WAJA- डॉ अहिल्या मिश्र हिन्दी साहित्य में उत्तर भारत और दक्षिण भारत का है सेतु: एनआर श्याम

हैदराबाद (देवा प्रसाद मयला की रिपोर्ट) : राइटर्स एंड जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (WAJA) तेलंगाना इकाई के तत्त्वावधान में प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ अहिल्या मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर परिचर्चा का ज़ूम कार्यक्रम संपन्न हुआ। एनआर श्याम ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की और संचालन किया देवा प्रसाद मयला ने। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सेंट्रल यूनिवर्सिटी हैदराबाद के उपकुलपति प्रो आरएस सर्राजू। विशिष्ट अतिथि डॉ उषारानी राव (हिन्दी विभागाध्यक्ष बाल्डविन महाविद्यालय बैंगलूरु) रहे हैं।

शिवेन्द्र प्रकाश द्विवेदी ने डाला प्रकाश…

विशेष अतिथि रहे शिवेन्द्र प्रकाश द्विवेदी (महासचिव राष्ट्रीय वाजा इंडिया) अहिल्या मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए प्रो सर्राजू ने कहा कि वास्तव में अहिल्या मिश्र जीवन के परिवर्तनों को सही ढंग से समझने वाली लेखिका हैं। आधुनिकता का विरोध नहीं करती हैं। वे भारतीय मूल की लेखिका हैं जो विश्व की गति को समझती हैं। भारतीय मूल्य और संस्कृति की बातें करती हैं। स्त्री-पुरुष को साथ-साथ चलकर आगे बढ़ने में विश्वास रखती हैं। इनकी रचनाएँ आगे भी प्रासंगिक रहेंगी। इनके बारे में कुछ कहना सूर्य को दीया दिखाना है। जहाँ अहिल्या मिश्र की बात है भाव प्रबल हो जाते हैं, शब्द कम पड़ जाते हैं। तेलंगाना में तेलुगु और हिन्दी का एक मंच स्थापित करने में इनकी बड़ी भूमिका रही। ऐसी परिचर्चा को, परंपरा को लगातार आगे बढ़ाना है। वे अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से लगातार साहित्य को समृद्ध करती रहें…।

डॉ उषारानी राव ने विचार व्यक्त करते हुए कहा…

डॉ उषारानी राव ने कहा कि अहिल्या मिश्र अनवरत लेखन में सक्रिय हैं यह प्रेरणादायक बात है। कर्म ही जीवन का प्रमुख लक्ष्य है। वे कर्मयोगी हैं। जीवंत अभिव्यक्ति देनेवाली, अन्य के लिए राह बनाने वाली हैं… स्त्रीत्व को संजोकर इस कठिन क्षेत्र में आगे बढ़ी हैं… स्त्री से संबंधित रूढ़ियों का ध्वंस किया है… स्त्री शिक्षा एवं सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया है…।

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डॉ शकुंतला रेड्डी ने अपने संबोधन में कहा…

डॉ शकुंतला रेड्डी ने अहिल्या मिश्र के आलेख ‘हिन्दी जनमन से राजभाषा तक’ पर अपने विचार रखे। विश्लेषण करते हुए बताया कि लेख सारगर्भित एवं शोधपरक है। हिन्दी के विकास के बारे में जानने के लिए उसका इतिहास जानना ज़रूरी है। हिन्दी आम जनभाषा के रूप में संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश को लेकर प्रचलित हुई। मीडिया यानी चैनलों, फ़िल्मों, पत्रिकाओं आदि के माध्यम से राजभाषा विकसित होते-होते देश में ही नहीं विदेशों में भी अपनायी जाने लगी है। आज देश में सर्वाधिक बोली और समझी जानेवाली भाषा है हिन्दी।

डॉ अनिता गांगुली ने…

डॉ अनिता गांगुली ने अहिल्या मिश्र के साथ अपना तीस वर्षों का अनुभव साझा करते हुए कहा कि उनमें एक अच्छी कवयित्री, सशक्त लेखिका एवं प्रबल वक्ता पाया है। उनमें स्त्री सशक्तिकरण का सशक्त रूप देखा है। वे किसी भी कार्य में समय को महत्त्व देती हैं।

डॉ टीसी वसंता ने कहा….

