विशेष लेख : आर्य समाज स्थापना दिवस – नव संवत्सर – महर्षि दयानन्द सरस्वती

आज 22 मार्च है अर्थात 148वां आर्य समाज स्थापना दिवस। आर्य समाज की स्थापना नव संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन सन 1875 में मुंबई में महर्षि देव दयानन्द सरस्वती जी ने की थी। आर्य समाज ने एक भारत की गौरव पूर्ण प्राचीन परंपरा को पुनः स्थापित करने, भारतीयों को उनकी प्राचीन महान वैदिक परंपराओं से अवगत कराने, हिंदू समाज का कायाकल्प करना यह सब महर्षि दयानन्द का और आर्य समाज का लक्ष्य था।

हिंदू धर्म का एक सुधारवादी आंदोलन ही आर्य समाज था और है। आर्य समाज ने भारतीयों में आत्म सम्मान की भावना का विकास करने में प्राचीन गौरवपूर्ण इतिहास को जनता के सामने रखने में महत्वपूर्ण एवं अहम् भूमिका निभाई थी। इसी ने ही हिंदू धर्म को पश्चात जगत की श्रेष्ठता के भ्रम से मुक्त कराया था। आर्य समाज के प्रयासों के कारण ही इस्लामी और ईसाई मिशनरियों की हिंदू धर्म विरोधी गतिविधियां सफल नहीं हो सकी।

जाति रहित – वर्ग रहित समाज की कल्पना भी एक महत्वपूर्ण ध्येय रहा है आर्य समाज का। आर्य समाज ने जाति को नकार कर हिंदू धर्म को एकजुट करने का प्रयास किया। सामाजिक एवं धार्मिक दृष्टि से भारत को उन्नत करना, भारत की विदेशी दासता से मुक्ति और संपूर्ण राष्ट्र और विश्व को आर्य श्रेष्ठ बनाना कृण्वन्तो विश्वमार्यम् की कल्पना की थी तो वह है केवल आर्य समाज।

आर्य समाज ने हिंदू रूढ़िवादिता, जातिगत कठोरता, मूर्ति पूजा, अस्पृश्यता, चमत्कार, जीव हत्या, पुरोहितों को श्राद्ध आदि कार्यों की कड़ी आलोचना की। आर्य समाज ने भारतीय समाज में परंपरागत जाति व्यवस्था की भी आलोचना की और जाति जन्म से निर्धारण नहीं होती बल्कि कर्म के आधार पर होनी चाहिए, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्म के अनुसार वर्ण निर्धारण किया जाता था।

महर्षि देव दयानंद सरस्वती ने जो आर्य समाज को स्थापित किया, वो संघटन ना होता तो आज हिंदू धर्म जीवित रहना मुश्किल होता। आर्य समाज ने ही शुद्धि आंदोलन चलाया। इस आंदोलन के फल स्वरुप ऐसे लाखों व्यक्तियों को हिंदू धर्म में वापसी लाने का सफल प्रयास किया गया जो दबाव या डर से हिंदू धर्म को छोड़ चुके थे। इन प्रयत्नों के कारण ही ईसाई और इस्लाम के धर्मांतरण करने वालों को बड़ा झटका लगा और उनका यह षडयंत्र, तेजी से और आसानी से बढ़ने में लगभग रुकावट सी आ गई थी।

आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद जी के प्रेरणास्वरूप ही 85 फीसदी से 90 फीसदी स्वतंत्रता सेनानी आर्य समाज से संबंधित थे और वह सब कुछ न्योछावर कर देने वाले वीर पुरुषों ने ही भारतवर्ष को गुलामी से छुटकारा दिलाया। यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं थी, आर्य समाज के संघर्ष का ही परिणाम है कि हम स्वतंत्र भारत में खुली सांस ले रहे हैं।

हैदराबाद जो उस समय भारत में विलय के लिए आना – कानी करके अपने आप को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित करने के सपने देख रहा था, उनके सपनों को ध्वस्त करने का श्रेय भी आर्य समाज को ही जाता है। आर्य समाज के निरंतर प्रचार, प्रसार, शास्त्रार्थ, सम्मेलनों द्वारा और नए नए आर्य समाजों का विस्तार करने और जन जागृत करके उनके अधिकारों को बताया गया। इस आर्य समाज के संघर्ष ने अपने कई सपूतों को निजाम शासन और रजाकारों की बर्बरता में खोया और कईयों ने अपनी कुर्बानी दी।

