कहना न होगा कि तकनीकी रूप से उन्नत इस युग में कृत्रिम मेधा या आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस का महत्व बहुत बढ़ गया है। मशीन के मानव दिमाग की तरह काम करने को कृत्रिम मेधा कहा जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में भाषा शिक्षण हेतु इससे अनेक गवाक्ष खुले हैं। कृत्रिम मेधा ने भाषा सीखने में क्रांति लायी है। यह पठन-पाठन और लेखन-बोधन आदि में काफी अंश तक सहायक है। आज के रविवारीय साप्ताहिक कार्यक्रम में हिंदी शिक्षण और कृत्रिम मेधा विषय के विविध आधुनिक पहलुओं पर प्रकाश डालने हेतु एक कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें देश-विदेश के अनेक सुधी विद्वानों ने हर्षोल्लास और सक्रियतापूर्वक भाग लेकर ज्ञानार्जन किया।
हैदराबाद: केंद्रीय हिंदी संस्थान, विश्व हिंदी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय हिंदी सहयोग परिषद तथा वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा ‘हिंदी शिक्षण और कृत्रिम मेधा’ (एआई ) विषय पर साप्ताहिक आभासी गोष्ठी आयोजित की गई। कार्यशाला के आरंभ में साहित्यकार डॉ जवाहर कर्नावट द्वारा कृत्रिम मेधा से संबन्धित सारगर्भित आरंभिक पृष्ठभूमि प्रस्तुत की गई।
तत्पश्चात केंद्रीय हिंदी संस्थान के हैदराबाद केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ गंगाधर वानोडे द्वारा आत्मीयता से माननीय अध्यक्ष,प्रस्तोता, विद्वानों तथा श्रोताओं का स्वागत किया गया। संचालन का दायित्व गृह मंत्रालय के सहायक निदेशक डॉ मोहन बहुगुणा द्वारा बड़े ही संयत भाव और ओजपूर्ण वाणी में ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ तथ्यों को गुंफित करते हुए बखूबी संभाला गया। उन्होंने वक्ताओं का बारी-बारी आदर सहित परिचय देते हुए विचार प्रकटीकरण हेतु आमंत्रित किया।
कार्यशाला में पावर प्वाइंट की जीवंत प्रस्तुति देते हुए साहित्यकार एवं तकनीकीविद प्रो राजेश कुमार ने कहा कि आज के समय में बिना ड्राइवर की कार, बिना वकील की अदालत और बिना चिकित्सक के चिकित्सालय की कल्पना कृत्रिम मेधा से सहायक हो रही है। शिक्षण के क्षेत्र में चैट जीपीटी (जेनेरटेड प्री-ट्रेंड ट्रांसफार्मर) काफी अंश तक सहायक है। इससे पाठ्यक्रम, पाठ योजना और बोध प्रश्न आदि स्वतः ही तैयार किए जा सकते हैं। कृत्रिम मेधा से समय और श्रम की बचत होती है तथा लेखन, साहित्य एवं पर्यावरण आदि के लिए सुलभ संदर्भ के रूप में पर्याप्त सामग्री आसानी से मिल जाती है। इससे उच्चारण, व्याकरण एवं अभ्यास से संबंधित मदद सहज ही उपलब्ध हो जाती है।
उन्होंने चिड़ियाघर पर लिखने के लिए लेख, जीवंत सामग्री सहित समझाया और लेख तैयार कर बताया। उन्होंने यह भी दिखाया कि व्याकरण के विविध पक्षों को कृत्रिम मेधा से समझाया जा सकता है। मनचाही संख्या में पाठ पर आधारित बोध प्रश्न और क्वीज तथा पोस्टर आदि तैयार किए जा सकते हैं। इसके अलावा फीड बैक भी लिया जा सकता है।
ये सभी सुविधाएँ हिंदी में भी उपलब्ध हैं। हालाँकि इसमें नकल की गुंजाइश रहती है किन्तु ऐसे सॉफ्टवेयर भी तैयार हो गए हैं जो बता देते हैं कि सामग्री स्वयं तैयार की गई है या कहीं से ली गई है। रूस में प्रोफेसर रह चुके डॉ राजेश कुमार का मन्तव्य था कि कृत्रिम मेधा का ज़िम्मेदारी से इस्तेमाल होना चाहिए और दुरुपयोग कदापि नहीं होना चाहिए।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में ‘अमर उजाला’ डिजिटल के संपादक एवं वेब विशेषज्ञ जयदीप कर्णिक ने इस कार्यक्रम के आयोजन पर हर्ष प्रकट किया। उन्होंने कहा कि नवाचार का आकर्षित करना स्वाभाविक है। मनुष्य का सृजन मनुष्य को विस्थापित नहीं कर सकता। कृत्रिम मेधा अच्छी भी है और निर्मम भी है। इससे हम अपने नेमी कार्यों को आसान बना सकते हैं। हमें सोच-समझ के साथ इसका प्रयोग करना चाहिए। उन्होने अमेरिकी सीनेट की सुनवाई और बयान के मद्देनजर न्यूयार्क टाइम्स के संवाददाता द्वारा दी गई प्रस्तुति को ऐतिहासिक बताया।
