन्यास ‘स्वांग’ पर साहित्यिक मंथन हुआ। तीन सौ चौरासी पृष्ठों के उपन्यास ‘स्वांग’ के जरिये बुंदेलखंड के कोटरा गाँव के जनजीवन को निरूपित किया गया है। जिसमें पहले अभिनय के जरिये किया जाने वाला स्वांग अब यथार्थ रूप ले चुका है। इसमें केवल बुंदेलखंड ही नहीं बल्कि समूचे हिंदुस्तान के तंत्र की विराट स्वांग में तब्दील हो जाने की कहानी है। इस उपन्यास में परिवेश का तटस्थ अवलोकन, मूल्यहीन सामाजिकता का सूक्ष्म विश्लेषण और करुणा से पगा निर्मम व्यंग्य समाया है। ज्ञान जी असाधारण लेखक एवं प्रमुख सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। कहना न होगा कि आज का युग व्यंग्य के क्षेत्र में ‘ज्ञान चतुर्वेदी युग’ के नाम से अभिहित किया जाता है।
हैदराबाद: केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद और विश्व हिंदी सचिवालय के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा आयोजित साप्ताहिक ई–आभासी संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का विषय पद्मश्री ज्ञान चतुर्वेदी के व्यंग्य उपन्यास ‘स्वांग’ पर रहा है।
व्यंग्य साहित्यकार प्रो राजेश कुमार ने व्यंग्य की महत्ता को रेखांकित किया
चर्चा की प्रस्ताविकी में व्यंग्य साहित्यकार प्रो राजेश कुमार ने व्यंग्य की महत्ता को रेखांकित करते हुए इसके विविध आयामों की चर्चा की। तदोपरांत केंद्रीय हिंदी संस्थान के हैदराबाद केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ गंगाधर वानोडे द्वारा अतिथि परिचय कराते हुए माननीय अध्यक्ष, विशिष्ट वक्ताओं एवं सुधी श्रोताओं से अपनेपन का अहसास कराते हुए शाब्दिक स्वागत किया गया तथा इस चर्चा को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए सतसाहित्य को आत्मसात करने का आग्रह किया गया।
वैश्विक हिंदी परिवार के संयोजक एवं हिंदी भवन भोपाल के निदेशक डॉ जवाहर कर्नावट ने संयत भाव और साहित्यिक शैली में संचालन की बखूबी बागडोर संभालते हुए ज्ञान चतुर्वेदी की साहित्यिक साधना और कृतियों की ओर संक्षेप में ध्यान आकृष्ट किया। पेशे से हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ ज्ञान चतुर्वेदी की एक हजार से अधिक व्यंग्य रचनाएँ हैं। विभिन्न विषयों और परिवेश पर पैनी दृष्टि के साथ-साथ आपने भारतीय चिकित्सा शिक्षा और व्यवस्था पर भी व्यंग्य की लेखनी चलायी है। चकल्लस, अट्टहास, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश हिंदी अकादमी और यू के कथा सम्मान आदि के अलावा 2015 में पद्मश्री से सम्मानित ज्ञान जी ने व्यंग्य की नोक से नाक नक्श उकेरा है। उनकी कुछ रचनाओं के अंग्रेज़ी अनुवाद का कार्य प्रगति पर है।
गांव के किरदारों से बना ‘स्वांग’ एक ग्लोबल उपन्यास है : पुराणिक
