[नोट- हमारे खास मित्र और तेलुगु दैनिक ‘निर्देशम’ के मुख्य संपादक याटकर्ला मल्लेश ने खून से “लथपथ” आंदोलन: कब रुकेगी नक्सल-पुलिस हिंसा..? को धारावाहिक प्रकाशित करने की अनुमति दी है। इसके लिए हम उनके आभारी है। विश्वास है कि पाठकों को ये रचनाएं लाभादायक साबित होगी।]

तेलुगु दैनिक ‘निर्देशम’ के मुख्य संपादक याटकर्ला मल्लेश की कलम से…
‘घायल हुआ सूरज’
यह सच है.. क्या सूरज घायल हो गया है? हालांकि, क्या आंदोलनकारियों के बलिदानों से रक्तरंजित इतिहास के लिए “घायल सूरज” यह शीर्षक ठीक लगता है..? भारत में 1925 में आरंभ हुआ कम्युनिस्ट आज आंदोलन बिखर गया और लाल झंडा भी फीका पड़ता जा रहा है। फिर भी, यह सच है कि कम्युनिस्टों, क्रांतिकारियों और नक्सलवादियों- चाहे इनके नाम कुछ भी हो, उनके आंदोलनों के कारण निचले तबकों में चेतना जरूर आई है। सबसे विडंबना की बात यह है कि क्या बिखरे नक्सलवादियों या कम्युनिस्टों के लिए अपेक्षित “नई लोकतांत्रिक क्रांति” हासिल करना संभव है? आज के सोशल मीडिया के बढ़ते दौर में यह असंभव ही लगता है। क्या फिर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की चेतावनी के अनुसार 31 मार्च 2026 तक देश से माओवादियों का सफाया संभव है? इतिहास का सच तो यह है कि किसी भी आंदोलन का सफाया असंभव है।
यह भी सौ फीसदी सच है कि पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के नक्सलबाड़ी गांव में चारू मजूमदार के नेतृत्व में आदिवासियों द्वारा जमींदारों के खिलाफ शुरू हुआ आंदोलन पूरे देश में फैल गया। इसीलिए केंद्र की सत्ता पर काबिज भाजपा सरकार नक्सलियों को पाकिस्तान जैसा दुश्मन मानती है। इसी बहाने कथित मुठभेड़ के नाम पर नक्सलियों का सफाया कर रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत भरे संसद में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को “शहरी नक्सली” करार दिया। इससे स्पष्ट होता है कि केंद्र सरकार नक्सली मुद्दों पर कितनी सख्त है।
कौन है शहरी नक्सली?
शहरी नक्सली की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है। यह शब्द केवल उन लोगों के लिए प्रयोग किया जा रहा है जो मोदी सरकार और पार्टी की आलोचना करते हैं। इतना ही नहीं इनकी आलोचना करने वालों को कभी-कभी शहरी नक्सली और असामाजिक तत्व भी कहा जा रहा है। हाल ही में पृथक तेलंगाना में केसीआर सरकार ने खतरनाक गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (उपा) अधिनियम के तहत सार्वजनिक संगठनों के 120 नेताओं के खिलाफ मामले दर्ज किए हैं। पुलिस ने इन सभी को शहरी नक्सली करार दिया है। इसमें प्रोफेसर हैं। पत्रकार हैं। विरसम् और अरुणोदय सांस्कृतिक महासंघ के नेता हैं। यह सच है कि नक्सलवाद के नाम पर किसी को भी, कभी भी, कहीं भी ”उपा” एक्ट यानी देशद्रोह के तहत गिरफ्तार किया जा सकता है। केसीआर सरकार ने प्रोफेसर हरगोपाल के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज किया। हालांकि, बाद में बुद्धिजीवियों से आये दबाव के चलते उसे वापस ले लिया।
