हैदराबाद : तेलंगाना में राजनीतिक घटनाक्र तेजी से बदल रहे है। तेलंगाना में केसीआर की तेलंगाना राष्ट्र समिति, बंडी संजय की भारतीय जनता पार्टी, रेवंत रेड्डी की कांग्रेस पार्टी, वाईएस शर्मिला की वाईएसआर तेलंगाना पार्टी, आरएस प्रवीण कुमार की बहुजन समाज पार्टी, प्रोफेसर कोदंडराम की तेलंगाना जन समिति और अन्य पार्टियां भी आने वाले चुनाव में जोर दिखाने को तैयार हैं।
ऐसे हालात में वोटरों की नसें जानना बहुत जरूरी होता जा रहा है। वैसे तो तेलंगाना में बीजेपी के सत्ता में आने के स्पष्ट आसार नजर आ रहे हैं। मगर जिस तरह से महंगाई बढ़ी और बढ़ रही है। उसका मार बीजेपी पर पड़ने में देर नहीं लगेगी। क्योंकि सभी दल इसी मुद्दे को उठाने वाले हैं। हाल ही में संपन्न हुजूराबाद उपचुनाव में भले ही बीजेपी की जीत हुई है। मगर टीआरएस को जितने भी वोट मिले हैं उसमें ‘महंगाई मार’ वाले अधिक रहे हैं।
वैसे तो तेलंगाना राजनीतिक घटनाचक्र को देखने से स्पष्ट होता है कि पांच पार्टियों के बीच कड़ा मुकाबला होने वाला है। यह पांच पार्टियां हैं- टीआरएस, बीजेपी, कांग्रेस, वाईएसआरटीपी और बीएसपी। तेलंगाना में यह पांच पार्टियां हम किसी से कम नहीं के मूड़ में हैं। इसके अलावा एआईएमआईएम वोट विभाजन में हमेशा सबसे आगे रहती है। फिर भी आखिर तक यह पार्टी क्या और कौन-सा खेल खेलेगी इसका किसी को भी पता नहीं चलता है। अब टीआरएस और बीजेपी की बात करे तो इतने सालों से प्रदेश में और देश में जनता ने क्या खोया और क्या पाया यह अच्छी तरह से जानते हैं। अब ये लोग वोट के हथियार से अपना फैसला सुनाने को तैयार है। केवल आम चुनाव की घोषणा होनें में ही देरी है।
वैसे तो देश के अन्य राज्यों से तेलंगाना की पृष्टिभूमि अलग है। देश आजाद हुआ। मगर तेलंगाना और अन्य राज्यों के कुछ हिस्से लंबे समय तक निजाम के अधीन ही थे। आखिर निजाम से तेलंगाना मुक्त हुआ। फिर भी तेलंगाना में आंदोलन जारी रहा, आज भी यानी भौगलिक तेलंगाना गठन के बाद भी नील्लु, निधुलु और नियमाकालु (जल, निधि और नौकरी) के लिए आंदोलन जारी है। यह आंदोलन ऐसा-वैसा नहीं है। मुख्य रूप से तेलंगाना के युवक और बुद्धिजीवी जिस तरह से आवाज उठाते है तो लगता है कि तेलंगाना के लोगों का सपना अब भी साकार नहीं हुआ है। हां यह सच है कि सरकारों ने अनेक योजनाओं को लागू किया है। मगर ये योजनाएं तेलंगाना की भावनाओं को पूरा नहीं कर पाई और न ही कर पा रही है। यही भावना ही तेलंगाना में होने वाले चुनाव में देखने को मिलने वाली हैं।
हां सच है कि तेलंगाना के लोग भावनाओँ को अधिक महत्व देते है। यदि यह सच है तो पृथक तेलंगाना गठन सोनिया गांधी के साहस के कारण हुआ है। भले ही इसके लिए अन्य दल शामिल है। मगर सोनिया का फैसला ही सबसे ऊपर रहा है। इसीसिए रेवंत रे़ड्डी बार-बार सोनिया गांधी के सपनों के तेलंगाना को साकार करने के लिए मैौका देने का आग्रह कर रहे हैं।
इस पृष्ठभूमि में हाल ही में ‘ग्राउंड रिपोर्ट’ नामक एक संगठन ने तेलंगाना के 119 निर्वाचन क्षेत्रों में एक सर्वेक्षण किया। इस संगठन ने प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में लगभग 1 से 4 हजार मतदाताओं के विचारों को एकत्रित किया। सर्वेक्षण में विधायक प्रत्याशी के साथ-साथ मुख्यमंत्री प्रत्याशी के बारे में भी अलग-अलग सवाल किये। इस प्रकार सभी निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं की नसों को जानने के बाद ‘ग्राउंड रिपोर्ट’ ने सर्वेक्षण के परिणाम जारी किये हैं।
इस सर्वेक्षण के नतीजों के आधार पर अगर तेलंगाना में अभी चुनाव होते हैं तो टीआरएस को 65-70 (एमआईएम-6) सीटें मिलेंगी। कांग्रेस पार्टी को 35-40 सीटें, बीजेपी को 12-14 सीटें और अन्य को 0-1 सीटें मिलेंगी। यह सर्वेक्षण भले ही टीआरएस के पक्ष में है। मगर मुख्यमंत्री को लेकर नतीजा कुछ और ही है।
‘ग्राउंड रिपोर्ट’ ने सर्वेक्षण के अनुसार, तेलंगाना पीसीसी अध्यक्ष रेवंत रेड्डी को जहां 44 फीसदी लोगों ने मुख्यमंत्री के रूप में देखना पसंद किया है, वहीं 42 फीसदी लोगों ने केसीआर को वोट दिया। तेलंगाना बीजेपी के अध्यक्ष बंडी संजय को 6-7 फीसदी लोग सीएम के रूप देखना चाहते हैं। ग्राउंड रिपोर्ट ने अपने ट्विटर अकाउंट पर इस सर्वेक्षण के नतीजे को रखा है। अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में जनता की राय में क्या बदलाव आता है।
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