हैदराबाद: भारत में डेल्टा वैरिएंट ने कहर बरपाने के बाद अमेरिका व यूरोप के साथ दक्षिण एशियाई देशों को चपेट में ले लिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि वायरस जितना आक्रामक होगा, उसका अंत भी उतना जल्द हो जाएगा।
इसी क्रम में वाराणसी स्थित काशी हिंदू विश्वविद्यालय के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर विजयनाथ मिश्रा बताते हैं कि वायरस का आर-नॉट भारत में अब तक एक से दो के बीच है। आर-नॉट कम होने का मतलब है कि कम से कम लोग संक्रमित होंगे और वायरस का अंत भी उतना नजदीक है। प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे के अनुसार, कोरोना की पहली लहर के दौरान वायरस का आर-नॉट 1.24 था। दूसरी लहर में डेल्टा का आर-नॉट 1.7 से 1.8 के बीच है।
प्रो मिश्रा आगे बताते हैं कि यदि कोरोना के घातक रूप से किसी व्यक्ति की मौत होगी, तो वायरस फैल नहीं पाएगा। इसका असर आर-नॉट के गिरते ग्राफ के रूप में दिखेगा। जानलेवा होने के साथ उसकी प्रसार क्षमता अपने आप घट जाएगी। चौबे दावे के साथ कहते हैं कि अन्य महामारी की तुलना में कोरोना का प्रसार धीमा है। इसे मात देने वालों की संख्या अधिक है। यानी अन्य महामारियों से कोरोना कम ताकतवर है। आम लोग इसे आसानी से मात दे रहे हैं।
आर-नॉट का अर्थ
आर-नॉट वायरस की सामान्य प्रजनन दार होती है। इसके जरिए संक्रमित व्यक्ति से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या का पता लगाया जाता है। आर-नॉट से संक्रमण की गति और उसकी गंभीरता का पता लगाया जाता है। आर-नॉट का प्रयोग पहली बार वैज्ञानिकों ने 1952 में मलेरिया की तह तक जाने के लिए किया था।
इंपीरियल कॉलेज लंदन (ब्रिटेन) के अनुसार, खसरा महामारी का आर-नॉट 18, जबकि ममप्स का 12 था। चीन के वुहान में मिले वायरस का आर-नॉट 2.4 से 2.6 के बीच था। वायरस यूरोपीय देशों में महामारी की पहली लहर आई। उसका आर-नॉट 3 था। अल्फा वायरस का आर-नॉट 4 से 5 और डेल्टा 5 से 8 है। इससे यह स्पष्ट है कि खसरा और ममप्स की तुलना में कोरोना का आर-नॉट काफी कम है।