टेनिस स्टार सानिया मिर्जा को मिला दुबई का गोल्डन वीजा, अब पति के साथ रह सकती है दस साल

हैदराबाद : भारतीय महिला टेनिस स्टार सानिया मिर्जा को दुबई का गोल्डन वीजा मिला है। बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान और संजय दत्त के बाद सानिया यह यह पाने वालीं तीसरी भारतीय बन गई हैं। 

गोल्डन वीजा वीजा मिलने के बाद टेनिस स्टार सानिया मिर्जा अपने पति और पाकिस्तान क्रिकेट के पूर्व कप्तान शोएब मल्लिक के साथ दस साल तक यूएई में रह सकते हैं। आपको बता दें कि सानिया हैदराबाद में और शोएब मल्लिक पाकिस्तान में रहते हैं।

यह सम्मान पाने के बाद सानिया ने मीडिया से कहा, “दुबई गोल्डन वीजा देने के लिए सबसे पहले मैं शेख मोहम्मद बिन राशिद, फेडरल अथॉरिटी फॉर आइडेंटिटी एंड सिटिजनशिप एंड जनरल अथॉरिटी ऑफ स्पोर्ट्स दुबई को धन्यवाद देना चाहती हूं। दुबई मेरे और मेरे परिवार के बेहद करीब है। अब हम परिवार के साथ रह सकते हैं।”

गौरतलब है कि सानिया का जन्म 15 नवम्बर 1986 को मुंबई में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा हैदराबाद के एन ए एस आर स्कूल में हुई, तत्पश्चात उन्होंने हैदराबाद के ही सेंट मैरी कॉलेज से स्नातक किया। उन्हें 11 दिसम्बर 2008 को चेन्नई में एम जी आर शैक्षिक और अनुसंधान संस्थान विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्राप्त हुई।

इसके अलावा व्यक्तिगत जीवन में सानिया का विवादों से गहरा नाता रहा है। मुस्लिम परिवार से होने के कारण वर्ष 2005 में एक मुस्लिम समुदाय ने उनके खेलने के विरुद्ध फ़तवा तक जारी कर दिया था। उसके आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला चला और आखिरकार ‘जमात-ए-इस्लामी हिन्द’ नामक संगठन ने कहा कि उन्हें उनके खेलने से परहेज नहीं है, बल्कि वे चाहते हैं कि वे खेलते समय ड्रेस कोड का ध्यान रखें।

वर्ष 2009 में सानिया की सगाई उनके बचपन के दोस्त सोहराब मिर्जा से हुई, लेकिन सगाई शीघ्र ही टूट गई और वे पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक के साथ दिखने लगी। सानिया ने एक बयान में कहा कि हम कई सालों से दोस्त हैं लेकिन मंगेतर की हैसियत से हम दोनों के बीच बात नहीं बनी। मैं सोहराब को उसकी ज़िंदगी के लिए शुभकामनाएं देती हूं। कुछ माह पश्चात अर्थात 12 अप्रैल 2010 को उन्होने शोएब मलिक के साथ निकाह रचाया। इस निकाह को लेकर उन्हें कई लोगों से कड़ी प्रतिक्रियाएं भी मिली लेकिन उन्होंने किसी की परवाह नहीं की और हर मोर्चे पर अपने पति का साथ दिया।

वर्ष 2014 में नवगठित भारतीय राज्य तेलंगाना के ब्रांड एम्बेसेडर बनाए जाने पर सानिया फिर विवादों में घिरी, जब तेलंगाना विधानसभा में भाजपा नेता के लक्ष्मण ने उन्हे ‘पाकिस्तान की बहू’ क़रार दिया और उन्हें यह सम्मान दिए जाने पर सवाल उठाया।

सोशल मीडिया पर पक्ष-प्रतिपक्ष में काफी बहस हुई। इंडियन एक्सप्रेस अख़बार ने एक तस्वीर ट्वीट किया जिसपर लिखा था कि मैं सानिया मिर्ज़ा हूँ और मैं परदेसी नहीं हूँ। यहाँ तक कि दुखी सानिया ने अपने फ़ेसबुक पन्ने पर अपनी पांच पीढ़ियों का हिसाब भी लिख डाला और अपने को भारतीय होने का प्रमाण दिया।

एक टीवी चैनल को दिए एक इंटरव्यू के दौरान सानिया ने कहा कि उस समय मैं बहुत उदास थी। मुझे नहीं पता कि यह सब किसी और देश में होता है या नहीं। सानिया ने स्वयं को भारतीय होने का प्रमाण देती हुई कही कि यह मेरे लिए बहुत आहत करने वाला था कि मुझे अपनी भारतीयता को साबित करना पड़ता है, बार-बार बताना पड़ता है कि मैं भारतीय हूं। यह बिल्कुल अनफेयर है। देश के लिए इतने साल तक खेलने के बाद देश के लिए मेडल जीतने के बाद बार-बार यह बताने के बाद कि मेरे पास भारतीय पासपोर्ट है।

सानिया मिर्जा और एलेना वेस्नीना 2011 फ्रेंच ओपन विंबलडन चैंपियनशिप और कई अन्य क्वार्टर फाइनल और सेमीफाइनल में पहुँचने वाली डबल्स टीम में से एक थीं। सानिया ने अपने करियर की शुरुआत साल 1999 में विश्व जूनियर टेनिस चैम्पियनशिप में हिस्सा लेकर की। उसके बाद उन्होंने कई अंतर्राष्ट्रीय मैचों में शिरकत की और सफलता भी पाई। वर्ष 2003 उनके जीवन का सबसे रोचक मोड़ बना जब भारत की तरफ से वाइल्ड कार्ड एंट्री करने के बाद उन्होंने विम्बलडन में डबल्स के दौरान जीत हासिल की। वर्ष 2004 में बेहतर प्रदर्शन के कारण उन्हें 2005 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

वर्ष 2005 के अंत में उनकी अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग 42 हो चुकी थी जो किसी भी भारतीय टेनिस खिलाड़ी के लिए सबसे ज्यादा थी। मई 2006 में पाँचवीं वरीयता प्राप्त सानिया मिर्ज़ा को 2 लाख अमेरिकी डालर वाली इंस्ताबुल कप टेनिस के दूसरे ही राउंड में हार का मुँह देखना पड़ा। दिसम्बर 2006 में दोहा में हुए एशियाई खेलों में उन्होंने लिएंडर पेस के साथ मिश्रित युगल का स्वर्ण पदक जीता।

सानिया बेटा इजहान के साथ

महिलाओं के एकल मुक़ाबले में दोहा एशियाई खेलों में उन्होंने रजत पदक जीता। महिला टीम का रजत पदक भी भारतीय टेनिस टीम के नाम रहा- जिसमें उनके अतिरिक्त शिखा ओबेरॉय, अंकिता मंजरी और ईशा लखानी थीं। वर्ष 2009 में वे भारत की तरफ से ग्रैंड स्लैम जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी बनीं। विबंलडन का यह खिताब जीत कर उन्होंने इतिहास रच डाला। वह आस्ट्रेलियन ओपन में हंगरी की पेत्रा मैंडुला को हराने के साथ ही किसी ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट के तीसरे राउंड में पहुँचने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी बन गईं। (एजेंसियां)

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