आपके लिए विशेष लेख : तनाव प्रबंधन और तुलसी साहित्य

तनाव क्या है?- किसी कठिन परिस्थिति में होनेवाली मानसिक उथल-पुथल को ही तनाव कहा जाता है। ‘तनाव’ एक प्राकृतिक मानवीय प्रतिक्रिया है जो सामाजिक, पारिवारीक, व्यावसायिक, शारीरिक आदि क्षेत्रों में उत्पन्न होनेवाली नकारात्मक क्रियाओं या परिवर्तनों के कारण से उत्पन्न होती है। तनाव कोई ऐसी भावना या समस्या नहीं है जिसे हम आधुनिक युग में देख रहे हैं। जब से मनुष्य ने अपना चरण इस धरती पर रखा है तब से ही तनाव के साथ उसका संबंध जुड़ गया है। ‘कामायनी’ की निम्न पंक्तियाँ इस उक्ति को प्रमाणित करने के लिए उत्कृष्ट है-

‘ओ चिंता की पहली रेखा, अरी विश्व-वन की व्याली,
ज्वालामुखी स्फोट के भीषण, प्रथम कम्प-सी मतवाली’॥

समझनेवाली बात यह है कि मनु जब सृष्टि के प्रारंभिक चरण में चिंतित थे तब उन्हें सहारा देने के लिए श्रद्धा थी, लेकिन आज मनु की संतान मनुष्य जब चिंतित होता है तब अपने को बहुत बार अकेला पाता है, स्वयं को नशे में डुबो लेता है, अत्महत्या करने से भी पीछे नहीं हटता है।

ऐसे में रहीम का दोहा बरबस ही याद आ जाता है-
‘रहिमन कठिन चितान ते, चिंता को चित चेत।
चिता दहति निर्जीव को, चिंता जीव-समेत’॥

हाँ, वास्तव में आज का मनुष्य जीवित चिंता के कारण से जल रहा है। लेकिन समस्या यह है कि ‘तनाव प्रबंधन’ इस विषय को लेकर समाज में कोई जागरूकता दिखाई नहीं पड़ रही है। तनाव से मुक्ति देने के लिए योग अब YOGA के रूप में दिखाई पड़ता है, परामर्श के नाम पर CONSULTING FEES साधारण लोगों से इतनी ऐंठी जाती है कि चिंता मुक्ति केंद्र ही चिंता जन्म केंद्र के रूप में फैल गए हैं। आज फिर से अच्छे साहित्य और अच्छे मनोवैज्ञानिकों की बहुत आवश्यकता है।

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पिछले पाँच दशकों में शोधकर्ताओं ने तनाव की कई उपयोगी परिभाषाएँ प्रस्तुत की है-

आर. ए. लाजरस के अनुसार, ‘तनाव तब पैदा होता जब व्यक्ति को लगता है कि वे उन पर की जा रही माँगों या उनके स्वास्थ्य के लिए खतरों का ठीक से सामना नहीं कर सकते’। 1.

एस. पामर के अनुसार, ‘तनाव एक व्यक्ति द्वारा मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और व्यावहारिक प्रतिक्रिया है। जब उन्हें लगता है कि उन पर लगाई गई माँगों और उन माँगों को पूरा करने की उनकी क्षमता के बीच संतुलन की कमी है, जो समय के साथ खराब स्वास्थ्य की ओर ले जाती है’। 2.