इस अवसर पर प्रोफेसर हरगोपाल ने सरकार से मांग की कि न केवल उनके खिलाफ, बल्कि उन सभी के खिलाफ भी मामले वापस लें जिनके खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (उपा) के तहत मामला दर्ज किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि तेलंगाना सरकार ने अन्य सरकारों की तरह काम किया है। लेकिन आंदोलनकारी पार्टी की तरह काम नहीं कर रही है। हरगोपाल ने आगे कहा कि उन्होंने कभी भी यह नहीं सोचा था कि तेलंगाना में ऐसी सरकार आएगी। हरगोपाल ने कहा कि उपा एक्ट एक दुष्ट कानून है और वह इस कानून को निरस्त करने के लिए आखिर सांस तक लड़ेंगे। यह कानून खुलकर बोलने की आजादी छीन लेता है। उन्होंने कहा कि वे लोगों के बीच जाएंगे और प्रतिबंधात्मक कानूनों के बारे में सभी को जागरूक करेंगे। इसके लिए सभी संगठनों के साथ मिलकर अपना संघर्ष तेज करेंगे। ज्ञातव्य है कि तत्कालीन सीएम केसीआर ने उस समय डीजीपी को आदेश दिया था कि प्रोफेसर हरगोपाल के खिलाफ दर्ज देशद्रोह का मामला वापस लें।
प्रोफेसर हरगोपाल के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया है। यह मामला मुलुगु जिले के ताड़वाई पुलिस ने एक वर्ष पहले ही दर्ज की थी, लेकिन यह मामला देर से प्रकाश में आया। इसके खिलाफ आंदोलनकारी और बुद्धिजीवियों ने नाराजगी व्यक्त की। इसके चलते केसीआर ने हरगोपाल के खिलाफ दर्ज मामले को हटाने का आदेश दिया। आइये अब जानते है कि पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी में आरंभ हुआ आंदोलन कैसे अपना लक्ष्य भटक गई है।
नक्सलवादी आंदोलन के सफर में…
नक्सलवादी आंदोलन के सफर में उत्थान, पतन और आघात कोई नई बात नहीं है। नक्सलबाड़ी में शुरू हुआ यह आंदोलन जल्द ही श्रीकाकुलम की पहाड़ियों में पहुंच गया। इसके बाद तेलंगाना में भी मजबूत हो गया। क्रांति की लहरें उठते गये और टूटते भी गये हैं…!! हालाँकि, सरकार के दबाव से नक्सलवादी आंदोलन उभर नहीं पाया। फिर भी जैसे-जैसे पुरानी लहरें चली जाती हैं, वैसे-वैसे नई लहरें उठती ही जा रही है। भले ही नक्सलवादी मारे जा रहे है। फिर भी बंदूकें उठते ही जा रहे हैं।
नक्सल की लाशें गिनने वाली सरकार को चुनौतियां देती ही जा रही है। नक्सल ने मुद्दों की आड़ में गुप्त संघर्षों के एजेंडे से लेकर ग्राम समितियों के खुले गठन तक तेलंगाना आंदोलन के सभी चरणों को देखा है। आंदोलन के पथ पर केवल विजय की झलक ही नहीं, पराजय के दुख भी सहना पड़ा हैं। इस संघर्ष में कमज़ोरियाँ हैं और व्यवधान हैं। इसमें न केवल दुश्मनों की ओर से निर्मुलन है, बल्कि कोवर्ट (मुखबिर) की मार भी पड़ी हैं। इतने सालों के आंदोलन के बाद अब क्या होगा…? जैसे सवाल भी सबके मन में हैं।
“हम हर जगह है” कहने वाले नक्सलवादियों की बातों से अब लग रहा है कि हम कहां हैं? जैसा सवाल उठते हैं तो सुनने में अजीब सा लगता है। हालाँकि, इस लंबे संघर्ष के सफर में सभी जीत नहीं हैं। हार के जख्म भी शामिल हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि इन असफलताओं से हमें क्या सीख मिली है और हमने क्या सबक लिया है?
