हैदराबाद: केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के हैदराबाद केंद्र पर 478वें नवीकरण कार्यक्रम का समापन समारोह 17 नवंबर को आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्थान के निदेशक प्रो. सुनील बाबुराव कुलकर्णी ने की। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू विश्विद्यालय, हैदराबाद के हिंदी विभाग के प्रो. करण सिंह ऊटवाल उपस्थित थे। कार्यक्रम के संयोजक केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक प्रो. गंगाधर वानोडे एवं पाठ्यक्रम प्रभारी डॉ. फत्ताराम नायक थे। इस कार्यक्रम में कुल 29 (महिला-13, पुरुष-16) प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया।
इस पाठ्यक्रम के दौरान प्रो. गंगाधर वानोडे ने भाषाविज्ञान तथा उसके विविध पक्ष, ध्वनि, उच्चारण, भाषा परिमार्जन, भाषा कौशल, लेखन कौशल, डॉ. फत्ताराम नायक ने हिंदी साहित्य का इतिहास, व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र निर्माण में साहित्य की भूमिका, रस, छंद एवं अलंकार, शब्द, शक्तियाँ, डॉ. सी. कामेश्वरी ने हिंदी शिक्षण में प्रोद्यौगिकी का प्रयोग, हिंदी में रोजगार की संभावनाएँ, हिंदी व्याकारण तथा उसके विविध पक्ष, डॉ. रजनीधारी ने हिंदी भाषा का उद्भव व विकास, सृजनात्मक लेखन, भारतीय ज्ञान परंपरा, डॉ. राजीव कुमार ने मनोविज्ञान, पाठ नियोजन, भाषा शिक्षण, साहित्य शिक्षण, पाठयोजना (गद्य/पद्य) विषय को संपन्न किया तथा डॉ. राजश्री मोरे ने कौशल विकास तथा डॉ. वेंकटेश्वर राव ने प्रयोजनमूलक हिंदी विषय पर विशेष व्याख्यान दिया।
समापन समारोह में सर्वप्रथम मंचस्थ अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की शुरूआत की। सरस्वती वंदना एन. शिवप्रसाद द्वारा की गई। स्वागत गीत प्रमीला बाई तथा संस्थान गीत एम. लक्ष्मी, मंत्री नरसिम्हलू द्वारा गाय गया। इस अवसर पर अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. गंगाधर वानोडे ने कहा कि एक शिक्षक को हमेशा विद्यार्थी बना रहना चाहिए तथा जहाँ पर भी ज्ञान मिले उसे अर्जन करना चाहिए। शिक्षक ही सच्चे राष्ट्र निर्माता हैं। इसलिए उन पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। अपनी कक्षा में हिंदी भाषा के प्रति वातावरण बनाना और छात्रों में हिंदी के प्रति रूचि पैदा करना हम सब का कर्तव्य है। अध्यापक का दायित्व है कि वह छात्रों में अपने विषय के प्रति रुचि जागृत करें।
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मुख्य अतिथि के रूप में अपने वक्तव्य में प्रो. करन सिंह ऊटवाल ने कहा कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती। हर भाषा की अपनी-अपनी खूबियाँ हैं। हमें हिंदी के व्याकरण को जानना समझना है तो हमें अपनी मातृभाषा को जानना समझना होगा और दोनों में उच्चारण के भेद को समझना होगा। हमें साहित्यकारों तथा महापुरुषों की जीवनियों तथा आत्मकथाओं का अध्ययन करना चाहिए ताकि हम प्रेरणा लेकर जीवन में आगे बढ़ सके। इस अवसर पर पाठ्यक्रम प्रभारी डॉ. फत्ताराम नायक ने सफलतापूर्वक पाठ्यक्रम पूर्ण करने पर सभी अध्यापकों को शुभकामनाएँ प्रेषित करते हुए कहा कि आपने जो भी ज्ञान इस शिविर में अर्जित किया है उसे अपने विद्यार्थियों के बीच जरूर बाँटेगे ऐसा मेरा विश्वास है।
इस अवसर पर के. शिवलता व एच. नरेश द्वारा अपनी प्रतिक्रियाएँ व्यक्त की गई। हरिशंकर व प्रमिला बाई ने देशभक्ति गीता गाया तथा एस. वेणुगोपाल वर्मा द्वारा स्वरचित कविता प्रस्तुत की गई। समूह नृत्य महिला प्रतिभागियों द्वारा किया गया। पर-परीक्षण में प्रथम स्थान एस. वेणुगोपाल वर्मा, द्वितीय स्थान के. शिवलता, तृतीय स्थान एच. नरेश ने प्राप्त किया तथा सांत्वना पुरस्कार के रूप में ए. कविता ने प्राप्त किया।
इस बीच प्रतिभागियों द्वारा तैयार की गई हस्तलिखित पत्रिका ‘महबूबनगर जिला’ का मंचस्थ अतिथियों द्वारा विमोचन किया गया। अंत में सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र वितरिक किए गए। कार्यक्रम का संचालन एस. वेणुगोपाल वर्मा व धन्यवाद एन. शिव प्रसाद ने दिया तथा तकनीकी सहयोग सजग तिवारी, डॉ. संदीप कुमार ने दिया। राष्ट्रगान के साथ समापन समारोह संपन्न हुआ।