तनाव के प्रकार– जैसा कि उपर्युक्त परिभाषाओं से हमें यह ज्ञात हो गया है कि तनाव एक मनोवैज्ञानिक दबाव है। जितने प्रकार के मनुष्य होंगे उतने ही प्रकार के तनाव के कारणों का होना भी स्वाभाविक ही होगा। इस प्रकार से तनाव को मोटे तौर पर निम्न भागों में बाँटा जा सकता है-

तीव्र तनाव– यह अल्पकालिक तनाव है। यह किसी नई चुनौती, घटना या माँग को देखकर शरीर कैसे आंदोलित होता इस पर अवलंबित होता है।

एपिसोडिक तनाव- इस प्रकार से त्रस्त व्यक्ति को हमेशा यही लगता है कि उनका ही जीवन अस्त-व्यस्त और नाटक से भरा हुआ है।

दीर्घकालिक तनाव– इसे ‘क्रोनिक तनाव’ भी कहा जाता है। यह तनाव का सबसे हानिकारक रूप है। ऐसे तनाव का समाधान आसानी से नहीं मिल पाता है।

तनाव से बचने के उपाय- तनाव भले ही मनोवैज्ञानिक और मानसिक परिवर्तनों का परिणाम है, लेकिन तनाव कोई ऐसी समस्या नहीं है, जिसका कोई समाधान ही नहीं है। व्यक्ति अपनी जीवनशैली और चिंतनशैली में परिवर्तन लाकर तनाव से अवश्य ही बच सकता है।

तनाव से बचने के लिए आवश्यक है कि भरपूर नींद ली जाए और संतुलित आहार लिया जाए। कई बार लोगों को लगता है कि शराब और नशीली दवाइयों को लेने से तनाव मुक्त हुआ जा सकता है। लेकिन यह केवल एक भ्रामक धारणा है। इसलिए तनाव के समय नशे से मुक्त रहना आवश्यक है। तनाव से बचने के लिए प्रार्थना, योग, खेलकुद आदि का सहारा लेना बहुत ही लाभदायक होता है।

तनाव से बचने के लिए काम से छुट्टी लेना भी गलत नहीं है। अपने आपको समय देकर अगर चिंतन-मनन व्यक्ति कर पाता है तो अवश्य ही वह तनावमुक्त होने का समाधान खोज पाता है।

तनाव को अपनी व्यक्तिगत समस्या न समझकर परिवार, परामर्शदाता, मित्र, डॉक्टर आदि के साथ बात करना लाभदायक होता है। ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका समाधान नहीं है। इसी कारण से वार्तालाप का होना तनाव के समय आवश्यक।

तनाव के समय अपने से अधिक दुर्बल की सहायता करने का प्रयास करना चाहिए। इससे यह समझ आता है कि तनाव प्रत्येक के जीवन में है और संगठित होकर सोचने से प्रत्येक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को समाधान दे सकता है। आवश्यक यह है कि ईमानदारी के साथ मन खोलकर बात किया जाए, सहायता देने का प्रयास किया जाए।

तनाव और साहित्य का परस्पर संबंध- साहित्य केवल मनोरंजन की वस्तु नहीं है, यह एक प्रकार की औषधि भी है जो मनुष्य को चिंतन-मनन करने में सहायता प्रदान करती है। इस कारण से तनाव के समय एक अच्छा साहित्य अवश्य ही मनुष्य को तनावमुक्त करने में सहायता प्रदान करती है।

साहित्य तनाव में कैसे सहायता कर सकता है?

तनावग्रस्त व्यक्ति के लिए कविता ध्यान केंद्रित करने का माध्यम बन जाता है। कहानियों और उपन्यासों के पात्र तनावग्रस्त व्यक्ति को नैतिकता की सीमा समझाने में अवश्य ही सक्षम बन सकते हैं। आलोचनात्मक पुस्तकें तनावग्रस्त व्यक्ति को बौद्धिक और तार्किक सोचने के लिए बाध्य करते हैं।

तनाव के कारण से शरीर में सूजन पैदा करने वाले हार्मोन बनते हैं इसके कारण से मसूड़ों में सूजन और खून आने लगता है इसे ‘पेरिओडोन्टल रोग’ कहा जाता है। समीक्षात्मक साहित्य मनुष्य को सोचने के लिए प्रेरित करता है कि क्या वही एकमात्र तनावग्रस्त व्यक्ति है? ऐसा आत्ममंथन केवल साहित्य के द्वारा ही संभव है।

