[डॉ सुपर्णा मुखर्जी, हिंदी प्राध्यापिका (सेंट एन्स डिग्री कॉलेज फॉर वूमेन मलकाजगिरी हैदराबाद) जी ने बहुत ही मेहनत से महान लेखक डॉ गोपाल शर्मा जी का साक्षात्कार ‘तेलंगाना समाचार’ के लिए पाठकों के लिए डॉ ऋषभ देव शर्मा जी के सुझाव पर भेजा है। विश्वास है पाठकों को यह पसंद आएगा।]
डॉ गोपाल शर्मा जी का साक्षात्कार लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। डॉ ऋषभ देव शर्मा जी ने आदेश दिया कि आपके साथ साक्षात्कार सांझा कर रही हूं। आपके अवलोकन हेतु निचे प्रेषित कर रही हूँ। इसे 24 मिनट 11 सेकेंड की परिचर्चा या फिर एक छोटा सा साक्षात्कार ही कहूं। डॉ ऋषभदेव शर्मा जी हैं, तो कहीं भी पढ़ाई हो सकती है! यह मुझसे बेहतर किसे पता होगा? नहीं, यह वाक्य मेरा बड़बोलापन नहीं, मेरी श्रद्धा है। यह सबको पता है कि ऋषभदेव जी नपे-तुले व्यवहार के माध्यम से पढ़ाई-लिखाई, लिखाई-पढ़ाई करवा ही लेते हैं। मैं उन्हीं भाग्यशालियों में से एक हूँ। सो, मुझे 30 जुलाई 2022 को इन दोनों विद्वानों से वार्तालाप करने का अवसर प्राप्त हुआ।
डॉ गोपाल शर्मा जिन्होंने नेलसन मंडेला, कमला हैरिस, नरेंद्र मोदी, रामनाथ कोविंद, योगी आदित्यनाथ और अब द्रौपदी मुर्मू जी की भी जीवनी लिख दी है। वह भी एक भाषा में नहीं, बल्कि हिंदी-अंग्रेजी में मूल रूप में, जिसका चार अन्य भाषाओं में अनुवाद आ रहा है।
साक्षात्कार-
मेरा प्रश्न है इतना था कि क्या राष्ट्रपति भवन तक यह समाचार नहीं पहुँचा? और अगर पहुँचा तो वहाँ से क्या प्रतिक्रिया आई?
डॉ गोपाल शर्मा– हम तो स्वांतः सुखाय लिखते हैं।
रामनाथ कोविंद जी के साथ मिलने का प्रयास उन्होंने किया था जब वे अफ्रीका में थे, तीन दिन के बाद उन्हें उत्तर प्राप्त हुआ। प्रश्न यह है कि पहले दिन ही यह अवसर क्यों नहीं मिला?
डॉ गोपाल शर्मा– किसे पता डॉक्टर गोपाल शर्मा लेखक है, कोई आतंकवादी नहीं?
प्रश्न यह कि मीडिया जो बार-बार, राजनेता जो बार-बार यह कहते रहते हैं कि हम बुद्धिजीवियों का सम्मान करते हैं, आदर करते हैं, फिर मैं मेरे बहुत करीब से जाने हुए दो बुद्धिजीवी लेखकों कोकभी किसी नेता… हाँ, नेता से मेरा अर्थ प्रधानमंत्री, राष्ट्रपतिसे ही है, से सम्मानित होते हुए क्यों नहीं देख पाती हूँ? क्यों राष्ट्रपति भवन से डॉक्टर गोपाल शर्मा को बुलावा नहीं आया? क्या यह बुद्धिजीवियों की उपेक्षा नहीं है?
डॉ गोपाल शर्मा– आज के युग में ‘पार्थ’ को सब कुछ मिलता है, गोपाल को कुछ भी नहीं मिलता (और दोनों विद्वानों का ठहाका लगाकर हँसना )।… हम तो कुछ विवादित लिखते ही नहीं है। अगर किताब के ऊपर ‘राष्ट्रपत्नी’ लिखा होता तो बुलावा आता! (ठहाका।) ऐसा नहीं है कि वहाँ तक बात नहीं पहुँचती पर प्रोटोकॉल होता है।… विवाद आजकल बिकता है।
प्रश्न यह कि… लेखन प्रक्रिया कैसी रहती है आपकी?
डॉ गोपाल शर्मा- द्रौपदी मुर्मू जी की किताब को लिखने के लिए 45 दिन लगे। सवेरे उठता था, नित्य कर्म से निवृत्त होता था, थोड़ी चाय वाय पी और लिखने बैठ गया और यह काम लगातार 2 बजे तक चलता था। फिर दोपहर का भोजन किया, थोड़ी देर सो जाना और फिर लेखन कार्य में लग जाना। मैंने तो ऋषभदेव शर्मा जी का फोन कॉल उठाना भी बंद कर दिया। बस, यही मेरी खुशी है। यह जो लिखने का कार्यक्रम है, यह जो लिखने की लगन है, जुनून है, यही वास्तविक खुशी है। अभी किसी ने मुझे मेरी ही किताब की पांडुलिपि भेजी मैं उसे फिर से पढ़ रहा हूँ। पढ़ते समय अलग सा आनंद आ रहा है। लेखक कोई और व्यक्ति होता है। पाठक के रूप में वही कोई और। लेखक को अपना लिखा हुआ भी पढ़ना चाहिए। जब वह पाठक बनकर पढ़ता है तो उसे अपने ही लिखे को सुधारने का अवसर मिलता है। और एक बात जो पढ़ता है, वह लिखने को भी सम्मान दे सकता है।
प्रश्न यह कि… लिखने में आने वाली समस्या?
डॉ. गोपाल शर्मा- पहले तो सबसे बड़ी समस्या हिंदी में सामग्री का मिलना मुश्किल होता है। अंग्रेजी में सामग्री मिल जाती है। समस्या यह भी होती है कि एक होता है truth factor और एक होता है story factor। इस समस्या का सामना जीवनी लिखनेवाला लेखक अधिक करता है। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा जैसे द्रौपदी मुर्मू जी के नाम को ही ले लीजिए। उन्होंने स्वयं ही कई बार अपने ही नाम को लेकर अलग-अलग वक्तव्य दिया। कभी कहा दादी ने दिया तो कभी कहा पिता ने दिया तो कभी यह भी कहा कि उनकी दादी का नाम भी द्रौपदी था। इस कारण से लेखक को संदर्भ देते हुए चलना पड़ता है। प्रामाणिकता के लिए इससे मुझे फायदा यह भी मिला कि मैं इतना कुछ पढ़ गया द्रौपदी मुर्मू जी के बारे में जो स्वयं द्रौपदी मुर्मू को ही नहीं पता था (अर्थपूर्ण मुस्कान)।