इस साहित्य मंथन में सुप्रसिद्ध व्यंग्य लेखक श्री आलोक पुराणिक ने कहा कि ज्ञान जी का व्यंग्य उपन्यास स्वांग एक ग्लोबल उपन्यास है जिसमें आजादी के बाद से अब तक के स्वांग को स्थान मिला है। जीवन के हर क्षेत्र से अब स्वांग का हटना असंभाव्य सा है। आम आदमी, गरीब, पंडित, पुलिस, पत्रकार, दलाल, दबंगई, लोकतन्त्र और धर्म आदि सभी इसके घेरे में हैं। घनघोर घटा अंधेरा है, कोशिशें स्वांग हैं। व्यंग्य, अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का प्रयास है। ‘राग दरबारी’ के बाद इस रचना की विशिष्ट महत्ता है।
व्यंग्य आलोचक कैलाश मंडलेकर
व्यंग्य आलोचक कैलाश मंडलेकर का मन्तव्य था कि स्वांग केवल बुंदेलखंड से ही नहीं बल्कि राष्ट्र से जुड़ा मारक और मर्मभेदी व्यंग्य त्रयी उपन्यास है। इससे इस क्षेत्र में सातवें दशक से चले आ रहे रिक्त स्थान की पूर्ति हुई है। इसकी भूमिका में ही निहितार्थ है। इस उपन्यास में स्वतन्त्रता संग्राम और विकास तथा राष्ट्रीयता का व्यापक कैनवस निहित है। इस कृति में आज का यथार्थ सामने आया है और राष्ट्र की सच्चाई उजागर हुई है।
वरिष्ठ लेखिका सूर्यबाला
वरिष्ठ लेखिका सूर्यबाला ने हर्षोल्लास से ज्ञान चतुर्वेदी को स्वांग की बधाई देते हुए कहा कि वर्ष 1973 में ‘धर्मयुग’ से हमने साथ-साथ युवावस्था में व्यंग्य यात्रा शुरू की थी जब शरद जोशी, हरिशंकर परसाई और श्रीलाल शुक्ल सरीखे व्यंग्यकार अग्रज थे। उन्होंने कहा कि साहित्य का निकष गद्य है, गद्य का निकष व्यंग्य है और व्यंग्य से ‘ज्ञान’ का निकष है। ज्ञान चतुर्वेदी के लिए लेखन कठिन श्रमसाध्य और नशा या लत की तरह है। उनकी कलम छटपटाती है और अंदाजे बयाँ गज़ब का है। वे खाते-पीते, चलते-फिरते, व्यंग्य ही ओढ़ते-बिछाते हैं और हँसते-हँसते व्यंग्य का खंजर चला देते हैं। वे ‘स्वांग’ उपन्यास के दरवाजे पर खड़े हैं और कहते हैं कि पहले इसे पढ़ लीजिए फिर अंदर जाइए। स्वांग में अदृश्य मंच है जिसमें सिलसिलेवार कथा भी चल रही है और बुंदेलखंडी मसखरापन और खिलंदड़ापन भी है। व्यंग्य की मूसलाधार बारिश हो रही है जिसमें सब भींग रहे हैं। एक ठेले से तोप का काम भी ले लिया जाता है।
सुप्रसिद्ध लेखिका सूर्यबाला जी ने पुस्तक के संवाद का एक अंश उद्घृत किया जिसमें एक पात्र दूसरे से पूछता है कि क्या तुम्हारे पास कल टाइम है? क्या काम है? मर्डर के लिए जाना है। उत्तर में फिर दूसरा पात्र कहता है कि नहीं, मुझे ममियारे के मामा के केस के गवाह की ठुकाई करने जाना है इसलिए खाली नहीं हूँ। एक अन्य प्रसंग में बैंड वाले मियां से, तीसरे कुँवर के जेल से छूटने की खुशी में, मोर- मोटर का सट्टा करने का जिक्र है जिन्होने अपने होने वाले बहनोई का मर्डर किया था। रेशे-रेशे पर भ्रष्टाचार- कितना शर्मनाक। एक अन्य परिदृश्य में गांधी जयंती और नोट पर छपे गांधी जी के चित्र का अवमूल्यन। बुंदेलखंडी गालियों के समावेश के बिना चित्रण अधूरा माना जाता है। स्वांग में व्यंग्य, शंकर से दिगंबर हैं जो मसाने में भी होली खेलते हैं। सूर्यबाला जी ने कहा कि ज्ञान चतुर्वेदी में व्यंग्य की विस्फोटक प्रतिभा है जो अहर्निश सृजनरत हैं।
