हैदराबाद : केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र पर सरकारी मॉडल स्कूल, आंध्र प्रदेश के हिंदी अध्यापकों के लिए आयोजित 461वें नवीकरण पाठ्यक्रम का उद्घाटन समारोह 10 जुलाई को संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. गंगाधर वानोडे, क्षेत्रीय निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र ने की। मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. वी. कृष्णा, डीन, मानव संकाय, हैदराबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद, विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. जी. वी. रत्नाकर, विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, मौलाना आजाद उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद उपस्थित थे।
डॉ. गंगाधर वानोडे, क्षेत्रीय निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र इस नवीकरण पाठ्यक्रम के संयोजक हैं। केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र द्वारा संस्थान गीत एवं स्वागत गीत सुनाया गया। डॉ. गंगाधर वानोडे, क्षेत्रीय निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र ने अतिथियों का स्वागत किया एवं अतिथियों का परिचय दिया।
मॉडल स्कूल के हिंदी अध्यापक डॉ. जी. वीरेश ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि आजकल डिजिटिल का जमाना है। हिंदी विषय को भी डिजिटिल माध्यम से पढ़ाया जाना है। पाठ्यपुस्तक पढ़ाते समय आनेवाली समस्याओं का समाधान करने का निवेदन किया।
श्री वी. रामानंद सागर, हिंदी अध्यापक ने हिंदी अध्यापकों की समस्याओं को सामने रखते हुए कहा कि आंध्र प्रदेश में छठी कक्षा से हिंदी वर्णमाला सिखायी जाती है, जिससे छात्रों को कम समय में अधिक जानकारी देनी होती है। साथ ही हर स्कूल में एक ही हिंदी अध्यापक है। कक्षाएँ भी कम दी जाती हैं क्योंकि हिंदी विषय में उत्तीर्ण होने के लिए मात्र 20 अंक काफी हैं। हिंदी के अध्यापकों को प्रोत्साहित नहीं किया जाता है। यह स्थिति बदलनी चाहिए।
मुख्य अतिथि प्रो. वी. कृष्णा ने अपने आशीर्वचन में कहा कि प्रत्येक अध्यापक में अपने प्रति सही रहना है। अध्यापक अंकों का खेल नहीं है। यदि अध्यापक सही है तो छात्र जीवन भर उस अध्यापक को याद रखता है। मात्र क, ख, ग, घ बच्चा पलते हुए सीख जाता है। शिक्षा प्राप्त करना अलग है। अध्यापक सर्वोपरि है। उसे जितना प्यार, स्नेह, आदर मिलता है, उतना और किसी को नहीं मिलता है। वर्तमान में बहुत सारी चुनौतियाँ हैं। आज विज्ञान का युग है। विज्ञान के बिना एक कदम आगे नहीं बढ़ा सकते हैं। गलती से सुधार, सुधार से विकास होता है। भाषा के बिना जीवन नहीं है। यदि हम इसमें सक्षम नहीं हैं तो सारी सीढ़ियाँ चढ़ सकते हैं। भाषा एक अर्जित संपत्ति है। हिंदी की अपनी संस्कृति, सभ्यता, संस्कार है। उसे आगे बढ़ाना हम अध्यापकों का कर्तव्य है।
विशिष्ट अतिथि डॉ. जी. वी. रत्नाकर ने अपने वक्तव्य में कहा कि हिंदी को अपनाने की आवश्यकता है। हिंदी पढ़कर दक्षिण भारत में उसका प्रचार करने की आवश्यकता है। आप अध्यापकगण हिंदी के अध्यापक हैं एवं आंध्र प्रदेश जैसे हिंदीतर भाषी क्षेत्र में आप हिंदी का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। मातृभाषा के साथ जिस प्रकार अंग्रेजी सीखी जाती है, उसी प्रकार हिंदी को भी सीखना है। अध्यापकों को सत्य को समझना एवं सिखाना है। सत्य के रास्ते पर चलना है। तभी अच्छे भविष्य का निर्माण कर सकते हैं। साथ ही डॉ. जी. वी. रत्नाकर की दो पुस्तकें ‘कुसुम धर्मन्ना’ एवं ‘मातादीन’ का लोकार्पण भी किया गया।
अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ. गंगाधर वानोडे ने कहा कि सबसे पहले छात्रों की नींव को मजबूत करना आवश्यक है। यह कार्य मात्र अध्यापक कर सकते हैं। उसमें भी यह कार्य भाषा के अध्यापक कर सकते हैं। हिंदी भाषा सिखाते समय पहले अक्षर का ज्ञान देना आवश्यक है। छात्रों से प्रयोगात्मक कार्य करवाएँगे तो उनमें उत्साह उत्पन्न होगा। खेल-खेल के माध्यम से छात्रों को पढ़ाया जाए। इससे छात्रों में रुचि उत्पन्न होगी और वे हिंदी भाषा सीखने में अपनी रुचि दिखाएँगे।
सरकारी मॉडल स्कूल के हिंदी अध्यापकों ने उद्घाटन समारोह में उत्साहपूर्वक भाग लिया। इस नवीकरण पाठ्यक्रम में कुल 40 (20 पुरुष एवं 20 महिला) हिंदी अध्यापकों ने पंजीकरण किया है। कार्यक्रम का सफल संचालन केंद्र के सदस्य संदीप कुमार द्वारा किया गया। केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र की सदस्या डॉ. एस. राधा ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। क्षेत्रीय निदेशक डॉ. गंगाधर वानोडे के नेतृत्व में यह नवीकरण पाठ्यक्रम 21 जुलाई तक प्रातः 10 से अपराह्न 1 बजे तक नियमित रूप से चलेगा।