हैदराबाद: आदिलाबाद जिला अदालत ने शुक्रवार को शीर्ष माओवादी नेता आजाद उर्फ चेरुकुरी राजकुमार और पत्रकार हेमचंद्र पांडे के बीच मुठभेड़ मामले की जांच की। मुठभेड़ में शामिल 29 पुलिस की पूरी तरह से पूछताछ किये जाने के बाद हाई कोर्ट के आदेश के पर जिला अदालत में ट्रायल शुरू हो गया है।
ज्ञातव्य है कि जिला अदालत ने जांच पूरी कर 29 पुलिसकर्मियों के खिलाफ मामला दर्ज करने का आदेश दिया था। 2010 में आजाद के एनकाउंटर पर विरोध याचिका दायर की गई थी। पुलिस ने जिला अदालत के फैसले को तेलंगाना उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
उच्च न्यायालय ने एक बार फिर निचली अदालत के आदेश के अनुसार 29 पुलिस के खिलाफ पूरी तरह से जांच करने का आदेश दिये। इसके चलते हाई कोर्ट के आदेश पर आदिलाबाद जिलाकोर्ट ने एक बार फिर पूरे पैमाने पर जांच शुरू कर दी है।
गौरतलब है कि स्वामी अग्निवेश ने माओवादी नेता चेरुकुरी राजकुमार उर्फ आजाद की पुलिस मुठभेड़ में मौत की जांच न कराने पर सरकार से खफा हो गये थे। उन्होंने केंद्र सरकार की पहल पर माओवादियों के साथ शांतिवार्ता में मध्यस्थ की थी।
एक अखबार को दिये गये साक्षात्कार में अग्निवेश ने कहा था कि छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के हाथों सीआरपीएफ के 72 जवानों की हत्या के बाद मैंने शांति की अपील के साथ रायपुर से दंतेवाड़ तक की पैदल यात्रा की। यह दुस्साहस करने वाला शायद मैं पहला व्यक्ति था। शायद इस यात्रा से प्रभावित होकर ही गृह मंत्री चिदंबरम जी ने मुझे मध्यस्थता के लिए चुना हो। हां, यह सही है कि यात्रा के बाद मैंने उनसे मुलाकात कर यह जानने की कोशिश की थी कि वह नक्सलवाद को कानून व्यवस्था की समस्या मानते हैं या सामाजिक आर्थिक समस्या। इस पर उन्होंने कहा कि इसे मैं सामाजिक आर्थिक समस्या तो मानता ही हूं। साथ ही यह मेरे लिए नैतिकता से भी जुड़ा हुआ सवाल है। यह सुनकर मैं प्रसन्न भी हुआ और अचंभित भी हुआ कि मंत्री जी इस विषय पर उदारता से सोच रहे हैं। मुझे उसी समय हल की उम्मीद नजर आई।
इसके साथ ही उन्होंने इस शर्त के साथ माओवादियों से बातचीत की भी इच्छा जताई कि पहले माओवादियों को कम से कम 72 घंटे तक स्वयं को हिंसा नहीं करनी होगी और ना ही सुरक्षा बल इस अवधि में उनके खिलाफ कोई कारर्वाई करेंगे। इसके कुछ समय बाद मुझे मध्यस्थ की भूमिका के प्रस्ताव वाला चिदंबरम जी का एक गोपनीय़ पत्र मिला। मैंने सरकार की इस मंशा की 19 मई को सार्वजनिक घोषणा कर दी। इसके बाद 31 मई को ही माओवादियो के प्रवक्ता आजाद की ओर से मुझे सकारात्मक जवाब के साथ एक पत्र मिला। एक महीने से भी कम समय में हुई इस प्रगति से मैं बेहद उत्साहित था।
एक अन्य सवाल के जवाब में अग्निवेश ने कहा था कि केंद्र और आंध्र प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है। ऐसे में तालमेल के अभाव की बात मैं नहीं मान सकता। लेकिन आजाद की बर्बर मौत मेरे लिए बहुत बड़ा धक्का है। इसे मैं सरकार का विश्वासघात मानता हूं। इस मुठभेड़ के फर्जी होने के जो सबूत मिले उनके आधार पर ही मैंने गृह मंत्री से जांच की मांग की। लेकिन जब उन्होंने मना कर दिया। तब फिर मैंने 20 जुलाई को प्रधानमंत्री से मिलकर यह मांग की। उन्होंने स्पष्ट कहा कि जांच होगी, लेकिन स्वामी जी मुझे 4-5 दिन का समय दें। मैं कोई रास्ता निकालता हूं। मेरे लिए यही सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है कि दो महीने बीत गए और जांच की अब तक कोई घोषणा भी नहीं की गई।
पहली बात तो यह है कि सरकार आजाद की मौत की जांच नहीं कराएगी क्योंकि मुझे लग रहा है कि उसे यह अहसास हो गया है कि मुठभेड़ फर्जी थी। साथ ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट से लेकर फॉरेंसिक रिपोर्ट तक में फर्जी मुठभेड़ के साफ सबूत हैं। मुझे सरकार से तो बिल्कुल उम्मीद नहीं है। सरकार का जो चेहरा दिख रहा है वह माओवादी हिंसा से भी ज्यादा हिंसक है। मैं माओवादी हिंसा की भी उतनी ही निंदा करता हूं। लेकिन देश में प्रतिदिन भूख से मरते हजारों बच्चों और फर्जी मुठभेड़ों के लिए सरकार जिम्मेदार है। यह ढांचागत हिंसा है और सबसे लंबे समय तक सत्ता में रही कांग्रेस को इसके लिए माफी मांगनी चाहिए।