[एक बार मैं दक्षिण समाचार की रिपोर्ट करने के लिए बहुत साल पहले (तारीख याद नहीं) आनंद श्रषि साहित्य निधि पुरस्कार समारोह में गया था। तब ‘दक्षिण समाचार’ के संपादक मुनींद्र जी आनंद श्रषि साहित्य निधि पुरस्कार से संबंधित विशेष अंक निकालते थे। उस समय समय केरल के एक साहित्यकार को पुरस्कार दिया गया था। जैन समाज के सभी प्रकार के कार्यक्रम के बाद पुरस्कार ग्रहिता को बोलने का मौका दिया जाता था। उस समय आयोजकों ने पुरस्कार ग्रहिता को केवल दो-तीन मिनट में संबोधन करने का सुझाव दिया। इस पर मैंने आयोजकों के व्यवहार शैली की आलोचना करते हुए मैं दक्षिण समाचार में एक लेख लिख था। उस लेख पर मदलाल जी मरलेचा ने खेद व्यक्त करते हुए प्रतिक्रिया व्यक्त की थी और भविष्य में इस पर विशेष रूप से ध्यान दिये जाने का आश्वासन दिया था। एक दिन मरलेचा जी दक्षिण समाचार कार्यालय आये तो मुनींद्र जी ने मेरा उनसे परिचय करवाया। तब मरलेचा जी ने मेरी रिपोर्टिंग और लेख की तारीफ की थी। ऐसे महान लेखक के निधन पर सुरेश गुगलिया और गजानन पांडेय के शोक संदेश मिले हैं। ये संदेश व्यक्ति की महानता दर्शाते हैं। मरलेचा जी के निधन पर पाठक भी लेख भेज सकते है।]
संघर्षमय जीवन को उत्कर्ष की ओर ले जाने का उनका आदर्शमय व्यक्तित्व सराहनीय रहा। धर्मपरायण, जीवटता, लक्ष्य प्राप्ति की महत्वाकांक्षा, व्यवसाय र्क्षेत्र में सफल उद्यमी, कवि, सफल मंच संचालक, आचार्य आनंद ऋषि साहित्य निधि के प्रारंभ से सक्रिय सदस्य रह चुके है। दो वर्ष पूर्व से आपने अंत समय तक संस्था के सह कार्यदर्शी पद का सफल निर्वाह किया। ऐसे बहुमुखी प्रतिभा धनी के आकस्मिक निधन से सकल जैन समाज, समस्त साहित्यिक संस्थाओं की अपूरणीय क्षति हुई है।
विधि की विडम्बना के सम्मुख हमें नतमस्तक होना ही पड़ता है। हे प्रभु दिवंगत आत्मा को चिर शांति व समस परिजनों को दुख सहन करने की शक्ति प्रदान करें। आनंद ऋषि साहित्य निधि संस्था की ओर से दिवंगत के परिजनों के प्रति हार्दिक संवेदना प्रगट करते हुए दिवंगत आत्मा को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करती है।
– सुरेश गुगलिया
सादा जीवन व उच्च विचार के प्रतीक आदरणीय मदनलाल जी मरलेचा
सादा जीवन व उच्च विचार के प्रतीक आदरणीय मदनलाल मरलेचा जी एक व्यक्ति अपने आंतरिक गुणों व व्यवहार से ही समाज में मान-सम्मान पाता है। सच्चा व सरल हृदय, दूसरों की पीड़ा में सहानुभूति रखना, प्रेमपूर्ण व्यवहार ही किसी व्यक्ति के लिए हमारे मन में आदर भाव पैदा करते हैं। दिवंगत मदनलाल मलरेचा जी ऐसी ही एक शख्सियत का नाम है। इसलिए उनके निधन के समाचार ने हिन्दी साहित्य प्रेमियों को गहरा आघात दिया है।
श्री मलरेचा जी अक्सर कवि गोष्ठियों में नजर आ जाते थे। सफेद कुर्ता व पायजामे में खिला – खिला मुस्कुराता चेहरा बरबस ही किसी को अपनी ओर आकृष्ट कर लेता था। वे बडे ही बेबाक तरीके से अपनी बात रखते थे। उनकी कविताओं में गहरा अर्थ व संदेश निहित होता था। उनमें समाज की विद्रूपता पर चुभता हुआ व्यंग्य होता था, जो हमें विचार करने पर विवश कर देता।
बडे हल्के – फुल्के ढंग से वे मर्म को छूती हुई कवितायेँ श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत करते थे कि सभी वाह – वाह कह उठते।सादा जीवन व विशाल चरित्र के धनी आदरणीय मदनलाल मरलेचा जी भले ही सशरीर हमारे बीच नहीं हैं परंतु उनकी सादगी, समाज के प्रति चिंता व दिलों को जोड़ने वाली कविताएं हमें प्रेरणा व पथ – प्रदर्शन करती रहेंगी। हम सभी साहित्य-प्रेमी दिवंगत आत्मा के प्रति भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वे उनके परिवार जनों को इस दुःख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें।
– गजानन पांडेय
गौरतलब है कि मदनलाल मरलेचा स्वर्गीय चांदा देवी मोतीलाल जी के सुपुत्र का 11 जून को निधन हो गया। 13 जून को उनका उठावना है। आपने महबूब कॉलेज (सिकंदराबाद) से स्नातक किया। आपका जन्म 20 सितंबर 1948 को महाराष्ट्र के बीड़ जिल के माजनगंज तालूका के गोवर्धन गांव में हुआ था। 25 अप्रैल 1970 को आपका विवाह पानीबाई अमोलकचंद सांकला की सुपुत्री शकुंतला देवी के साथ हुआ था। आपको दो भाई और चार बहनें हैं। भाई- ज्ञानचंद जी, प्रेमचंद जी मरलेचा और बहने- श्रीमती बसंताबाई रायसोनी स्व, शकुन्तलादेवी ललवाणी, श्रीमती पदमा बाई धारीवाल व श्रीमती चंचलदेवी बागमार।