केंद्रीय हिंदी संस्थान: गुरुकुल विद्यालयों के हिंदी अध्यापकों के लिए प्रत्यक्ष नवीकरण पाठ्यक्रम, इन विद्वानों ने बताये स्पष्ट एवं सुलभ तरीके

हैदराबाद: केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र पर तेलंगाना राज्य के गुरुकुल विद्यालयों (तेलंगाना राज्य पिछड़ा वर्ग समाज कल्याण गुरुकुल विद्यालय एवं गुरुकुल विद्यालय) के हिंदी अध्यापकों के लिए आयोजित 460वें प्रत्यक्ष नवीकरण पाठ्यक्रम का उद्घाटन समारोह गुरुवार को भव्य रूप से संपन्न हुआ।

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. सुनील बाबुराव कुलकर्णी (निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा) ने की। मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. पी. माणिक्यांबा ‘मणि’ (पूर्व हिंदी विभागध्यक्ष, उस्मानिया विश्वविद्यालय) विशिष्ट अतिथि के रूप में, प्रो. गोपाल शर्मा (पूर्व प्रोफेसर भाषा विज्ञान, अरबामिंच विश्वविद्यालय, इथोपिया) आत्मीय अतिथि के रूप में, प्रो. ऋषभदेव शर्मा (पूर्व प्रोफेसर, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद) एवं सम्माननीय अतिथि के रूप में डॉ. जी. तिरुपति (सहायक सचिव, तेलंगाना राज्य पिछड़ा वर्ग समाज कल्याण गुरुकुल विद्यालय) उपस्थित थे। डॉ. गंगाधर वानोडे (क्षेत्रीय निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र) इस नवीकरण पाठ्यक्रम के संयोजक हैं।

केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र द्वारा संस्थान गीत एवं स्वागत गीत सुनाया गया। डॉ. गंगाधर वानोडे, क्षेत्रीय निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र ने अतिथियों का स्वागत किया एवं अतिथियों का परिचय दिया। तेलंगाना गुरुकुल विद्यालय की हिंदी अध्यापिका श्रीमती अरुणा देवी ने विद्यालय में पाठ पढ़ाते समय आनेवाली समस्याओं को मंच के सम्मुख रखा एवं समस्याओं का समाधान करने का निवेदन किया।

श्रीमती के. राजकुमारी, हिंदी अध्यापिका, गुरुकुल विद्यालय ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि तेलंगाना राज्य की पाठ्य पुस्तकों के पाठ एवं विधाएँ अच्छी हैं किंतु हिंदी अध्यापक को उसे पढ़ाने के लिए कालांश कम दिया जाता है।

सम्माननीय अतिथि डॉ. जी. तिरुपति ने अपने वक्तव्य में कहा कि अध्यापक की शक्ति महत्वपूर्ण है। अध्यापक छात्रों को सीखने में रुचि उत्पन्न कर सकते हैं। आज कई छात्र एक अनुच्छेद भी ठीक से नहीं पढ़ सकते हैं। आप अध्यापकों पर यह जिम्मेदारी है कि आप उनको हिंदी सिखाएँ। हिंदी भाषा को स्पष्ट एवं सुलभ तरीके से सिखाएँ। यह आप ही के द्वारा संभव है। आप छात्रों की त्रुटियों को सुधार कर उन्हें प्रतिभाशाली बनाएँ।

मुख्य अतिथि प्रो. पी. माणिक्यांबा ‘मणि‘ ने अपने आशीर्वचन में कहा कि भारतीयों के लिए अंग्रेजी नई भाषा है। हिंदी भारतीय भाषा है। इसमें कई शब्द अपनी मातृभाषा से मिलते-जुलते हैं। और कई शब्दों के अर्थ अलग होते हैं। छात्रों को सही शब्द सिखाना आवश्यक है। पहले छात्रों को वर्ण सिखाया जाए। उसके बाद आगे बढ़ें। छात्रां में कविता, कहानी पढ़ने के प्रति रुचि बढ़ाएँ। उसे अनुरंजक एवं रंजक बनाकर पढ़ाएँ तो छात्रों में उन्हें पढ़ने के प्रति रुचि बढ़ेगी। हिंदी को सरलता, सहजता से सीखी और सिखाई जा सकती है। हिंदी को स्वीकार कर माँ के समान माना जाए। यह भावना छात्रों में लाया जाए।

आत्मीय अतिथि प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने अपने आशीर्वचन में कहा कि व्यक्ति अच्छी भाषा न सीखने से व्यक्तित्व के मामले में पिछड़ जाता है। भाषा का वासता संस्कार एवं संस्कृति से होता है। अध्यापक छात्रों को ‘वह’ और ‘वे’ का प्रयोग सिखाए। हर भाषा का अपना प्रयोग होता है। भाषा में छिपी संस्कृति को छात्रों को सिखाना होता है। जीवन की परीक्षा पास करवाना है। मनुष्य को अच्छा मनुष्य बनाने की जिम्मेदारी भाषा एवं साहित्य के अध्यापकों की है। हमारी संस्कृति से लबालब भरी हुई परंपरा है। वाणी ही असली आभूषण है। अपनी वाणी में चमत्कार पैदा कीजिए। जब छात्र हिंदी का प्रयोग करें तो सोचे कि भाषा पर अधिकार रखने वाला व्यक्ति बोल रहा है। इसके लिए अपने अंदर वह आत्मविश्वास होना चाहिए। अध्यापक प्रणाम के योग्य हैं।

