हैदराबाद में शनिवार (17 सितंबर) को आयोजित होने वाले हैदराबाद मुक्ति दिवस और राष्ट्रीय एकता दिवस पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं। माना जा रहा है कि साल भर चलने वाला यह ‘दिवस’ अगले विधानसभा और लोकसभा चुनाव की दशा-दिशा में भी परिवर्तन ला सकता है। यही कारण है कि स्वतंत्रता से जुड़ने वाले इस ऐतिहासिक सांस्कृतिक कार्यक्रम को लेकर भी तेलंगाना की सत्तारूढ़ टीआरएस के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और एआईएमआइएम के अध्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी दूर-दूर भागना तो चाह रहे हैं। लेकिन दोनों को भागना संभव नहीं हो पा रहा है। इसके चलते टीआरएस में ज्यादा बेचैनी है।
केंद्र सरकार स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रही है। इसी क्रम में हैदराबाद मुक्ति दिवस एक अहम है। हालांकि केंद्र की ओर से इसे राजनीति से परे बताया जा रहा है। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसका असर सियासी भी है। राष्ट्रवाद भाजपा की चुनावी रणनीति का एक अहम हिस्सा है। भाजपा हर प्रदेश में किसी ऐतिहासिक घटना या व्यक्तित्व की छवि के साथ ही प्रवेश करती है। इसका असर पूरे प्रदेश पर पड़ सकें। संभव है कि हैदराबाद और निजाम का ऐतिहासिक पहलू तेलंगाना में कुछ उसी तरह काम करेगा।
तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने पुलिस एक्शन के जरिए हैदराबाद को निजाम और उसके अत्याचारी रजाकारों से मुक्त कराकर भारत में विलय कराया था। ‘दिवस’ कार्यक्रम उसी के तहत अलग अलग माध्यमों से यह भी याद दिलाया जाएगा कि किस तरह उस समय की जनता ने निजाम का अत्याचार सहा था। यही डर मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और ओवैसी को परेशान कर रहा है। आपको बता दें कि तेलंगाना में अल्पसंख्यक समुदाय लगभग 25 फीसद है। चंद्रशेखर राव की चुनावी जीत में ओवैसी की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। रजाकारों के अत्याचार की याद ताजा हुई तो एक बड़ा समुदाय चुनाव में अलग हो सकता है और चंद्रशेखर राव व ओवैसी से सवाल भी सवाल कर सकता है।
वैसे तो पृथक तेलंगाना गठन से पहले केसीआर राव की ओर से ही हैदराबाद मुक्ति दिवस मनाने की बात की जाती रही थी। तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर दबाव भी बनाया गया था। लेकिन सत्ता में आने के बाद से केसीआर ने हैदराबाद मुक्ति दिवस को टाल दिया। अब भाजपा की केंद्र सरकार ने हैदराबाद मुक्ति दिवस का एक साल भर मनाने का निर्णय लिया है तो पहली बार टीआरएस सरकार और एआईएमआइएम ने अलग राष्ट्रीय एकता दिवस के आयोजन की तैयारी कर ली। इस आयोजन में भी खींचतान दिखेगी। क्योंकि केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने 17 सितंबर के मुख्य कार्यक्रम में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के साथ साथ कर्नाटक और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को भी बुलाया है। इस कार्यक्रम में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह मुख्य अतिथि होंगे।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर इस कार्यक्रम में शामिल होंगे या नहीं यह अब तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। फिर भी केसीआर के शामिल होने की संभावना कम है। लेकिन यह सवाल फिर से उनके आमने सामने घूमेगा कि जब कर्नाटक और महाराष्ट्र अरसे से इसे मुक्ति दिवस के रूप में मनाता है तो तेलंगाना सरकार की क्या मजबूरी है। वर्तमान कर्नाटक और महाराष्ट्र का कुछ हिस्सा उस वक्त हैदराबाद निजाम के अधीन था। इस बार तेलंगाना कांग्रेस भी हैदराबाद मुक्ति दिवस में शामिल होगी। जबकि चंद्रशेखर राव और ओवैसी अलग मंच पर होंगे। कहा जाता है कि निजाम के अत्याचारी रजाकार कासिम रिजवी ने पाकिस्तान जाने से पहले उत्तराधिकार अब्दुल वाहिद ओवैसी को सौंप दिया था। अब्दुल वाहिद असदुद्दीन ओवैसी के दादा थे। जाहिर तौर पर अगर उस वक्त को याद दिलाया जाएगा तो ओवैसी के सियासी आधार पर फर्क पड़े न पड़े मगर चंद्रशेखर राव के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है।
गौरतलब है कि तेलंगाना में विधानसभा चुनाव 2023 के नवंबर दिसंबर में होने की संभावना है। हैदराबाद मुक्ति दिवस का आयोजन 17 सितंबर 2023 तक तेलंगाना में अलग-अलग हिस्सों में मनाया जा रहा है। इसका राजनीति पर कितना असर होगा यह तो वक्त बताएगा। मगर दो साल पहले ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में भाजपा ने दम लगाया था और बड़ी संख्या में वार्ड जीतने में कामयाब मिली थी। हाल में राष्ट्रीय कार्यकारिणी का आयोजन भी हैदराबाद में ही किया था और वहा हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर करने की भी बात हुई थी। (एजेंसियां)