पाश्चात्य साहित्यकार अरस्तू के ‘विरेचन सिद्धांत’ की चर्चा करना भी यहाँ आवश्यक है। साहित्य, कला, धर्म आदि अनेक विषयों के द्वारा मन के कुविचारों का नाश ही ‘विरेचन सिद्धांत के अंतर्गत आता है।

तनाव प्रबंधन और तुलसी साहित्य- तुलसी भाव सम्राट और शब्द सम्राट दोनों थे। तुलसी को सबसे बड़ा समन्वयवाद और लोकनायक कवि माना जाता है क्योंकि उनकी रचनाओं का मूल भाव ही ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ रहा। ऐसे कवि की रचनाओं में तनाव प्रबंधन से संबंधित विचार न मिले ऐसा कैसे हो सकता है? तुलसी ने सरल भाषा में तनाव प्रबंधन से संबंधित अनेक उपाय बताएं हैं। प्रश्न यह उठता है कि तुलसी ने तनाव प्रबंधन की आवश्यकता को इतनी गंभीरता से कैसे समझा? तुलसी का जन्म उस समय हुआ था जब अकबर और उसके पहले के अनेक अत्याचारी शासक वर्ग जनता के साथ पशु जैसा व्यवहार करना स्वाभाविक प्रक्रिया समझते थे। ‘इन शासकों की महत्वाकांक्षा, स्वेच्छाचारिता, धार्मिक संकीर्णता तथा प्रतिशोध की भावना की कोई सीमा नहीं थी। धार्मिक प्रतिशोध से प्रेरित होकर जाने कितने ज्ञान के केंद्र-पुस्तकालयों, संग्रहालयों तथा साधना के केंद्र-मंदिरों और पवित्र स्थानों को नष्ट कर देने में लेशमात्र संकोच का अनुभव न किया। इनकी स्वेच्छाचारिता की कोई सीमा नहीं थी। नियम या विधान अथवा कानून इनकी इच्छानुसार रूप ग्रहण किया करते थे। इन्होंने जनजीवन के साथ जाने कितने प्रयोग किए’। 3

तुलसी जनता में साहस का संचार करने के लिए ‘रामचरितमानस’ के ‘कलि-काल-वर्णन’ में अपने समय की भोगी हुई विभीषिका का वर्णन प्रस्तुत किया है-

‘कलि बारहिं बार दुकाल परैं,
बिनु अन्न दु:खी सब लोग मरैं’॥ 4

प्रस्तुत आलेख में आगे तुलसी के दोहों में तनाव प्रबंधन करने के और कौन से उपाय बताए गए हैं इसी का विश्लेषण किया जाएगा।

आत्मविश्वास को बढ़ाना- तनाव मन में विभिन्न कारणों से जन्म ले सकता है लेकिन यह तब गंभीर रूप ले लेता है जब व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी होती है। तुलसी ने इसी कारण से आत्मविश्वास के महत्व को स्थापित करने के लिए यह लिखा कि-

‘बिना तेज के पुरुष की, अवशि अवज्ञा होय।
आगि बुझे ज्यों राख की, आप छुवै सब कोय’॥ 5

अर्थात, तेजहीन व्यक्ति जिसका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं होता है उसे कोई महत्व नहीं देता है ठीक जैसे आग के बुझ जाने पर उसे राख समझ लिया जाता है। कहने का अर्थ यह है कि व्यक्ति का आत्मचिंतन ही उसे किसी भी विपरीत परिस्थिति से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है। इसलिए अपने आत्मविश्वास के साथ कभी समझौता नहीं करना चाहिए। कहीं भी तनाव, चिंता आदि शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया है, लेकिन तनाव से बचने की कुंजी को तुलसी ने प्रस्तुत कर दिया है।

5.2 ईर्ष्या का त्याग- वैसे तो दूसरी कई भावनाओं के समान ईर्ष्या भी मानव मन की एक भावना है लेकिन यह एक नकारात्मक भावना है और तनाव को जन्म देने में इस भावना की एक महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। जब व्यक्ति अपने पास की वस्तु से संतुष्ट न होकर दूसरों की संपत्ति से जलने लगता है तब वह अनावश्यक रूप में तनावग्रस्त होने लगता है-