विशिष्ट अतिथि प्रो. गोपाल शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि हिंदी भाषा पढ़ाते समय हमारे सामने कई समस्याएँ आती हैं। समस्या नहीं होती तो समाधान भी नहीं होता। व्याकरण का कार्य त्रुटियाँ दूर करना है। व्याकरण हमें शिक्षा नहीं देती, त्रुटियाँ दूर करती है। माँ अपने बच्चे को अपनी मातृभाषा का व्याकरण नहीं सिखाती किंतु बचपन में ही बहुत अच्छी मातृभाषा बोल जाता है। आपको माँ की तरह भाषा सिखानी है। भाषा को विषय के रूप में नहीं पढ़ाना चाहिए बल्कि उसमें रुचि पैदा करनी चाहिए। बी.एड. में इतने मेथड पढ़ाए जाते हैं, उनको अक्सर भूल जाते हैं। मेथड्स का प्रयोग करना चाहिए। हिंदी पढ़ाना इसलिए आवश्यक है क्योंकि इसे पढ़ने से बाकी भाषाएँ भी आ जाएँगी। जब हम विदेश जाते हैं तो आस पास के कई देशों में हमें हिंदी सुनने एवं पढ़ने को मिलेंगी।

अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. सुनील बाबुराव कुलकर्णी ने कहा कि अध्यापन कार्य करते समय जो कठिनाइयाँ आती हैं उनको दूर करना इस प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य है। अध्यापन एक पवित्र कार्य है। यदि इसे जुनून, लगन एवं निष्ठा के साथ करें तो इसमें देश, युवा पीढ़ी को बदलने की क्षमता है। जिस प्रकार हमारी भूमि, सीमा पर जो सैनिक कार्य करते हैं, हम भी उनका आदर्श लेकर काम करें तो एक नई पीढ़ी का निर्माण कर सकते हैं। वे वेतन के लिए नहीं वतन के लिए काम करते हैं। हमें भी अपने देश को सस्य श्यामल बनाना है तो वतन को ध्यान में रखकर कार्य करना होगा। देश के गौरव, अस्मिता का भाव विकसित करना होगा। अध्यापकीय पेशे में उसी अभिव्यक्ति भी महत्वपूर्ण हाती है। आज तकनीकी की भी आवश्यकता है। भाषा वही जीवित होती है जिसमें रोजगार की संभावना होती है। साथ ही केंद्रीय हिंदी संस्थान के प्रशिक्षणार्थियों के आंकड़े भी प्रस्तुत किये। उन्होंने बताया कि इस वर्ष से लघु अवधीय पाठ्यक्रम भी आयोजित करने का निर्णय लिया गया है।

तेलंगाना गुरुकुल विद्यालय के हिंदी अध्यापकों ने उद्घाटन समारोह में उत्साहपूर्वक भाग लिया। इस नवीकरण पाठ्यक्रम में कुल 61 हिंदी अध्यापकों ने पंजीकरण किया है। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. साईनाथ चपले, प्रवक्ता द्वारा किया गया। केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र की सदस्या डॉ. एस. राधा ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। क्षेत्रीय निदेशक डॉ. गंगाधर वानोडे के नेतृत्व में यह नवीकरण पाठ्यक्रम 19 से 30 जून तक प्रातः 10 से अपराह्न 1 बजे तक नियमित रूप से चलेगा।

तुरंत बाद अपराह्न 4.30 बजे केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के निदेशक महोदय प्रो. सुनील बाबुराव कुलकर्णी जी के साथ हैदराबाद के विभिन्न विश्वविद्यालयों, संस्थाओं एवं हिंदी प्रेमियों के साथ स्नेह मिलन/सार्थक संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस दौरान प्रो. ऋषभदेव शर्मा द्वारा लिखित ‘चुनी हुई 51 कविताएँ’ तथा प्रो. गोपाल शर्मा द्वारा संपादक ‘In Other Words’ पुस्तकों का विमोचन किया गया। तत्पश्चात हैदराबाद के विभिन्न विद्वानों, साहित्यकारों, अतिथियों, अध्यापकों, शोधार्थियों एवं कई विश्वविद्यालयों के अधिकारियों एवं हिंदी विभागाध्यक्षों से मुलाकात हुई तथा केंद्रीय हिंदी संस्थान के हिंदी के प्रचार प्रसार के विकास के परियोजनाओं पर चर्चा करते हुए केंद्रीय हिंदी संस्थान की भावी योजनाओं पर प्रकाश डाला। हैदराबाद के विद्वानों द्वारा केंद्रीय हिंदी संस्थान के निदेशक का सम्मान किया गया।

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