मानवाधिकार कार्यकर्ता स्टैन स्वामी के निधन पर बुद्धिजीवियो ने उठाये सवाल, बोले- “मौत की ज़िम्मेदारी तय हो”

हैदराबाद : भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में न्यायिक हिरासत में रखे गए मानवाधिकार कार्यकर्ता फ़ादर स्टैन स्वामी (84) की निधन के बाद राजनीति और सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय बुद्धिजीवियों ने दुख जताया है। एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार स्टैन जेल में बंद थे। गौरतलब है कि शनिवार को अलसुबह 4.30 बजे उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। उनके स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ है। मई महीने में कोविड के संक्रमित होने के बाद उन्हें एक निजी अस्पताल ले जाया गया था। सोमवार को दोपहर 1.30 बजे स्टैन स्वामी का निधन हो गया।

महाराष्ट्र के पुणे में भीमा कोरगांव 2018 में हिंसक घटना के मामले में स्टैन स्वामी को रांची से हिरासत में लिया गया था। उनके खिलाफ हिंसा भड़काने का आरोप था। इतना ही नक्सलियों के साथ संबंध होने के आरोप भी लगाए गए थे। एनआईए ने उन पर ग़ैर क़ानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की धाराएं लगा कर हिरासत में लिया गया था। उनके साथ कई वामपंथी कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों को गिरफ़्तार किया गया था।

इसी क्रम में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने स्टैन स्वामी की मौत पर संवेदना जताते हुए ट्वीट किया कि “वे न्याय और मानवता के हक़दार थे।” इसी क्रम में पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री और टीएमसी नेता यशवंत सिन्हा ने उनकी मौत को “हत्या” बताते हुए लिखा कि “हम जानते हैं कि कौन ज़िम्मेदार है।” दूसरी ओर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने लिखा कि “कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक व्यक्ति जिसने जीवन भर ग़रीबों-आदिवासियों की सेवा की और मानव अधिकारों की आवाज़ बना, उन्हें मृत्यु की घड़ी में भी न्याय एवं मानव अधिकारों से वंचित रखा गया।”

इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने फ़ादर स्टैन स्वामी के निधन को एक ‘त्रासदी’ बताया है। साथ ही स्टैन स्वामी के काम को भी याद किया है। उन्होंने कहा, “उनकी त्रासद मौत ज्यूडिशियल मर्डर का केस है, जिसके लिए गृह मंत्रालय और कोर्ट संयुक्त रूप से जवाबदेह हैं। फ़ादर स्टेन स्वामी पूरी ज़िंदगी वंचितों के लिए काम करते रहे।” सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट करुणा नंदी कहा कि सरकार के हाथों क्रूर और अमानवीय व्यवहार सह कर उनकी मौत हिरासत में हुई। उनके प्रियजनों और सभी नागरिकों की जवाबदेही सरकार पर है। उन व्यक्तियों की जिनके फ़ैसले ने उन्हें नुकसान पहुंचाया और मार डाला है।

माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने फादर स्टैन स्वामी के निधन पर दुख और आक्रोश प्रकट करते हुए कहा कि बगैर किसी आरोप के यूएपीए लगा कर हिरासत में उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया। हिरासत में हुई इस हत्या की जवाबदेही ज़रूर तय की जानी चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने लिखा है कि एक ताक़तवर भारतीय राज्य ने यूएपीए के तहत एक 84 वर्षीय बुज़ुर्ग को इसलिए गिरफ़्तार किया क्योंकि अपना जीवन आदिवासियों के बीच काम करते हुए बिताने के लिए उसने उन्हें आतंकवादी के रूप में देखा है।

गौरतलब है कि दरअसल स्टैन स्वामी पार्किंसन्स डिज़ीज़ से ग्रसित थे। तंत्रिका तंत्र से जुड़े इस डिसऑर्डर में शरीर में अक्सर कंपकंपाहट होती है। मरीज़ का शरीर स्थिर नहीं रहता और संतुलन नहीं बना पाता। इसी वजह से स्टैन स्वामी को पानी का ग्लास पकड़ने में परेशानी होती थी। हिरासत में लिए जाने के बाद महाराष्ट्र की तलोजा जेल में बंद किए गए स्टैन स्वामी ने बीते वर्ष जब अपनी बीमारी की वजह से एक याचिका में अदालत से ‘स्ट्रॉ’ और ‘सिपर’ की मांग की थी तो एनआईए ने अदालत को बताया था कि वो यह नहीं दे सकते।

इतना ही नहीं पार्किंसन्स डिज़ीज़ के अलावा स्टेन स्वामी अपने दोनों कानों से सुनने की क्षमता लगभग खो चुके थे। कई बार वे जेल में गिर भी गए थे। साथ ही दो बार हर्निया के ऑपरेशन की वजह से उनके पेट के निचले हिस्से में दर्द रहता था ख़राब स्वास्थ्य की वजह से उन्हें जेल की अस्पताल में रखा गया था। बीते कुछ महीनों से स्टैन स्वामी की तबीयत ख़राब हो गई थी। तबीयत ज़्यादा बिगड़ जाने पर उन्हें मुंबई के बांद्रा स्थित होली फैमिली हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था।

(सोशल मीडिया से संकलन)

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