समालोचक और संपादक शांति लाल जैन
समालोचक और संपादक शांति लाल जैन ने कहा कि ‘अक्षरा’ पत्रिका का हालिया अंक ज्ञान चतुर्वेदी पर आधारित विशेषांक है। स्वांग में उनकी अपनी पूर्व लिखित पुस्तकीय कथाओं का दोहराव नहीं बल्कि विस्तार है। शिक्षक, पुलिस, भूमि बंदोबस्त, राजनीति, नकल माफिया आदि एक भवन के अलग अलग स्कंधों की तरह गुंफित हैं। ज्ञान जी के लेखन में कबीर, परसाई और दुष्यंत आदि की झलक है। इस पुस्तक में नई रौनक और नई प्रदीप्ति है।
केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष एवं इस कार्यक्रम के प्रणेता श्री अनिल जोशी ने अतिथियों, वक्ताओं और देश-विदेश से उपस्थित विद्वानों का अभिनंदन किया तथा आज के मानद अध्यक्ष डॉ ज्ञान चतुर्वेदी की साहित्य साधना को आत्मीयता सहित सादर समादर दिया। श्री जोशी जी ने कहा कि आज के युग में हिंदी व्यंग्य लेखन रूपी दौड़ की छड़ी ज्ञान जी के कर कमलों में है। सुखांत-दुखांत हास्य व्यंग्य की कला अमिट छाप छोड़ती है। इसकी करारी चोट से तिलमिलाकर सही ढंग से संभल जाने या धूल झाड़कर चल देने के सिवाय कोई विकल्प नहीं होता। उन्होने देश-विदेश के अनेक प्रसिद्ध विद्वानों के उद्धरण दिये। श्री जोशी जी ने कहा कि व्यंग्य में विचार निहित होता है। उन्होंने विषय संबंधी शालीन संयोजन-संचालन हेतु पूरी टीम की मुक्त कंठ से प्रशंसा की और वैश्विक महत्व की साहित्य साधना में जुटने का आवाहन किया।
साहित्य मंथन के माननीय अध्यक्ष एवं स्वांग के लेखक पद्मश्री ज्ञान चतुर्वेदी ने प्रसन्नमुद्रा में मुखातिब होते हुए शालीन एवं बेहतरीन आयोजन के लिए आयोजक मण्डल को बधाई दी एवं अपने पूर्व वक्ताओं के प्रति आभार प्रकट किया। अपने बारे में गुना के एक कवि के व्यक्तव्य को उद्घृत करते हुए उन्होने कहा, “ज्ञान जी जैसा अति व्यस्त जीवन न मिले तो अच्छा रहेगा। मेडिकल में गोल्ड मेडलिस्ट एवं हृदय रोग विभागाध्यक्ष ज्ञान चतुर्वेदी ने कहा कि जब भी मेरी कोई नई पुस्तक हाथ में आती है तो वह सूंघने पर अद्भुत आनंदायी खुशबू देती है। यह वैसा ही होता है जैसे किसी माँ को अपने नवजात शिशु को पहली बार गोद में लेने जैसा हो। सुप्रसिद्ध लेखक श्रीलाल शुक्ल की सलाह पर मैं इसे बड़े समारोह के रूप में नहीं मनाता बल्कि निर्मल मन से रचनाकर्म का पालन करता हूँ। स्वांग का आठ बार प्रारूपण कसने के बाद नौवीं बार अंतिम रूप दिया। पात्रों के माध्यम से विचार बोलते हैं। व्यंग्य, जीवन के बारे में व्यापक व्यक्तव्य है। स्थितिजन्य विवशता के कारण कुछ प्रसंग लंबे होने स्वाभाविक हैं जिससे व्यापक परिदृश्य समझ में आ सकें। हमें साहित्य को ओछी नजर से न देखकर कथ्य देखना चाहिए। इसे लीक में नहीं बांधा जा सकता।”
