विशेष लेख : अन्नपूर्णा जयंती-2024, यह है पौराणिक मान्यताएं और गृहिणियों की प्रति विचारधारा

प्रकृति ने हमें बहुत कुछ दिया है। प्रकृति से हमें स्वच्छ वातावरण और सेहतमंद रहने का शुभ अवसर मिलता है। प्रकृति से हमें अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थ, स्वच्छ जल एवं अन्य आवश्यक वस्तुएं प्राप्त होती हैं। उससे पूरा संसार अपना भरण पोषण करता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां पार्वती सृष्टि का भरण पोषण करने के लिए अन्नपूर्णा के रूप में पृथ्वी पर प्रकट हुई थी। इसलिए इस दिन अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाती है। जो मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि 15 दिसंबर को होगी।

देवी अन्नपूर्णा के आशीर्वाद से ही अन्न की पैदावार होती है। इस दिन मां पार्वती के अन्नपूर्णा स्वरूप की पूजा होती है। भक्त जन उनकी पूजा करके शुभ फल प्राप्त करते हैं। उनको कभी किसी धन-धान्य की कमी नहीं होती है। अन्नपूर्णा जयंती पर मां अन्नपूर्णा की पूजा की जाती है। पूजा में विभिन्न प्रकार के फल और अनाज रखकर फूल चढ़ाकर मंत्रोचार द्वारा पूजा की जाती है दुआ मांगी जाती है कि सृष्टि में उत्पन्न वस्तुएं भली प्रकार पैदा होती रहे और सभी के प्रयोग के लिए भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहें।

अन्नपूर्णा जयंती की कथा पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार पृथ्वी पर अकाल पड़ गया था। अन्न जल बिल्कुल कुछ भी उपलब्ध नहीं था। जमीन सुख गई थी और कोई भी वस्तु उपलब्ध नहीं हो पा रही थी। लोग अन्न पानी की कमी से त्रस्त हो गए और भूखे मरने लगे। तब सभी ने विचार करके तय किया कि इस समस्या का समाधान ब्रह्मा और विष्णु की पूजा किया जाए। जनता का दुख देखकर ऋषि भी चिंतित हो गए। तब ऋषियों ने बैकुंठ धाम में शिव की शरण में पहुंचकर पृथ्वी लोक वासियों की करुण दास्ता सुनाई।

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तब शिव पृथ्वी वासियों के कष्टों के निवारण के लिए पृथ्वी लोक पर मां पार्वती के साथ भ्रमण करने निकले। शिव ने भिक्षु का रूप ओर माता पार्वती मां अन्नपूर्णा के रूप में पृथ्वी पर प्रकट हुई। शिव ने मां अन्नपूर्णा से भिक्षा में अन्न मांगा और फिर अन्न और जल पृथ्वी वासियों में वितरित किया। तब से ही इस दिन को देवी अन्नपूर्णा के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। देवी अन्नपूर्णा को अन्नदा और शाकुम्भरी भी कहते हैं। मां शाकंभरी का मंदिर सहारनपुर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

अन्नपूर्णा जयंती पर यही संदेश दिया जाता है कि अन्न का अपमान ना करें। अन्यथा अन्न के भंडार खाली हो जाते है। अन्न का अपमान करने से घर की बरकत चली जाती है।
गृहिणियों को अन्नपूर्णा का स्वरूप माना जाता है। इसलिए इस दिन महिलाओं को अपने घर में चावल और मिष्ठान का भोग लगाना चाहिए और दीपक भी प्रज्वलित करना चाहिए। मां अन्नपूर्णा की कृपा दृष्टि से घर के भंडार अन्न से भरे रहते हैं। 

इसीलिए कहा जाता है कि अन्न का एक टुकड़ा भी व्यर्थ ना करो। इसका सम्मान करने से हमेशा घर में धन-धान्य भरा रहता है और कभी किसी प्रकार की कमी नहीं हो पाती। इसीलिए आजकल निरंतर यह प्रयास किया जा रहे हैं कि अन्न को किफायत से प्रयोग किया जाए और जो बच भी जाए तो वह किसी को बांटकर उसका सदुपयोग किया जाए। कहावत है कि उतना ही प्लेट में डाला जाए जितना जरूरी हो। इस मंत्र का जाप करना चाहिए। ओम ह्रींग अन्नपूर्णाय नमः 

के पी अग्रवाल हैदराबाद

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