74वाँ भारतीय संविधान दिवस: बीएन राव और डॉ बीआर अंबेडकर की ऐसी रही है भूमिका

हमारा भारत लम्बे समय तक विदेशी शासन के अधीन रहा है। ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से हमारे देश में छोटा-मोटा कारोबार करने के लिए दाखिल हुए अंग्रेजों को यहां की बेशकीमती दौलत से प्यार हो गया और उन्होंने करीब 400 साल तक भारत पर राज किया। अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान से भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ। दरअसल, आजादी के बाद भी हमें अपने संविधान की जरूरत थी। हमने 400 साल पुराने श्वेत अभिजात वर्ग की गुलामी की बेड़ियाँ तोड़कर एक नया संविधान लिखा है।

इस पृष्ठभूमि में हमें अपना संविधान बनाने में तीन साल से अधिक का समय लगा। संविधान देश, जनता और सरकार के लिए एक प्रकाशमयी दीये की तरह होता है। हमें उस दीपक की रोशनी में एक सर्वशक्तिमान संप्रभु देश के रूप में प्रगति की ओर कदम बढ़ाना चाहिए। इसीलिए आधुनिक लोकतंत्र के इतिहास में संविधान का इतना विशिष्ट स्थान है। हमारे देश से पहले कई देशों ने करोड़ों लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए लिखित संविधान दिया है।

हालांकि भारतीय संविधान का प्रारूपण एक जटिल प्रक्रिया है। इसका कारण यह है कि देश में अनेक क्षेत्र, धर्म, जनजातियाँ, आदिवासी, दलित, पीड़ित एवं उत्पीड़ित समूह आदि हैं। उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप संविधान का निर्माण करना एक चुनौती के समान है। इसी पृष्ठभूमि में भारत के प्रथम राष्ट्रपति बाबू राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में संविधान सभा ने डॉ. बीआर अंबेडकर की अध्यक्षता में एक प्रारूप समिति का गठन किया गया।

संविधान का मसौदा तैयार करने में कुल 2 साल, 11 महीने और 18 दिन लगे। यह प्रक्रिया 6 दिसंबर 1946 को संविधान सभा या संविधान सभा के गठन के साथ शुरू हुई और 26 नवंबर 1949 को भारत के संविधान के अनुसमर्थन तक जारी रही। 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के अंतिम सत्र में तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू सहित संविधान सभा के सभी सदस्यों द्वारा भारत के संविधान पर हस्ताक्षर किये। हमारा संविधान 26 जनवरी को पूरी तरह से लागू हो गया।

बीएन राव ने फरवरी 1948 में भारत के संविधान का पहला मसौदा तैयार किया। इसके लिए उन्होंने विभिन्न देशों के संविधानों का परीक्षण किया। संविधान का पहला मसौदा तैयार करने के लिए राव ने अमेरिका, कनाडा, आयरलैंड और ब्रिटेन जैसे देशों की यात्रा की और वहां के न्यायाधीशों, शोधकर्ताओं और अधिकारियों से चर्चा की। संबंधित देशों के संविधानों की बारीकी से जांच की गई। बीएन राव द्वारा तैयार संविधान के प्रारूप का अध्ययन करने और अंतिम प्रति तैयार करने के लिए प्रारूप समिति का गठन किया गया। इस समिति की अध्यक्षता अम्बेडकर ने की।

उनका मुख्य उद्देश्य संविधान केवल सरकार के नियम और विधायिका की रूपरेखा नहीं है, बल्कि इसमें करोड़ों उत्पीड़ित लोगों की आकांक्षाएं प्रतिबिंबित होनी चाहिए। विश्व का नया संविधान अनेक महान लोगों के प्रयासों के फलस्वरूप बना है। इसीलिए भारतीय संविधान को दुनिया के कई देशों के संविधानों से अधिक मूल्यों वाला माना जाता है। 26 नवंबर 1949 को संविधान को अपनाने के बाद से आज का दिन हर साल संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ। आज भारत के संविधान के अनुसमर्थन के 74 वर्ष पूरे हो गए हैं।

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