सूत्रधार: 32वीं गोष्ठी आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी को समर्पित, वक्ताओं ने डाला जीवनी और साहित्य पर प्रकाश

हैदराबाद: सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, भारत (हैदराबाद) द्वारा 32वीं मासिक गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। संस्थापिका सरिता सुराणा ने सभी सदस्यों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया और श्री सुहास भटनागर को गोष्ठी की अध्यक्षता करने हेतु मंच पर आमंत्रित किया। श्रीमती रिमझिम झा ने सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की। जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि यह गोष्ठी दो सत्रों में आयोजित की गई।

प्रथम सत्र में ‘आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का हिन्दी साहित्य के विकास में योगदान’ विषय पर परिचर्चा रखी गई। चर्चा प्रारम्भ करते हुए सरिता सुराणा ने कहा कि आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1864 ई. में रायबरेली जिले के दौलतपुर ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम रामसहाय द्विवेदी था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई थी। उन्होंने हिन्दी भाषा को व्याकरण सम्मत बनाने, उसके स्वरूप को निखारने, उसके शब्द-भण्डार को बढ़ाने और उसको सशक्त, समर्थ एवं परिमार्जित बनाने का महान कार्य किया। भारतेन्दु युग के पटाक्षेप के बाद सन 1903ई. से 1918 ई. तक की अवधि ‘द्विवेदी दुग’ के नाम से जानी जाती है।

‘सरस्वती’ के सम्पादक के रूप में उन्होंने हिन्दी साहित्य की अमूल्य सेवा की। उन्होंने 50 से अधिक ग्रन्थों और सैंकड़ों निबन्धों की रचना की, जिनमें आलोचना ग्रन्थ भी शामिल हैं। उपस्थित सभी सहभागियों ने परिचर्चा में भाग लिया। अध्यक्षीय टिप्पणी करते हुए सुहास भटनागर ने कहा कि इन साहित्यकारों ने हिन्दी साहित्य की जो मजबूत नींव रखी, आज उसी के कारण हम इतना आगे बढ़ पाए हैं। उनके योगदान की जितनी प्रशंसा की जाए, वह कम ही होगी।

तत्पश्चात् द्वितीय सत्र में नववर्ष पर काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। भारती बजाज बिहानी ने अपनी रचना- समय के साथ जो चलता जाए की बहुत सुन्दर प्रस्तुति दी तो आर्या झा ने- समय का पहिया हाय! हाथ ही ना आए रचना प्रस्तुत की। अजय कुमार पाण्डेय ने- भूल गए जो राष्ट्रधर्म तो क्या जतलाने आए हो जैसी ओजपूर्ण रचना सुनाई तो श्रीमती ज्योति नारायण ने- वही समय है भागा जाता, समय कभी न रुकता प्रस्तुत की। कोलकाता से श्रीमती सुशीला चनानी ने- नववर्ष की नव किरण, लाए ये उपहार/स्वस्थ और खुशहाल हो सारा यह संसार रचना प्रस्तुत की तो श्रीमती हिम्मत चौरड़िया ने- आएगा नववर्ष गान हम गाएं/करें विदा बाईस नहीं घबराएं गीत की सुंदर प्रस्तुति दी।

श्रीमती मोहिनी गुप्ता ने अपनी रचना- जो बीत गई वो बात न कर/नए दिन की नई चेतना उमंग में भर प्रस्तुत करके सबकी वाहवाही लूटी। श्रीमती भावना पुरोहित ने- पहले बालक नरेंद्र, बड़ा होकर बना स्वामी विवेकानंद रचना प्रस्तुत की तो अजय कुमार सिन्हा ने- सारी उम्र गुजर गई साथ निभाने में और अन्य रचनाएं प्रस्तुत की। संतोष रजा गाजीपुरी ने अपनी गज़ल- उसकी खुद्दारी का ये आलम रहा/ज़िन्दगी भर घर में आटा कम रहा, प्रस्तुत की तो प्रदीप देवीशरण भट्ट ने- पुनरावलोकन किया जो मैंने/निकला यह निष्कर्ष/थोड़ा खट्टा थोड़ा मीठा बीता सबका वर्ष रचना प्रस्तुत की।

दर्शन सिंह जी ने बहुत ही सटीक और यथार्थपूर्ण रचना प्रस्तुत की। उदयपुर, राजस्थान से श्रीमती उर्मिला पुरोहित ने- देखो नववर्ष आया है/नई-नई सौगातें लाया है जैसी भावपूर्ण रचना प्रस्तुत की तो श्रीमती रिमझिम झा ने- सच कहूं, बहुत याद आते हैं पापा रचना प्रस्तुत करके सबको भावविभोर कर दिया। सरिता सुराणा ने श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्म दिवस के अवसर पर उनका स्मरण करते हुए उनकी दो प्रसिद्ध कविताएं- ठन गई, मौत से ठन गई और आओ फिर से दिया जलाएं प्रस्तुत की।

अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए सुहास भटनागर ने- खुशनसीब हूं मैं कि मैं दर्ज हूं/ वक्त के दौर के किसी एक सफ्हे पर और अपनी अन्य रचनाओं का बहुत सुन्दर ढंग से पाठ किया और सभी सदस्यों की रचनाओं की प्रशंसा करते हुए गोष्ठी की सफलता हेतु बधाई दी। के राजन्ना गोष्ठी में श्रोता के रूप में उपस्थित थे। रिमझिम झा ने कुशलतापूर्वक काव्य गोष्ठी का संचालन किया और श्रीमती ज्योति नारायण के धन्यवाद ज्ञापन के साथ गोष्ठी सम्पन्न हुई। सभी ने नववर्ष की अग्रिम शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए शीघ्र ही पुनः मिलने के वादे के साथ विदाई ली।

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