हैदराबाद के निजाम और राजाकारों के बढ़ते अत्याचारों से हिंदू समाज को सुरक्षित करने केवल आर्य समाज ही खड़ा था। इसके तत्कालीन युवा नेता पंडित गंगाराम जी ने आर्य समाज के प्रभावशाली नेता पंडित दत्तात्रेय प्रसाद एडवोकेट के साथ मिलकर आर्यन डिफेंस लीग की स्थापना की और इन की शाखाएं प्रत्येक आर्य समाज में खोली गई, जो हिंदू समाज की रक्षा करने में लगाई। बात यहीं नहीं रुकी, सशस्त्र क्रांति का बिगुल भी पंडित गंगाराम ने पहला सीरियल बम विस्फोट कर निज़ाम के सपने चूर-चूर कर दिए। 4 बमों को अलग अलग स्थानों पर ब्लास्ट किया गया जिसमें एक की मौत हुई थी। चकोलिया कांड में गंगाराम जी की फिर से गिरफ्तारी हुई, जिसमें मस्जिद में 4 लोगों की मौत का दोषी बताया गया। जेल से अभी छूटे ही थे कि प्रताप सिंह बम ब्लास्ट केस में फिर से जेल में डाल दिए गए। इन सशस्त्र क्रांति के कारण ही निजाम की नींद हराम हुई।

पंडित गंगाराम जी को भूमिगत होकर रहना पड़ा और वह लाहौर,अमृतसर, पेशावर, श्रीनगर आदि कई स्थानों पर रहे और अगले क्रान्ति की रुप रेखा हेतु कईयों से बातचीत हुई और जब हैदराबाद लौट आए तो फिर से आर्य समाज के संगठनों में सशस्त्र क्रांति से सभी आर्य समाजों को मजबूत करने का काम जारी रखा और लातूर में 400 आर्य समाजों के प्रतिनिधियों के शिविर आयोजित कर डिफेंस की ट्रेनिंग दी। वहां से लौटते वक्त ट्रेन में सफर कर रहे उनके साथी पंडित दत्तात्रेय प्रसाद एडवोकेट और वैद्य वामन रावजी को हैदराबाद के नामपल्ली स्टेशन पहुंचने पर पंडित गंगाराम जी के साथ गिरफ्तार कर लिया गया और हैदराबाद सेंट्रल जेल भेज दिया गया।

हैदराबाद सेन्ट्रल जेल से गुलबर्गा सेंट्रल जेल भेज दिया गया, कितने दिन तक सलाखों के पिछे रहते, अपने साथियों को साथ ले जेल से फरार हुए। भूमिगत रहकर हैदराबाद मुक्ति संग्राम में निरन्तर कार्यरत रहे और फिर पूरे आर्य समाजों से हिन्दुओं की सुरक्षा सचमुच बडी चुनौती का कार्य किया।

आर्य समाज संगठन से जुड़ते चले हैदराबाद वासियों को जब राहत मिली कि सरदार वल्लभ भाई पटेल, उप प्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री ने पोलिस एक्शन आरम्भ कर दिया और उन्हें बहुत ही आसानी से निजाम शासन को ध्वस्त कर हैदराबाद को भारत में विलय कर दिया। सरदार पटेल ने आर्य समाज का नाम लेकर कहा कि, अगर आर्य समाज ने सत्याग्रह आंदोलन न चलाया होता तो हैदराबाद का विलय इतना आसान कभी भी नहीं हो सकता।

धन्य है, महर्षि देव दयानन्द सरस्वती जी ने आर्य समाज की नीव रखी और स्वतंत्रता का महत्व समझाया और आज उन्हीं की दूरदर्शिता का परिणाम है कि आप और हम आजाद देश में इस मोड़ पर खड़े हैं।

लेखक स्वतंत्रता सेनानी पण्डित गंगाराम स्मारक मंच के चेयरमैन भक्तराम

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