अहिल्या मिश्र की आत्मकथात्मक उपन्यास की ‘भावुक मन से वैचारिक क्रांति तक’ शीर्षक से समीक्षा करते हुए डॉ टीसी वसंता ने कहा कि आत्मकथा में हमारी नायिका में निहित भावुक मन तथा वैचारिक क्रांति का प्रतिबिंब दिखाई देता है। स्त्री बलशाली है, परन्तु परिस्थितिवश राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक धारणाओं के कारण वह अबला बनायी गई है। यही अबला जीवन के हर क्षेत्र में सक्षम है… इसमें अहिल्या मिश्र के बाल्यकाल से अब तक के जीवन का संघर्ष है। बीस शीर्षकों में निहित विषयों के अनुसार उनके संघर्ष यात्रा को तीन बिंदुओं में रखा है- पारिवारिक संघर्ष यात्रा, साहित्यिक संघर्ष यात्रा तथा सांध्यकालीन संघर्ष यात्रा… अनामिका जी ने दुर्ग द्वार पर दस्तक दी, अहिल्या मिश्र ने दुर्गद्वार को तोड़ दिया। अंत में डॉ. वसंता कहती हैं- पुस्तक में पेज मार्कर रखती हूँ, उसके पंख हैं। 324 पृष्ठ पर आने तक पंख भीग गये…। उन्होंने बहुत भावुकता से अहिल्या मिश्र के ममत्व को अनुभव करने की बात रखी। कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर जानी जाने वाली साहित्कयकार, कथाकार, निबंधकार, कवयित्री, समीक्षक, आलोचक, प्रखर वक्ता और न जाने कितने नाम, कितने पदवी… इन सबके अलावा स्त्री के अधिकार के लिए लड़ने वाली, कभी हार न मानने वाली, अपना हक़ छीनकर लेने वाली, शेर की तरह दहाड़ने वाली, झाँसी की रानी… जाने क्या-क्या संबोधनों की धनी डॉ. अहिल्या मिश्र के व्यक्तित्व के संबंध में कहें तो क्या कहें… वे ऐसी धातु हैं जिसने कुंदन का रूप ले लिया है… विवाह के बाद पढ़ाई पूरी करके अहिल्या माँ की छत्र-छाया में आज डॉ. आशा मिश्र एक प्रबल स्त्री, साहित्यकार एवं पत्रकार बनी हैं।

सरिता सुराणा ने याद किया…

सरिता सुराणा ने डॉ अहिल्या मिश्र के साथ विगत सत्रह वर्षों से हुए अनुभव को साझा करते हुए कहा कि वे उनसे कादम्बिनी क्लब की गोष्ठियों के माध्यम से जुड़ी रही… अहिल्या मिश्र बिहार में जन्मी हमारे बीच एक उत्तम साहित्यकार के रूप में खड़ी हैं… पति के पूछने पर प्रथम रात्रि में उन्होंने माँग की कि उन्हें पढ़ाई पूरी करने की स्वेच्छा मिले। इससे उन्हें पढ़ाई के प्रति रूचि का पता चलता है… कहा कि अहिल्या मिश्र पर साहित्यकारों के लेखों का ‘अभिनंदन ग्रंथ’ प्रकाशित होना चाहिए।

डॉ सुमनलता ने की प्रशंसा…

डॉ सुमनलता ने कहा कि किसी पत्रिका का विशेषांक उन्हीं पर निकलता है जो उसके योग्य होते हैं। अहिल्या मिश्र पर विशेषांक निकलना बहुत सार्थक है… संक्षिप्त में कहा कि आपके पतिदेव ने चुनौती रखी कि आप घर के बाहर अकेली जाएँगी तो अपने दम पर, घर तक कोई समस्या नहीं आनी चाहिए और आपने चुनौती को साहस से स्वीकार किया और सफल भी रहीं…।

डॉ सुरभि दत्त ने कहा…

डॉ सुरभि दत्त ने कहा कि आपमें पत्थर की दृढ़ता है और बरखा आती है तो उसमें कोंपल फूट पड़ते हैं… आपकी वाणी और विचारों में सहज गति है… आपकी प्रखर लेखनी में विचारों की पवित्रता, वाणी की सत्यता दिखाई देती है… आपमें पृथ्वी की सहनशीलता है तो आकाश की विशालता भी है… आप संकल्प की धनी है, आपमें जीवटता है, एक निष्ठा है, अदम्य साहस है, स्नेह है, मुखमंडल में ह्रदय का तेज़ है… आपने कई बचपनों को उभारा है, निखारा है… लेखनियों को तराशा है… आपकी लेखनी से कोई विषय नहीं छूटा है… दक्षिण की महिलाओं को ‘साहित्य गरिमा’ पुरस्कार से सम्मानित कर उनकी प्रतिभा को बढ़ावा देती है… आपको आँसू पसंद नहीं हैं क्योंकि वे व्यक्ति को कमजोर करते है…।