नक्सलबाड़ी आंदोलन के संस्थापक चारू मजूमदार अब नहीं है। तेलंगाना में आंदोलन को मजबूत करने वाले कोंडापल्ली सीतारामय्या भी नहीं है। लेकिन.. आंदोलन को देश के कोने-कोने तक ले जाने वाले माओवादी नेता गणपति उर्फ मुप्पाल्ला लक्ष्मण राव अभी भी आंदोलन की राह ही पर सक्रिय हैं। हालाँकि… बदलते परिप्रेक्ष्य में जैसे-जैसे संचार व्यवस्था मजबूत होती जा रही है, वैसे-वैसे नक्सली आंदोलन के खिलाफ पुलिस का दमन तेज होता जा रहा है। आज के सोशल मीडिया के युग में नक्सलवादी आंदोलन को अपूरणीय क्षति हो रही है। नक्सल और पुलिस की गोलियों से घायल गावों का हाल बेहाल है। नक्सली आंदोलन और मुठभेड़ों के इस ‘रक्तरंजित इतिहास में कईं अविश्वसनीय तथ्य भी मौजूद हैं।
(भाग-2 में मिलते हैं)
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ధారావాహిక – 01
యాటకర్ల మల్లేష్, జర్నలిస్ట్
‘గాయపడ్డ సూరీడు’
నిజమే.. సూరీడు గాయ పడుతారా..? కానీ.. ఈ ఉద్యమ త్యాగాల రక్త చరిత్రకు గాయ పడ్డ సూరీడు అనే శీర్శిక సరి పోతుందేమో..? భారత దేశంలో 1925లో ప్రారంభమైన కమ్యూనిష్టు ఉద్యమం ముక్కముక్కలుగా విడి పోయి ఎర్రజెండా రంగు వెలిసి పోతుంది. అయినా.. ఆ కమ్యూనిష్టులు, విప్లవ కారులు, నక్సలైట్లు పేర్లు ఏవైనా వాళ్లు చేసిన పొరాటాల ఫలితంగా అట్టడుగు వర్గీయులలో చైతన్యం వచ్చిందానేది నిజం. అంతకంటే ఘోరం ఏమిటంటే..? ముక్క ముక్కులుగా విడి పోయిన నక్సలైట్లు కావచ్చు.. కమ్యూనిష్టులు కావచ్చు వారు కోరుకునే ‘‘నూతన ప్రజాస్వామిక విప్లవం’’ సాధించడం సాధ్యమా..? అంటే సోషల్ మీడియా డామినేట్ చేస్తున్న నేటి కాలంలో అసాధ్యమనే చెప్పొచ్చు. 2026 మార్చి 31 వరకు మావోయిస్టులను భారత దేశంలో లేకుండా చేస్తానని ప్రకటించిన కేంద్ర హోంమంత్రి అమిత్ షా మాటలు ఆచరణలో సాధ్యమా..? అంటే సాధ్యం కాదానేది చరిత్ర చెబుతున్న సత్యం.
పశ్చిమ బెంగల్ రాష్ట్రంలోని డార్జిలింగ్ జిల్లా నక్సల్బరీ గ్రామంలో చారు మజుందర్ నాయకత్వంలో గిరిజనులు భూస్వాములపై తిరుగుబాటు చేయడంతో ప్రారంభమైన ఈ ఉద్యమం దేశ వ్యాప్తంగా విస్తరించిందానేది నగ్న సత్యం. అందుకే కేంద్రంలో అధికారంలో ఉన్న బీజేపీ నక్సల్స్ ను విదేశీ శతృవుల్లా భావిస్తోంది. ఎన్ కౌంటర్ ల పేరిట ఏరి పారేస్తోంది. దేశ ప్రధాని నరేంద్ర మోదీ సైతం పార్లమెంట్ లో ప్రతిపక్ష నేత రాహుల్ గాంధీని ‘‘అర్బన్ నక్సలైట్’’ గా ముద్ర వేశారంటే కేంద్రం నక్సలైట్లపై ఎంత కఠినంగా వ్యవహరిస్తుందో అర్థం చేసుకోవచ్చు.
ఎవరీ అర్బన్ నక్సల్?
అర్బన్ నక్సలైట్ కు నిర్దిష్ట నిర్వచనం ఏమీ లేదు. కేవలం మోదీ ప్రభుత్వాన్ని, పార్టీని విమర్శించేవారిని పిలిచేందుకు ఉపయోగిస్తున్న ఓ పదం ఇది. అప్పుడప్పుడూ అర్బన్ నక్సల్స్, సంఘ వ్యతిరేకులు అని కూడా అంటున్నారు. ఇప్పటికే ప్రత్యేక తెలంగాణలో కేసీఆర్ ప్రభుత్వంలో 120 మంది ప్రజా సంఘాల నేతలపై ప్రమాదకరమైన ‘‘ఉపా’’ చట్టం కింద కేసులు పెట్టారు. వీళ్లంతా అర్బన్ నక్సలైట్లుగా పోలీసులు ముద్రలు వేశారు. అందులో ప్రొఫెసరులు ఉన్నారు. జర్నలిస్టులు ఉన్నారు. విరసం.. అరుణోదయ సాంస్కృతిక సమాఖ్య నాయకులున్నారు. నిజమే.. నక్సలైట్ పేరుతో ఎవరినైనా.. ఎప్పుడైనా.. ఎక్కడైనా ‘‘ఉపా’’ చట్టం అంటే దేశ ద్రోహం కింద అరెస్టు చేయవచ్చు. దేశ ద్రోహం కింద ప్రొఫెసర్ హరగోపాల్ పై కేసీఆర్ ప్రభుత్వం కేసు పెట్టి ఆ తరువాత ఎత్తి వేసింది.
ఈ సందర్భంగా హరగోపాల్ మాట్లాడుతూ తనపైనే కాకుండా చట్ట వ్యతిరేక కార్యకలాపాల నిరోధక (ఉపా) చట్టం పెట్టిన ప్రతి ఒక్కరిపైన కేసులు ఎత్తివేయాలని అప్పట్లో కేసీఆర్ ను డిమాండ్ చేశారు. తెలంగాణ ప్రభుత్వం ఇతర ప్రభుత్వాల వలే వ్యవహరించింది కానీ ఉద్యమ పార్టీలా వ్యవహరించలేదన్నారు. ఇటువంటి ప్రభుత్వం తెలంగాణాలో వస్తుందని ఎప్పుడూ అనుకోలేదని అనే అభిప్రాయాన్ని వ్యక్తం చేశారు. ఉపా చట్టం అనేది ఒక దుర్మార్గమయిన చట్టమని.. ఈ చట్టాన్ని రద్దు చేయడం కోసం పోరాడుతామన్నారు హరగోపాల్. ఈ చట్టాల ద్వారా స్వేచ్చగా మాట్లాడే అవకాశం కోల్పోతామన్నారు. నిర్భంద చట్టాలపై ప్రజల్లోకి వెళ్లి ప్రతి ఒక్కరినీ చైతన్య పరుస్తామన్నారు. అన్ని సంఘాలతో కలిసి తమ పోరాటాలను ఉదృతం చేస్తామన్నారు. ప్రొఫెసర్ హరగోపాల్ పై పెట్టిన దేశద్రోహం కేసు ఎత్తివేయాలని అప్పట్లో డీజీపీకి సీఎం కేసీఆర్ ఆదేశాలు ఇచ్చిన సంగతి తెలిసిందే.
ప్రొఫెసర్ హరగోపాల్ చట్ట వ్యతిరేక కార్యకలాపాల నిరోధక చట్టం (ఉపా) కింద కేసు నమోదయ్యింది. దీని ములుగు జిల్లా తాడ్వాయి పోలీసులు ఏడాది క్రితమే పెట్టినా ఆలస్యంగా వెలుగులోకి వచ్చచింది. దీనిపై ఉద్యమకారులు, మేధావులు, ఆగ్రహం వ్యక్తం చేశారు. దీంతో కేసును ఎత్తేవేయాలంటూ కేసీఆర్ ఆదేశమిచ్చారు. పశ్చిమ బెంగాల్ లో నక్సల్బరీ ఉద్యమం ప్రారంభమైన తరువాత దాని గమ్యం ఎటు వెళ్లిందో ఒకసారి పరిశీలిద్దాం.
