चुनाव के दौरान नेताओं का असंतोष या अन्य कारणों से एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाना-आना आम बात है। एक या दो बार ऐसा होने पर लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन पूर्व सांसद विवेक वेंकटस्वामी हर चुनाव से पहले पार्टियां बदल लेते हैं। 2009 में उन्होंने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से पेद्दापल्ली से सांसद के रूप में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। तब से, उन्होंने छह बार पार्टियां बदली हैं। इससे यह आलोचना होने लगी कि चुनाव के ठीक समय दल बदलने का श्रेय केवल उन्हें ही मिलता है। कई व्यंग्यकार कह रहे हैं कि जब-जब उनकी पार्टी बदलती है, विवेक से जुड़े मीडिया संगठनों की प्राथमिकताओं में भी बदलाव आ जाता है। उन्होंने 2009 में सांसद के रूप में जीत हासिल की। तेलंगाना के गठन से पहले वह केसीआर की उपस्थिति में बीआरएस पार्टी में शामिल हुए थे।
लेकिन 2014 के चुनावों के दौरान विवेक ने इस उम्मीद के साथ बीआरएस छोड़ दिया कि कांग्रेस सत्ता में आएगी और मुख्य पद मिलेगा। वह दोबारा कांग्रेस में शामिल हो गये। कांग्रेस पार्टी की ओर से पेद्दापल्ली से चुनाव लड़ा और हार गए। 2016 में बीआरएस से एक अच्छा ऑफर मिलने के बाद वह फिर से बीआरएस (तत्कालीन टीआरएस) पार्टी में शामिल हो गए। इसके साथ ही बीआरएस के अध्यक्ष ने उन्हें अंतरराज्यीय सिंचाई मुद्दों पर सलाहकार का पद सौंपा। ऐसा कहा जाता है कि विवेक को 2019 के संसद चुनाव में बीआरएस से सांसद का टिकट नहीं मिला क्योंकि 2018 के विधानसभा चुनाव में विवेक ने जिस तरह से काम किया वह उन्हें पसंद नहीं आया। उन्होंने पार्टी छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गए। पार्टी ने उसे उचित तरजीह दी। फिर भी उसे नजरअंदाज कर अब वे फिर से कांग्रेस में शामिल हो गये हैं।
केंद्रीय मंत्री रहे जी वेंकटस्वामी को कांग्रेस में उद्दंड के नाम से जाना जाता था। उन्हें प्यार से लोग काका कहते थे। उन्होंने कभी भी पार्टी के नियमों का उल्लंघन नहीं किया। अंतिम सांस लेने तक कांग्रेस नहीं छोड़ी। उनके छोटे बेटे विवेक वेंकटस्वामी हैं। 2009 के संसदीय चुनाव तक विवेक का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं था। तब तक उन्हें कोई ज्यादा नहीं जानते थे। लेकिन काका की इच्छा के मुताबिक, कांग्रेस नेतृत्व ने 2009 के संसदीय चुनाव में विवेक को पेद्दापडल्ली से टिकट दिया। उस क्षेत्र में काका के परिचय से विवेक सांसद के रूप में जीते। उस चुनाव के बाद अलग तेलंगाना के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू हुआ।
तेलंगाना कांग्रेस के नेताओं ने भी विभिन्न रूपों में तेलंगाना के गठन के लिए हाईकमान पर दबाव डाला। लेकिन विवेक ने कांग्रेस छोड़ दी और बीआरएस पार्टी में शामिल हो गये। उस समय पार्टी हलकों में यह प्रचार चला था कि काका ने बेटे विवेक के पार्टी बदलने को गलत कहा था। तब से वह छह बार पार्टियां बदल चुके हैं। यह देख काका के फैंस इसकी आलोचना कर रहे हैं। फैंस आलोचना कर रहे है कि उनके पिता का नाम मिट्टी में मिला रहा है और उनकी प्रतिबद्धता का उल्लंघन कर रहा है। विवेक पर सत्ता के लिए हर चुनाव से पहले पार्टी बदलने का आरोप है। कहा जा रहा है कि राजनीति की समझ न होने और पार्टी बदलने से पहले अच्छे-बुरे के बारे में न सोचने के कारण उन पर अस्थिर नेता का ठप्पा लगने का खतरा है
उनके परिवार के बहुत करीब और कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि विवेक का लक्ष्य कभी न कभी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठना है। लेकिन इस पर सवाल उठ रहे हैं कि छह बार पार्टियां बदले वाला नेता सीएम कैसे बन पाएगा। बुद्धिजीवियों का सुझाव है कि राजनीति में स्पष्टता और स्थिरता होनी चाहिए, तभी पहचान मिलेगी। वह पूर्ण रूप से राजनीतिज्ञ नहीं हैं। स्थानीय लोगों से कोई संपर्क नहीं। तेलुगु धाराप्रवाह नहीं बोल सकते है। उनका कोई अनुयायी भी नहीं है। जब भी विवेक की पार्टी बदलती है तो सोशल मीडिया पर कई व्यंग्यकार कहते हैं कि उनके द्वारा चलाए जा रहे मीडिया संस्थानों का एजेंडा बदल जाता है। आलोचनाएं सुनने को मिल रही हैं कि वह जिस भी पार्टी में रहते हैं, उस समय उस पक्ष में खबरें दे रहे हैं।
विवेक की हरकतों पर बीजेपी नेताओं को पहले से ही शक रहा है। उनके बीजेपी छोड़ने की खबरें कई दिनों से सुनने को मिल रही हैं। लेकिन विवेक उन खबरों को खारिज करते रहे हैं। लेकिन, एक समय ऐसा प्रचार हुआ कि उन्होंने बीआरएस के शीर्ष नेताओं से चर्चा की है। इसकी भनक लगते ही बीजेपी नेतृत्व ने उन्हें पार्टी में घोषणापत्र समिति के अध्यक्ष पद सौंपा। फिर भी पार्टी को अलविदा कह दिया। कहा जा रहा है उनके बीजेपी पार्टी को अलविदा कहने के कई कारण हैं।
यह चर्चा जोरों पर है कि ईटेला राजेंदर के साथ व्यक्तिगत मतभेद इसकी मुख्य वजह है। विवेक उन नेताओं में शामिल थे जिन्होंने शराब मामले में एमएलसी कविता की गिरफ्तारी के लिए बीजेपी नेतृत्व पर दबाव डाला था। लेकिन कविता की गिरफ्तारी के मुद्दे पर दिल्ली के नेताओं ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। साथ ही चर्चा चल पड़ी कि बीआरएस और बीजेपी के बीच कोई गुप्त समझौता जरूर हुआ है। विवेक को विश्वास हो चुका है कि वर्तमान में बीआरएस को हराने की ताकत केवल कांग्रेस में है। इसलिए उन्होंने उम्मीदवारों की सूची घोषित होने से पहले कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये।