कादंबिनी क्लब: ‘मराठी भाषी साहित्यकारों का हिंदी साहित्य में योगदान’ विषयक चर्चा में हुआ गर्व का अनुभव

हैदराबाद: कादंबिनी क्लब हैदराबाद के तत्वावधान में रामदास कृष्ण कामत साहित्यकार की अध्यक्षता में गूगल मीट के माध्यम से क्लब की 356वीं मासिक गोष्ठी का सफल आयोजन संपन्न हुआ। प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए डॉ अहिल्या मिश्र (क्लब अध्यक्षा) एवं मीना मुथा (कार्यकारी संयोजिका) ने आगे बताया कि इस अवसर पर प्रथम सत्र की अध्यक्षता मुख्य वक्ता रामदास कृष्ण कामत ने की।

अहिल्या मिश्र ने स्वागत भाषण में कहा कि हमारी परंपरा रही है कि विभिन्न भारतीय भाषाओं का हिंदी साहित्य को क्या योगदान और सहयोग रहा है उसके बारे में भी हमारे श्रोता व नई पीढ़ी अवश्य जाने। इसी कड़ी में आज ‘मराठी भाषी साहित्यकारों का हिंदी साहित्य में योगदान’ विषय पर चर्चा होगी। साहित्यकार रामदास कामत और लेखिका मीणा खोंड का परिचय देते हुए उन्होंने कहा कि हमारे शहर में ऐसे ऐसे साहित्यकार मौजूद हैं जिन पर निश्चित ही हमें गर्व की अनुभूति होती है।

अवधेश कुमार सिन्हा ने कहा …

संगोष्ठी सत्र संयोजक अवधेश कुमार सिन्हा ने कहा कि मैं अनुवाद पढ़ता रहता हूं। मराठी साहित्य काफी रिच है। बॉलीवुड के कई कलाकार मराठी थिएटर से आए हैं। मराठी साहित्य में दलित विमर्श की चर्चा अधिक ज्यादा होती है यह अच्छी बात है। साहित्य समाज का दर्पण होता है और अनुवाद दो भाषाओं को जोड़ने में पुल का कार्य करता है।

मीणा खोंड ने बोले…

लेखिका मीणा खोंड ने मराठी साहित्य में गीत और कविता पर अपनी बात रखते हुए कहा कि मराठी और हिंदी का रिश्ता बड़ा प्यारा है। तेलंगाना में जब मैं स्थापित हुई तो उर्दू तेलुगु के साथ साथ हिंदी भी संपर्क भाषा के रूप में हुआ करती थी। गुलशन नंदा के उपन्यास पढ़ने का शौक रहा। कथा, कविताएं, पथ नाटिका, निबंध, अनुवाद आदि क्षेत्र में लेखन कार्य निरंतर जारी है। गुलजार साहब की त्रिवेणियाँ, वेंकटेश कुलकर्णी, पु. ल. देशपांडे, सूरज कुमार गोस्वामी, रामदास कृष्ण कामत आदि साहित्यकारों का जिक्र करते हुए उन्होंने इनके लेखन के कुछ अंश भी प्रस्तुत किए। कवियों का, लेखक का, सामाजिक दायित्व होता है। उनकी कलम इस कर्तव्य की पूर्ति के लिए कटिबद्ध है।

उपन्यास एवं कहानी पर विचार

साहित्यकार रामदास कृष्ण कामत ने उपन्यास एवं कहानी पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भाषा अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। अगर हमें हिंदी में बोलने वाला कोई व्यक्ति मिलता है तो अपनापन सा लगता है। एक भाषा से दूसरी भाषा में साहित्य का प्रवाह अखंडित रहना चाहिए। अन्य भाषाओं में आदान-प्रदान आवश्यक है। हिंदी मराठी दोनों सगी बहनें हैं, लिपि देवनागरी है, कई शब्द सामान्य है। जितना अनुदित साहित्य हिंदी से मराठी में आया है उतना मराठी से हिंदी में नहीं आ पाया है क्योंकि मराठी की कुछ भाषाएं मालवणी, वन्हाडी आदि का अनुवाद कठिनप्राय हो जाता है।