डॉ टी श्रीलक्ष्मी ने बोले…

डॉ टी श्रीलक्ष्मी ने डॉ अहिल्या मिश्र की एकांकी ‘भारतीय नारी तेरी जय हो’ पर अपनी समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा कि नायिका प्रिया की पात्रता में नारी को प्रबल बनाने का उद्देश्य गोचर होता है। आज की भारतीय नारी शोषित व ग्रसित दिखाई पड़ती है। वह अपना अधिकार पाने के लिए लड़ती है… अहिल्या मिश्र ने ऐसी नारी को दृढ़ बनाने के प्रयास में उस ओर सार्थक क़दम उठाया है और काफ़ी सफल रही हैं।

के राजन्ना ने कहा…

के राजन्ना ने अपने संदेश में कहा कि जो भी हिन्दी की सेवा करता है उसे अहिल्या मिश्र गले लगाती हैं, प्रोत्साहन देती हैं। वे सदैव हिन्दी भाषा के विकास की बातें करती हैं। उनसे राजन्ना को काफ़ी प्रोत्साहन मिला है।

डॉ अफ्सरुनीसा बेगम बोले…

डॉ अफ्सरुनीसा बेगम ने कहा कि उन्हें अहिल्या मिश्र का स्नेह प्राप्त हुआ है, उनका मार्गदर्शन भी मिला है।

देवा प्रसाद मयला का वक्तव्य…

देवा प्रसाद मयला ने कहा कि कार्यक्रम में किसी एक से केन्द्रित व्यक्तित्व का पूरा परिचय एक साथ पढ़वा देने से औपचारिकता वहीं तक रह जाती है, किन्तु हर वक्ता द्वारा अंश-अंश परिचय दिये जाने पर पूरे कार्यक्रम में वह स्नेह बना रहता है, जैसे इस बार हुआ है… उन्होंने सोदाहरण बताया कि डॉ. अहिल्या मिश्र व्यक्तिगत रूप से उनके साहित्यिक उत्थान में प्रेरणा स्रोत कैसे बनी… है।

स्पंदन में अहिल्या मिश्र …

स्पंदन में अहिल्या मिश्र ने सभी वक्ताओं और अतिथियों का नाम लेकर हृदय से आभार प्रकट किया। कहा, इतना प्रेम कहाँ समेटूँ, दिल कितना बड़ा बनाऊँ? आपका प्यार आपके उद्गार ने दिल भर दिया… पढ़ाई के दौरान सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रो वेंकटरामन और प्रो. शीला मुदिराज के प्रेम को स्मरण किया और कहा कि अब उन्हें प्रो. सर्राजू का स्नेह प्राप्त हुआ है। कहती हैं, मैं जो समाज से लेती हूँ उसे ही शब्दों में लौटाती हूँ… उन्होंने भाषा विज्ञान पर श्रम किया है और अहिल्या नाम का मैथिली अर्थ सर्प जनित, नाग पुत्री, पाताल लोक निवासी बतलाया। उन्होंने तेलंगाना पर रचित अपनी पुस्तक को तेलुगु तल्ली को समर्पित करने की घोषणा की। कार्यक्रम के आयोजन के लिए वाजा के सदस्यों की सराहना की।

एनआर श्याम का कथन…

अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए एनआर श्याम ने सभी वक्ताओं के कथन को संक्षिप्त में स्मरण किया और स्पष्ट किया कि अहिल्या मिश्र का 53 वर्षों से कार्यक्षेत्र हैदराबाद रहा है, वे अब तेलंगाना की है। क्योंकि उनका जन्म स्थान बिहार है, वे हिन्दी साहित्य में उत्तर भारत और दक्षिण भारत का सेतु हैं। कहा कि अहिल्या मिश्र ऐसी विभूति हैं जिनके लिए तीन घंटे का कार्यक्रम कम पड़ जाता है, अत: इनके व्यक्तित्व-कृतित्व पर परिचर्चा के अनेक कार्यक्रम होने चाहिए। इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए सभी वक्ताओं को बधाई दी। डॉ टी श्रीलक्ष्मी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

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