सूत्रधार: हिन्दी भाषा के बढ़ते कदम विषय पर परिचर्चा गोष्ठी का आयोजन, मयूर पुरोहित को दी श्रद्धांजलि

हैदराबाद (सरिता सुराणा की रिपोर्ट) : साहित्य, कला, संस्कृति, शिक्षा और समाज सेवा के क्षेत्र में अग्रणी राष्ट्रीय संस्था सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था द्वारा 56 वीं मासिक गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार संस्थापिका सरिता सुराणा ने सभी सम्मानित सदस्यों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया। श्रीमती तृप्ति मिश्रा ने स्वरचित सरस्वती वन्दना प्रस्तुत करके गोष्ठी का शुभारंभ किया। उसके बाद संस्था की वरिष्ठ सदस्या श्रीमती भावना पुरोहित के पतिदेव मयूर पुरोहित के निधन पर संस्था की ओर से दो मिनट का मौन रखकर हार्दिक श्रद्धांजलि दी गई। यह गोष्ठी दो सत्रों में आयोजित की गई।

प्रथम सत्र में हिन्दी माह के अन्तर्गत आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों की शृंखला में ‘हिन्दी भाषा के बढ़ते कदम’ विषय पर परिचर्चा रखी गई। इसमें विषय प्रवेश के रूप में सरिता सुराणा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि 14 सितम्बर सन् 1949 को हिन्दी को भारत संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया था। अभी हम राजभाषा का हीरक जयंती समारोह मना रहे हैं। राजभाषा हिन्दी आज़ विश्व के लगभग 175 विश्वविद्यालयों में पढ़ायी जाती है। माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, आईबीएम और ओरेकल जैसी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां अपने बाजार विस्तार के लिए हिन्दी भाषी कर्मचारियों को नौकरी पर रख रही हैं। इससे हिन्दी भाषा में रोजगार की संभावनाएं बढ़ी है। हिन्दी हमारे देश के अधिकांश नागरिकों द्वारा एक सम्पर्क भाषा के रूप में प्रयोग की जाती है। धीरे-धीरे हिन्दी भाषा सम्पूर्ण विश्व में अपना विशिष्ट स्थान बनाती जा रही है।

मुख्य वक्ता डॉ वी वेंकटेश्वर राव ने कहा कि राजभाषा और राष्ट्र भाषा में अंतर है, लेकिन इसकी जानकारी सभी सरकारी कर्मचारियों को भी नहीं है। केन्द्र सरकार के कार्यालय हिन्दी भाषा के माध्यम से जनसामान्य तक सूचनाएं पहुंचाने के लिए सरल भाषा का प्रयोग करेंगे तो वह ज्यादा लोगों तक पहुंचेगी। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा, केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, दिल्ली और हिन्दी प्रचार सभाएं हिन्दी भाषा के विकास और प्रशिक्षण हेतु महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। संसदीय राजभाषा समिति भी इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हमें गलतियों की ओर ध्यान न देकर सकारात्मक ढंग से सोचना चाहिए। इस सत्र में दर्शन सिंह और अमिता श्रीवास्तव ने अपनी जिज्ञासा रखी, जिनका समाधान डॉ राव ने किया। अमृता श्रीवास्तव ने प्रथम सत्र का धन्यवाद ज्ञापित किया।

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द्वितीय सत्र में उपस्थित सदस्यों द्वारा हिन्दी दिवस और राष्ट्रीय बालिका दिवस से सम्बन्धित विविध रसों से परिपूर्ण रचनाओं का पाठ किया गया। इसमें बिनोद गिरि अनोखा ने भोजपुरी भाषा में अपने बाबूजी को समर्पित तथा बालिकाओं को समर्पित मार्मिक रचनाओं का पाठ किया तो दर्शन सिंह ने पंजाबी मिश्रित हिन्दी में ईश्वर को समर्पित भावपूर्ण रचना का पाठ किया। उदयपुर, राजस्थान से श्रीमती सपना श्रीपत ने बेटियों को समर्पित संवेदनशील रचना का पाठ किया तो अमृता श्रीवास्तव ने लाइट, कैमरा, एक्शन जैसे शब्दों से सुसज्जित रोचक रचना प्रस्तुत की। सरिता सुराणा ने कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में लिखी हुई अपनी रचना- देवी न बनाओ मुझे, मानवी ही रहने दो/मुझे बेटी बनकर जीने दो प्रस्तुत की। इस गोष्ठी में ज्योति गोलामुडी, किरन सिंह, अमिता श्रीवास्तव, विनीता शर्मा, ए.के. साहू और तृप्ति मिश्रा की उपस्थिति रही। गोष्ठी में बहुत सुन्दर और सारगर्भित चर्चा के साथ उत्कृष्ट रचनाओं के पाठ ने चार चाँद लगा दिए। सरिता सुराणा के धन्यवाद ज्ञापन से गोष्ठी सम्पन्न हुई।

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