भाषा के तीन प्रवाह

उन्होंने कहा कि किसी भी भाषा के तीन प्रवाह होते हैं- 1. मूल मराठी साहित्य के साथ साथ हिंदी में भी लेखन करते हैं 2. अनुवादक का हिंदी में अप्रत्यक्ष योगदान 3. मनोरंजन के माध्यम से। यदुनाथ थत्रे, विद्या देवधर, मीणा खोंड, सुलभा गोरे, विंदा करंदीकर, मंगेश पाडगावकर, प्रकाश भातंब्रेकर, वि वा शिरवाडकर, विजय तेंदुलकर, सुरेश गंगाखेडकर, विधास पाटिल, मधुसूदन कालेलकर, पु ल देशपांडे, व पु काले, जयवंत दलवी, दया पवार आदि मराठी साहित्यकारों का उल्लेख करते हुए चक्र, संध्या छाया, आई रिटायर होते, घाशीराम कोतवाल आदि कृतियों, नाटकों और कुछ फिल्मों का भी जिक्र किया। मराठी दलित साहित्य भी विपुल रहा है। झाड़ाझड़ती, मृत्युंजय, स्वामी आदि उपन्यास काफी प्रसिद्ध हुए। साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्रेरणा स्रोत है। ज्यादातर अनुवादक अंग्रेजी साहित्य का अनुवाद करने में रुचि रखते हैं। कुछ साहित्यकार यूनिवर्सल भी होते हैं।

डॉ अहिल्या मिश्र ने कहा…

डॉ अहिल्या मिश्र ने कहा कि मधुमती बापट, मुकुंद बापट, राधा शिंदे, जे बी कुलकर्णी, लक्ष्मी चंद जोशी, विद्या दबे, दामोदर खड़के, डॉ गीता, श्रीनिवास सावरीकर आदि कई लेखकों ने मराठी साहित्य को अमूल्य देन दी है। हैदराबाद भी सौभाग्यशाली है कि इनमें से कई हिंदी साहित्य के लिए भी योगदान दे रहे हैं।

संगोष्ठी सत्र ज्ञानवर्धक

अवधेश कुमार सिन्हा ने कहा कि संगोष्ठी सत्र ज्ञानवर्धक रहा। कामत जी ने अनुवादक का यज्ञ आरंभ किया है। धीरे-धीरे वे अपने योगदान की समिधाएं डाल रहे हैं। अहिल्या जी दक्षिण भारत के हिंदीतर भाषाओं के लेखकों के आलेख इकट्ठा कर रही हैं। यह भी महतीय प्रयास है। प्रवीण प्रणव ने कहा कि हमने आज की चर्चा में कई साहित्यकारों के नाम सुने। अब उनका लेखन पढ़ने का मन हो रहा है। कामत जी व खोंड जी ने धारा प्रवाह को समझाया। तीसरी धारा को विलुप्त होने नहीं दिया। सत्र का सभी ने स्वागत किया।

कवि गोष्ठी

प्रवीण प्रणव ने कवि गोष्ठी का संचालन किया। होली, फागुन रंग विषयों के साथ-साथ कई समसामयिक मुद्दों को केंद्रित करते हुए काव्य पाठ हुआ। रामकृष्ण दास कामत, मीणा खोंड, भावना पुरोहित, डॉ रमा बेहरे, डॉ सुरभि दत्त, संपत देवी मुरारका, दर्शन सिंह, विनोद गिरि अनोखा, संतोष रजा, मीना मुथा, प्रवीण प्रणव, डॉ रमा द्विवेदी आदि ने गीत, गजल, कविता, हाइकु आदि प्रस्तुत किए। शुभ्रा महंतों ने सरस्वती वंदना और होली के गीत सस्वर प्रस्तुत किया।

गोष्ठी का समाप

अवधेश कुमार सिन्हा ने कवि गोष्ठी सत्र की अध्यक्षता की। टिप्पणी में उन्होंने कहा कि आज मिथिला, राजस्थान आदि लोक संगीत की यात्रा हमने की। सभी ने विभिन्न विषयों पर काव्य पाठ किया, सभी को साधुवाद। उन्होंने अध्यक्षीय काव्य पाठ के अंतर्गत मराठी कवि नामदेव खोले की अनुदित रचना (प्रकाश भ्रातम्बेकर द्वारा) ‘थके हारे मां-बाप’ की प्रस्तुति दी। पटल पर उपस्थित सदस्यों ने एक दूसरे को होली की शुभकामनाएं दीं। मीना मुथा के धन्यवाद के साथ गोष्ठी का समापन हुआ। शिल्पी भटनागर, जी परमेश्वर, प्रमोद यादव, ममता राठौर, डॉक्टर रामाश्रय सिंह, डॉक्टर सुरेश कुमार मिश्र ‘अतृप्त’ की भी उपस्थिति रही।

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