ज्ञान चतुर्वेदी
आदरणीय ज्ञान चतुर्वेदी ने कहा कि बुंदेलखंड की गालियाँ, मुहावरे और लोकोक्ति की तरह हैं। पात्रों के साथ परकाया प्रवेश सा हृदय से एकाकार होना पड़ता है।विचार रूपी बीज को वटवृक्ष में परिणत करना पड़ता है। मैंने बुंदेलखंड के गाँव- गाँव में स्वयं जाकर बड़े बुजुर्गों से मिलकर गुणग्राही अवलोकन किया तथा गहन चिंतन-मनन के बाद लेखन और सानंद अनुश्रवण किया। कभी ‘कैरी कैचर’ नहीं करता। यह हाइड्रोजन और आक्सीजन की तरह मिलान कर पानी बनाने की सी प्रक्रिया है। लेखन के लिए कड़ी मेहनत, चरित्र गढ़ने की कला और धैर्य आदि की निहायत जरूरत होती है। रचनाएँ पाठकों से भी मांग करती हैं। डॉ ज्ञान ने बताया कि अभी मैं ‘तानाशाही की प्रेम कथा’ लिख रहा हूँ और आप सबसे कभी भी लेखन कला की बारीकियों पर विस्तार से बात करने की सदिच्छा है। उन्होंने पाठकों और श्रोताओं द्वारा प्रेम उड़ेलने पर कृतज्ञता प्रकट की।
गोष्ठी में पद्मश्री डॉ तोमियो मीजोकामी, जापान, श्री अनूप भार्गव, मीरा सिंह, अमेरिका, दिव्या माथुर, पदमेश गुप्त, अरुणा अजितसरिया एवं आशा बर्मन यूके, शिखा रस्तोगी, थाइलैंड, विवेक मणि त्रिपाठी, चीन, संध्या सिंह, सिंगापुर, प्रो उलफत मुहिबोवा, अफगानिस्तान एवं राहुल देव, अरविंद शुक्ल, सुरेश उरतृप्त, गंगाधर वानोडे, अपर्णा सारस्वत, मोहन बहुगुणा, मधु वर्मा, अनुपमा सिंह, रमेश यादव, किरण खन्ना, सुषमा देवी, इंद्रजीत कौर, महादेव कोल्लूर, हरीश अरोड़ा, राजलक्ष्मी कृष्णन और अन्य उपस्थित थे।
इस साहित्य विमर्श के संयोजक एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कालेज के प्रो विजय कुमार मिश्र ने अपनी ओजपूर्ण, हर्षोल्लासमयी वाणी में माननीय अध्यक्ष एवं अतिथि वक्ताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। उन्होंने कार्यक्रम से देश-विदेश से जुड़ी संस्थाओं एवं व्यक्तियों का नामोल्लेख सहित आत्मीय ढंग से विशेष आभार प्रकट किया। अनुभवी विद्वान एवं भारतीय संस्कृति के पोषक डॉ॰ मिश्र ने हिंदी का वैश्विक गौरव बढ़ाने और इस कार्यक्रम से जुड़े सभी श्रोताओं, अभिप्रेरकों, संयोजकों, मार्गदर्शकों तथा विभिन्न टीम सदस्यों को हृदय से धन्यवाद दिया।
कहना न होगा कि समूचे कार्यक्रम के विविध पक्षों का शालीन संयोजन, हर सप्ताह की तरह आदरणीय अनूप भार्गव (अमेरिका), पदमेश गुप्त (लंदन), डॉ संध्या सिंह (सिंगापुर), डॉ जवाहर कर्नावट, डॉ राजेश कुमार, मोहन बहुगुणा आदि ने श्री अनिल शर्मा जोशी जी के मार्गदर्शन में बखूबी संभाला एवं भाषा संचेतना के साथ साहित्यिक विमर्श बढ़ाने हेतु विश्व भाषा हिंदी एवं भारतीय भाषाओं का मार्ग प्रशस्त किया। यह कार्यक्रम फेस बुक और यू ट्यूब आदि पर भी उपलब्ध है। रिपोर्ट लेखन का कार्य डॉ जयशंकर यादव ने किया।