నక్సల్స్ ఉద్యమ ప్రస్థానంలో..
‘‘నక్సల్స్ ఉద్యమ ప్రస్థానంలో అస్తమయాలు, ఉదయాలు, గాయాలు కొత్త కాదు. నక్సల్ బరిలో మొదలైన తుపాన్ కొంత కాలంలోనే శ్రీకాకుళం కొండలను ముద్దాడింది.. ఆ తరువాత తెలంగాణ ప్రాంత తీరాన్ని తాకింది. విప్లవ కెరటాలు ఎగిసి పడ్డాయి..! విరిగి పడ్డాయి…!! అయినా అల్లకల్లోలమైన సాగరం ఇంకా కుదురుకోలేదు. పాత అలలు పడిపోగానే కొత్త అలలు ఎగిసిపడుతునే ఉన్నాయి. శరీరాలు నేల రాలుతున్నా.. తుపాకులు లేచి నిలుచుంటూనే ఉన్నాయి.
శవాలను లెక్కించే మీసాలకు సవాలు విసురుతూనే ఉన్నాయి. సమస్యల కవర్లో రహాస్య పోరాటాల ఎజెండా నుంచి గ్రామ కమిటీల బహిరంగ నిర్మాణం దాకా తెలంగాణ ఉద్యమంలోని అన్ని దశలనూ చూసింది. పోరుబాటలో విజయాల రెపరెపలే కాదు, అపజయాల అశ్రుతర్పణలూ ఉన్నాయి. బలహీనతల భంగపాట్లు ఉన్నాయి. శత్రునిర్మూలనే కాదు కోవర్టుల ఎదురుదెబ్బలూ ఉన్నాయి. ఇన్నేళ్ల ఉద్యమం తర్వాతా ఇపుడేంటి…? అనే ప్రశ్నలు ఉన్నాయి.
‘అంతటామేమే’ అన్న నక్సల్స్ మాట నుంచి మేమెక్కడ..? అన్న ప్రశ్న మొలకెత్తడం వినడానికి వింతగానే ఉంటుంది. అయితే సుదీర్ఘ ప్రస్థానంలో మజిలీలన్నీ విజయ స్థంభాలు కాలేవు. పరాజయాల గాయాలూ ఉంటాయి. ఈ ఎదురు దెబ్బల నుంచి నేర్చిందేమిటి..?
నక్సల్బరి ఉద్యమ నిర్మాత చారు మజుందర్ లేరు. తెలంగాణలో ఉద్యమాన్ని బలోపేతం చేసిన కొండపల్లి సీతారామయ్య లేరు. కానీ.. ఆ ఉద్యమాన్ని దేశ నలు మూలాల తీసుకెళ్లిన మావోయిస్టు దళపతి గణపతి అలియాస్ ముప్పాళ్ల లక్ష్మణ రావు ఇంకా ఉద్యమ బాటలోనే ఉన్నారు. అయినా… మారిన కాలంలో కమ్యూనికేషన్ వ్యవస్థ పటిష్టంగా మారడంతో నక్సలైట్ ఉద్యమంపై పోలీసులదే పై చెయిగా మారింది. సోషల్ మీడియా డామినెట్ చేస్తున్న నేటి కాలంలో నక్సలైట్ ఉద్యమం కోలుకోలేని దెబ్బలు తింటుంది. నక్సలైట్ ` పోలీసుల తుపాకి తూటాల మధ్య గాయపడ్డ పల్లెల సజీవ పరిస్థితి ఉద్యమ ‘‘రక్త’’ చరిత్రలో నమ్మలేని నిజాలు ఎన్నో.
(2వ ఎపిసోడ్ లో కలుద్దాం)