इसमें साफ साफ कहा गया कि कृत्रिम मेधा किस-किस तरह काम करेगी, यह पूरी तरह से बता पाना कठिन होगा। अतएव हमें इसके खतरे से सचेत रहना होगा। तीन दशको से भी अधिक समय से इस क्षेत्र में अनुभवी श्री कार्णिक ने कहा कि गूगल में सामग्री को व्यवस्थित किया जाता है जबकि चैट जीपीटी में रचे हुए को चुनकर सहेजा गया है। यह केवल तकनीक है जिसमें कंपनियाँ अपना फायदा देखती हैं।
हमारे लिए केवल विदेशी नकल नहीं बल्कि भारत और भारतीयता के साथ भाषा, संस्कृति, सोच, ज्ञान परंपरा तथा विशद साहित्य आदि को साथ लेकर आगे बढ़ाना श्रेयस्कर होगा। भारतीय तकनीकी कंपनियों को भारतीय परिप्रेक्ष्य में सामग्री तैयार करनी चाहिए।इसके लिए चैतन्य वर्ग में चिंतन आवश्यक है। पत्रकारिता तकनीकी के विशेषज्ञ श्री कर्णिक जी ने कहा कि परमाणु बम बनाने वाले भी इसके प्रयोग से सशंकित थे। इतना जरूर है कि रचने वाला बचता रहेगा और मनुष्य की अस्मिता कायम रहेगी।
प्रश्नोत्तर सत्र में प्रो ललिता रामेश्वर के एआई की आवश्यकता के सवाल पर प्रो राजेश कुमार ने कहा कि यह तकनीकी सहायिका है। कनाडा से प्रो संदीप कुमार के ध्वनि आधारित प्रश्न के उत्तर में श्री मोहन बहुगुणा जी बताया कि यह एक माड्यूल है जो ध्वनि के आधार पर भी कार्य करता है। श्री उमेश मेहता के आगामी खतरे के सवाल पर बताया गया कि ये मानव मस्तिष्क से आगे नहीं बढ़ पाएँगी। बेशक आजकल मशीन भी मशीन से बात कर लेती है। मशीन पर मनुष्य का नियंत्रण हमेशा रहेगा।
हिरोशिमा में भारतीय प्रधानमंत्री जी से मात्र एक दिन पूर्व शिष्ट मुलाक़ात कर चुके जापान से जुड़े पद्मश्री डॉ तोमियो मिजोकामी ने गदगद होकर कहा कि इस समय उनके मनःमस्तिष्क में कृत्रिम मेधा से संबन्धित कोई प्रश्न नहीं है। वे प्राकृतिक मेधा को महत्व देते हैं। जी-7 सम्मेलन के लिए हिरोशिमा में पधारे माननीय प्रधानमंत्री जी श्री नरेंद्र मोदी जी से लगभग पाँच मिनट अप्रत्याशित मिलन करिश्मा है, मैं अभिभूत हूँ, शब्द बद्ध करना कठिन है। उनके इस कथन से इस पटल से जुड़े सभी विद्वानो और श्रोताओं में अपार हर्ष की लहर दौड़ गई।
अमेरिका के पेंसिल्वेनियाँ से जुड़े आचार्य सुरेंद्र गंभीर ने कहा कि आज की कार्यशाला से संभावनाओं के अपार द्वार खुले हैं। वयोवृद्ध भाषा विज्ञानी प्रो वी जगन्नाथन का विचार था कि कृत्रिम मेधा कृत्रिम ही है। भाषा की पैदाइश कृत्रिम मेधा से नहीं बल्कि संचेतना होती है। पहले इसकी परख हो, उसके बाद प्रयोग हो। इसकी विश्वसनीयता सोचनीय है।
कनाडा में पाँच दशक से अधिक समय से रह रहीं हिंदी अध्यापिका मैडम प्रमिला भार्गव ने कहा कि कम्प्यूटर एक सुविधा है और जड़ वस्तु है। यह चेतन पर हावी नहीं हो सकता। कृत्रिम मेधा से सहूलियत मिलती है। बच्चों में भाषा के प्रति रुचि और सम्मान बढ़ाया जाना चाहिए। केवल वयोवृद्धों से भाषा को चलाना मुश्किल होगा। प्रायः प्रतिबंध विस्फोट कर जाते हैं।
अंत में सिंगापुर नेशनल यूनिवर्सिटी से जुड़ीं इस कार्यक्रम की संयोजक प्रो संध्या सिंह ने मन्तव्य दिया कि कृत्रिम मेधा को प्रयोग में लाकर परखने की जरूरत है। दूर-दराज या दुर्गम क्षेत्रों में शिक्षकों की कमी इससे काफी अंश तक पूरी की जा सकती है। उन्होंने आत्मीय भाव से माननीय अध्यक्ष, विशिष्ट वक्ता, अतिथि वक्ताओं, सभी विद्वानों और सुधी श्रोताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट की।
विदुषी प्रो संध्या सिंह द्वारा इस कार्यक्रम से देश-विदेश से जुड़ी संस्थाओं एवं व्यक्तियों को नामोल्लेख सहित धन्यवाद दिया गया। उन्होंने इस कार्यक्रम से जुड़े संरक्षकों, संयोजकों, मार्गदर्शकों, सहयोगियों, शुभचिंतकों तथा विभिन्न टीम सदस्यों को आदर सहित धन्यवाद दिया। यह कार्यक्रम यू ट्यूब पर वैश्विक हिन्दी परिवार शीर्षक से उपलब्ध है। रिपोर्ट लेखन कार्य डॉ जयशंकर यादव द्वारा किया गया।