हैदराबाद: तेलंगाना में त्योहार और उत्सवों का ‘भंडार’ है। मुख्य रूप से तेलंगाना के ज्यादातर त्योहार और उत्सव प्रकृति से जुड़े हैं। बतुकम्मा, नागोबा जातरा, सम्मक्का-सारलम्मा ऐसे अनगिनत त्योहार और उत्सव है। साथ ही जंगलों में अनेक मंदिर और मस्जिदें है। हर साल उत्सव मनाये जाते है। इन त्योहार में ज्यादातर आदिवासी/गिरजन ही भाग लेते है और अपने देवी-देवताओं की पूजा करते हैं और मन्नते पूरी करते हैं। कहा जाता है कि यह उनके जीवन की शैली के हिस्से हैं।
ऐसा ही एक अति प्राचीन त्योहार/उत्सव है- दंडारी गुस्साड़ी। दंडारी गुस्साड़ी उत्सव संयुक्त आदिलाबाद जिले में दस दिन तक मनाया जाता है। तेलुगु फिल्मी गीतकार, लेखक और कवि चंद्रमौली ने ‘तेलंगाना समाचार’ को बताया कि दंडारी गुस्साडी उत्सव बहुत प्रसिद्ध है। पद्मलपुरी काकोबाई का अर्थ है दादी या नानी। इसी के नाम पर दंडारी गु्स्साडी उत्सव एक नृत्य के रूप में मनाया जाता है।

यह उत्सव दीवाली के दस दिन पहले शुरू होता है। श्रद्धालु पहले काकोबाई (दादी) को गंगा जल से शुद्ध करते है। इस उत्सव में पांच और सात दल (गुट) के आदिवासी शामिल होते है। कोकोबाई को सभी श्रद्धालु मां के रूप में पूजते है। ‘पद्मालपुरी एत्मल पेनकु’ अति प्राचीन घनराज्य के रूप प्रसिद्ध गुडिरेवु के बीच यह त्योहार मनाते है।
यह मंचेरियाल जिले के दंडेपल्ली मंडल में है। इस त्योहार का भव्य आयोजन दिवाडी (दीवाली) के दिन यानी 26 अक्टूबर को मनाया जाता है। इस उत्सव में महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों से आदिवासी श्रद्धालु भाग लेते हैं। इस दौरान श्रद्धालु काकोबाई की पूजा करते और अपनी मन्नते अर्पित करते है। श्रद्धालु अपनी पवित्र काकोबाई की प्रशंसा करते हैं।