केंद्रीय हिंदी संस्थान केंद्र के 485वें नवीकरण पाठ्यक्रम का समापन समारोह, जानें इन वक्ताओं के विचार

हैदराबाद: केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र द्वारा पांडिचेरी राज्य के सरकारी एवं निजी विद्यालयों में कार्यरत हिंदी अध्यापकों/हिंदी प्रचारकों के प्रशिक्षण के लिए 485वें नवीकरण पाठ्यक्रम का आयोजन 3 से 14 जून तक किया गया है। इसका समापन समारोह 14 जून को जीवनानंद सरकारी महाविद्यालय, करमनीकुप्पन, पांडिचेरी के सभागार में संपन्न किया गया।

इस पाठ्यक्रम के दौरान प्रो. गंगाधर वानोडे ने भाषाविज्ञान तथा उसके विविध पक्ष, ध्वनि, उच्चारण, भाषा परिमार्जन, भाषा कौशल, डॉ. फत्ताराम नायक ने हिंदी व्याकरण के विविध पक्ष, रस, छंद, शक्तियाँ, भारतीय ज्ञान परंपरा, भारतीय जीवन पद्धति, भारतीय बहुधार्मिकता और समन्वय, डॉ. दीपेश व्यास ने साहित्य शिक्षण, पाठयोजना (गद्य/पद्य), शिक्षा मनोविज्ञान, हिंदी साहित्य का इतिहास, हिंदी भाषा का उद्भव व विकास, डॉ. एम. ज्ञानम ने व्यावहारिक हिंदी संरचना, तमिल तथा हिंदी के शब्दों में साम्य तथा वैषम्य, डॉ. जयशंकर बाबू ने हिंदी शिक्षण में प्रौद्योगिकी का प्रयोग, भाषा शिक्षण आदि विषयों का अध्यापन कार्य संपन्न किया तथा प्रो. पद््म प्रिया एस. ने दृश्य श्रव्य माध्यम से हिंदी शिक्षण विषय पर विशेष व्याख्यान दिया।

समापन समारोह कार्यक्रम की अध्यक्षता केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के निदेशक प्रो. सुनील बाबुराव कुळकर्णी ने की। मुख्य अतिथि के रूप में पुदुच्चेरी सरकारी महाविद्यालय, पुदुच्चेरी की सह-आचार्य डॉ. डी. उमादेवी एवं विशिष्ट अतिथि शारदा गंगाधरन महाविद्यालय, पुदुच्चेरी के सहायक आचार्य डॉ. जे. सुरेंद्रन, सम्मानित अतिथि के रूप में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा चेन्नई एवं त्रिचि के कार्यकारी समिति सदस्य डॉ. एन. सेंदिल कुमरन उपस्थित थे। इस अवसर पर पाठ्यक्रम संयोजक केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक प्रो. गंगाधर वानोडे एवं पाठ्यक्रम प्रभारी डॉ. फत्ताराम नायक एवं डॉ. दीपेश व्यास मंच पर उपस्थित रहे।

समापन समारोह कार्यक्रम का शुभारंभ द्वीप प्रज्ज्वलित कर तथा सरस्वती वंदना द्वारा किया गया। इसके पश्चात स्वागत गीत, संस्थान गीत एवं अतिथियों का प्रतिभागियों द्वारा स्वागत एवं परिचय प्रस्तुत किया। ‌प्रतिभागियों द्वारा अतिथियों का शॉल एवं पुष्पगुच्छ द्वारा स्वागत सम्मान किया गया। क्षेत्रीय निदेशक प्रो. गंगाधर वानोडे द्वारा मंचस्थ अतिथियों का स्वागत सम्मान संस्थान के अंगवस्त्र तथा माला पहनाकर किया गया। इस अवसर पर छात्रा पूर्विका ने भरतनाट्यम व छात्रा हेमप्रिया ने राधा कृष्ण की भक्ति पर आधारित नृत्य प्रस्तुत कर सबका मन मोह लिया तथा सामूहिक लोकनृत्य ‘कोलाट्टम’ प्रतिभागियों द्वारा प्रस्तुत किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा के निदेशक प्रो. सुनील बाबुराव कुळकर्णी ने आभासीय मंच के माध्यम से प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि हमें अपनी मातृभाषा से प्यार करना चाहिए। उसकी शिक्षा भी लेनी और देनी चाहिए। लेकिन साथ ही साथ हमें हिंदी भाषा को भी आत्मसात करने की आवश्यकता है, जो वैश्विक स्तर पर विकास की धारा से सभी को एक साथ जोड़ सके। हिंदी ने अपना सफर बोली से शुरू किया था। आज वह संपर्क की भाषा, रोजगार की भाषा, साहित्य की भाषा बन गई है। साथ ही साथ विश्व स्तर पर भी हिंदी का मान सम्मान बढ़ा है।

मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. डी. उमादेवी ने कहा कि बच्चों को सकारात्मक ज्ञान देना शिक्षक का कर्तव्य है। हम ही उन्हें माँ की तरह प्यार देते हैं और पिता की तरह डाँटते हैं। उनके अंदर मानवीय मूल्यों को जगाकर उन्हें अच्छा इंसान बनाने की जिम्मेदारी हमारी ही है। वह शिक्षक ही है जो अपने छात्रों की कमजोरी को ढूँढ़-ढूँढ़कर दूर कर सकता है। विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. जे. सुरेंद्रन ने कहा कि लगातार लिखने, पढ़ने, बोलने का अभ्यास करें तो कोई भी भाषा सीखी जा सकती है। यहाँ के छात्रों को हिंदी पढ़ाने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है क्योंकि यहाँ की मातृभाषा तमिल है।

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सम्मानित अतिथि के रूप में श्री सेंदिल कुमार ने कहा कि बहुत सारी व्यक्तिगत समस्याएँ होने के बावजूद इतने प्रतिभागियों का यहाँ आना यह दर्शाता है कि सीखने में किसी भी समस्या का होना बहुत बड़ी बात नहीं है और सीखने के लिए कोई उम्र की सीमा नहीं होती। पाठ्यक्रम संयोजक प्रो. गंगाधर वानोडे ने कहा कि हमें एक से अधिक भाषा सीखने में बहुत लाभ होता है।

इस प्रशिक्षण से सभी अध्यापकों के ज्ञान में नवीनता आई होगी जो आगे चलकर अपने छात्रों को देंगे। निरंतर अभ्यास से सभी प्रकार की त्रुटिया दूर की सकती हैं। पाठ्यक्रम प्रभारी डॉ. फत्ताराम नायक ने कहा कि शिक्षकों को तमिल भाषा के साथ हिंदी के महत्व को भी अपने छात्रों को बताना चाहिए कि कैसे वे हिंदी पढ़कर विश्व पटल पर अपनी पहचान बना सकते हैं। आज का दौर बहुभाषियों का दौर है। एक भाषा सीखने से काम नहीं चलेगा।

इस अवसर पर प्राध्यापक डॉ. दीपेश व्यास ने कहा कि भाषा महसूस करके पढ़ाई जाए तो अपने को नवीनता एवं रोचकता महसूस होती है। इस कार्यक्रम का संचालन विष्णुप्रिया द्वारा किया गया। आभार एवं धन्यवाद ज्ञापन विजयलक्ष्मी द्वारा प्रस्तुत किया गया। इस पाठ्यक्रम के दौरान प्रतिभागियों ने हस्तलिखित पत्रिका ’पुदुच्चेरी’ की रचना की।

समापन समारोह के दौरान अतिथियों द्वारा पुदुच्चेरी’ हस्तलिखित पत्रिका का लोकार्पण किया गया। प्रतिभागियों को अतिथियों के द्वारा प्रमाण पत्र वितरित किए गए। पर-परीक्षण के आधार पर उत्तम अंक प्राप्त छात्रों को विशेष पुरस्कार दिए गए। पी. धनलक्ष्मी को प्रथम, डॉ. माला कुमारी को द्वितीय, ए. अप्पाण्डै राजन को तृतीय पुरस्कार प्रदान किए गए। के. एस. उमा, पी. जमुनावती, ए. विष्णुप्रिया एवं राजमोहन आर. को प्रोत्साहन पुरस्कार प्रदान किए गए।

इस पाठ्यक्रम के समापन समारोह में प्रतिभागियों द्वारा अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। पाठ्यक्रम से संबंधित प्रतिक्रियाएँ डॉ. माला कुमारी एवं अपाडे राजन द्वारा दी गईं। प्रतिभागियों द्वारा रंगारंग कार्यक्रम एवं देशभक्ति गीत प्रस्तुत किया। अंत में राष्ट्रगान से कार्यक्रम का समापन हुआ। इस नवीकरण पाठ्यक्रम में कुल 66 (महिला-64, पुरुष-02) प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया।

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