केंद्रीय हिंदी संस्थान : ‘हिंदी और बांग्ला अंतर्संबंध – स्थिति और संभावनाएँ’ विषय पर इन वक्ताओं ने दिया संदेश

हैदराबाद (डॉ जयशंकर यादव की रिपोर्ट) : वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा विश्व हिंदी सचिवालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, वातायन के संयुक्त तत्वावधान में रविवारीय कार्यक्रम “हिन्दी बंगाली अंतर्संबंध – स्थिति और संभावनाएं” विषय पर ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसकी अध्यक्षता करते हुए डॉ बाबा साहब अंबेडकर शिक्षा विश्वविद्यालय, कोलकाता की कुलपति और हिंदी, बंगाली की साहित्यकार प्रो सोमा बंद्योपाध्याय ने कहा कि भारत विविधता में एकता वाला महामिलन का देश है। भारतीय भाषाओं का अटूट संबंध है। इन दोनों भाषाओं के साहित्य का बहुत बड़े पैमाने पर आपसी अनुवाद हुआ है जो जन मानस तक पहुंचाना चाहिए। हमें भ्रांतियों से बचना चाहिए। प्रायः बंगाली साहित्यकारों को अपनी रचनाओं का हिंदी अनुवाद सुखद अनुभूति देता रहा है। आज तुलनात्मक अध्ययन के विस्तार की नितांत आवश्यकता है।

शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सह संयोजक ए विनोद ने कहा कि भारतीय भाषाओं का आपसी संबंध अटूट है। विद्वानों और विभिन्न आयोगों की सिफ़ारिशों के मद्देनजर इसे मजबूती देनी होगी। नई शिक्षा नीति से भाषाई क्षेत्र में बहुत आशाएँ हैं। हम भारतीय भाषाओं को गौरवान्वित कर नए भारत का संकल्प लें। साहित्यकार और रेल मंत्रालय में राजभाषा के निदेशक डॉ बरुण कुमार का कहना था कि भौगोलिक दृष्टि से हिन्दी के व्यापक क्षेत्र की सीमाओं की भाषाओं में हिन्दी बंगला संबंध लोक मन में अपेक्षाकृत अधिक प्रगाढ़ है। इन दोनों भाषाओं के लोक मन का जुड़ाव सदियों से साहित्य, संगीत, कला, नाटक, सिनेमा और अध्यात्म आदि में गुंफित मिलता है। अपनी श्रेष्ठता का बोध भी स्वाभाविक है। व्यक्ति, समाज और परम्पराओं को व्यक्तिगत और संस्थागत स्तर भी सुनने की निहायत जरूरत है। इस अवसर पर अनेक देशों के साहित्यकार, विद्वान-विदुषी, प्राध्यापक, शोधार्थी और भाषा प्रेमी आदि काफी संख्या में जुड़कर लाभान्वित हुए।

आरंभ में भारत से डॉ जयशंकर यादव द्वारा आत्मीयतापूर्वक स्वागत किया गया। तत्पश्चात कांचनपाड़ा कालेज के प्राध्यापक डॉ गोस्वामी जैनेन्द्र कुमार भारती द्वारा संचालन का दायित्व संभाला गया। रचनाकार साहित्य समिति कोलकाता के अध्यक्ष सुरेश चौधरी का मन्तव्य था कि भक्तिकाल से हिन्दी बांग्ला संबंध प्रगाढ़ मिलते है। बंगाली साहित्यकारों ने हिन्दी को हर क्षेत्र में प्राथमिकता दी और हिन्दी के साहित्यकार कोलकाता आदि में रहकर विपुल सृजन किए। उन्होंने बंगला से हिन्दी में अपनी छांदिक रचनाएँ भी सोदाहरण सुनाईं। साहित्य अकादमी कोलकाता के क्षेत्रीय सचिव डॉ देवेंद्र कुमार देवेश का मानना था कि बंगाली के साहित्यकार हिन्दी और भारतीय भाषाओं की अपेक्षा विदेशी साहित्य को अधिक तरजीह देते हैं। भाषाई प्रगाढ़ता बढ़ाने का सतत प्रयास होना चाहिए।

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हिंदी-बांग्ला विमर्श में भाग लेते हुए स विवेक साव का कहना था कि पिछले दो सौ वर्षों में अनेक विभूतियों ने इन दोनों भाषाओं में सन्निकटता लाई है। विश्वजीत मजूमदार ने कहा कि शब्दों और रचना की दृष्टि से दोनों भाषाएँ अल्प प्रयास में सीखने में सरल हैं। लिंग और वचन की कुछ कठिनाइयाँ स्वाभाविक हैं। डॉ काजू कुमारी साव ने कहा कि हिन्दी बंगला एक ही भारोपीय परिवार की भाषाएँ हैं।नवजागरण काल में बहुत निकटता आई। हमें लक्ष्य भाषा की प्रकृति का विशेष ध्यान रखना होगा। पश्चिम बंगाल सरकार के मुख पत्र पश्चिम बंगाल के संपादक डॉ जय प्रकाश मिश्र का कहना था कि आपसी सम्प्रेषण का अभाव दिखाई देता है। दोनों के हाथ ही नहीं बल्कि हृदय भी मिलने चाहिए। कार्यक्रम में देश – विदेश के विद्वानों ने भाग लिया। धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।

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