‘पर सुख संपति देखि सुनि, जरहिं जे जड़ बिनु आगि।
तुलसी तिन के भागते, चलै भलाई भागि’।। 6

अर्थात, जो व्यक्ति दूसरों की वस्तुओं को देखकर अपने जीवन में उपलब्ध खुशियों को अनदेखा करने लगता है उसके भाग्य में से प्रसन्नता गायब होने लगती है। कहने का अर्थ यह है कि तनाव से बचने का एकमात्र उपाय है अपने जीवन और उस जीवन में उपलब्ध वस्तुओं को सम्मान देने की प्रवृत्ति को अपना लेना।

वाणी पर नियंत्रण- तनाव से बचने का सर्वोत्तम उपाय है सामाजिक, पारिवारिक, व्यावसायिक आदि संबंधों को सुखद और सौहार्द्रपुर्ण बनाकर रखा जाए। ऐसा करने में वाणी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। तुलसी लिखते हैं-

‘तुलसी मीठे वचन तें, सुख उपजत चहूँ ओर।
वशीकरण एक मंत्र है, तज दे वचन कठोर’॥ 7

तनावग्रस्त व्यक्ति इससे अधिक और क्या ही चाहेगा कि कोई उसके साथ कुछ समय मीठे बोलों के साथ बिता दे? तुलसी यूँ ही लोकनायक नहीं कहलाते हैं। यही उनकी सबसे बड़ी विशेषता रही कि जिस समस्या पर आज भी लोगों की चेतना काम नहीं करती है, तुलसी ने उस समस्या पर अर्थात, तनाव की समस्या पर सदियों पहले सोचा और न केवल सोचा बल्कि ‘मीठे वचन’ को समाधान के रूप में प्रस्तुत कर दिया।

चरित्र संगठन और भक्ति- तनाव के समय सबसे अधिक जो कमजोर हो जाता है वह है ‘मन’। तनाव के समय मन को नियंत्रित रखना ही सबसे अधिक कठिन हो जाता है। कमजोर मन समस्या को लेकर इतना चिंतित हो उठता है कि नकारात्मक विचार बुद्धि को हराने लगता है। ऐसे में भक्ति मन की शक्ति को अवश्य ही शसक्त बना सकती है। भक्ति और मन की शक्ति इन दोनों का तनाव प्रबंधन में महत्वपूर्ण योगदान रखता है-

‘तुलसी असमय के सखा, धीरज धरम विवेक।
साहित साहस सत्यव्रत, राम भरोसे एक॥ 8

भक्ति केवल धार्मिक मुद्दा नहीं है यह मानव मन को आत्मविश्वास के साथ जोड़ देनेवाला साधन भी है। नियंत्रित चरित्र और भक्ति दोनों के सामंजस्य से तनाव प्रबंधन का काम अवश्य ही सरल हो जाता है।

तनाव प्रबंधन और रामचरितमानस- तनाव प्रबंधन की बात हो और ‘रामचरितमानस’ की चर्चा न हो यह कैसे हो सकता है? राम तो अपने आप में ही तनाव प्रबंधन के बहुत बड़े शिक्षक हैं। क्या केवल राम के जीवन से ही तनाव प्रबंधन को सीखा जा सकता है? नहीं, मानस का प्रति एक चरित्र अपने आप में तनाव प्रबंधन को लेकर स्वयंसिद्ध है। जब विश्वामित्र ने राजा दशरथ से कहा-

‘असुर समूह सतावहिं मोही। मैं जाचन आयऊँ नृप तोही॥
अनुज समेत देहु रघुनाथा। निसिचर बध मैं होब सनाथा’॥ 9

एक पिता का मन कितना तनावग्रस्त हुआ होगा यह जानकर कि उनके पुत्रों को जंगल में जाकर राक्षस वध करना है। लेकिन उसी समय गुरु वशिष्ठ का ज्ञान एक पिता को राजा के दायित्व से मुँह मोड़ने से रोक देता है। तनाव के समय ऐसे गुरु या परामर्शदाता की आवश्यकता बढ़ जाती है। गुरु या परामर्शदाता ही जितनी अच्छी प्रकार से यह सत्य समझा पाते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति का जन्म किसी कारण से ही हुआ है। यह विधि का लेखन है उतनी ही शीघ्रता से तनावग्रस्त व्यक्ति तनावमुक्त होने लगता है-

‘अति आदर दोउ तनय बोलाए। हृदय लाइ बहु भाँति सिखाए॥
मेरे प्रान नाथ सुत दोउ। तुम्ह मुनि पिता आन नहीं कोऊ॥ 10

साथ ही साथ दशरथ का विश्वास विश्वामित्र के प्रति उनको तनाव मुक्त होकर राजा के कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने के लिए मार्ग प्रदर्शन करता है। ‘विश्वास’ यह केवल एक शब्द नहीं है यह चुनौतियों को दरकिनार करके आगे बढ़ने का मार्ग दिखानेवाली औषधि है।

तनाव प्रबंधन के लिए यह भी आवश्यक है कि हम इन दो सत्यों को समझ लें कि संसार में सज्जन व्यक्ति रहते हैं और दुर्जन भी और कर्म एक ऐसा बीज है जिसका फल बिजारोपण के समान ही आता है। राम ने कहा है कि –

‘ताते सुर सीसन्ह चढ़त, जग बल्लभ श्रीखंड।
अनल दाहि पीटत घनहिं, परसु बदन यह दंड’॥ 11

अर्थात, सबको सुवासित करने के अपने गुण के कारण चंदन देवताओं के सिर पर चढ़ता है और जगत का प्रिय होकर रहता है। इसके विपरीत कुल्हाड़ी को कुंद हो जाने पर आग में तपाकर उसके मुख को घन से पीटा जाता है। तनाव में अगर व्यक्ति अपने व्यक्तित्व और अपने जीवन मूल्यों की तुलना किसी और के साथ न करे तो अवश्य ही वह अपने हिस्से के आत्मविश्वास को नहीं खोता है और यही आत्मविश्वास उसके तनाव में उसका शस्त्र बनता है। जैसे भरत माँ के विचारों से प्रभावित नहीं होते हैं और न राम पिता की आज्ञा से पीछे हटते हैं तनाव की परिस्थिति के बीच में भी-

‘भरत सील गुर सचिव समाजू । सकुच सनेह बिबस रघुराजू॥
प्रभु करि कृपा पाँवरीं दिन्हीं । सादर भरत सीस धरि लीन्हीं॥ 12

समाधान स्वरूप प्रभु श्री रामचंद्रजी ने कृपाकर खड़ाऊँ दे दिया और भरत जी ने उन्हें आदरपूर्वक सिर पर धारण कर लिया। तनाव प्रबंधन के लिए यह आवश्यक है कि समझौता किए बिना सोच-विचार कर ठोस समाधान को खोजने का प्रयास किया जाए।

तनाव को जीत लेना और युद्ध जीत लेना दोनों को एक समान कहने से अतिश्योक्ति नहीं होगी। दोनों में ही व्यक्ति को सबसे पहले अपने आपको नियंत्रित करना होता है। इसी संदर्भ में रामायण संदर्शन में उद्धृत प्रोफेसर ऋषभ देव शर्मा जी के विचार को रेखांकित करना तर्कसंगत ही होगा।

‘युद्ध जीतना तो सब चाहते हैं लेकिन जीतते सब नहीं हैं। जीतता वही है, जो धर्ममय रथ पर आरूढ़ होता है। प्रकट में हमें यह लग सकता है कि अधर्म जीत रहा है और धर्म असहाय तथा पराजित है। हमें समझना होगा कि अधर्म के सहारे विजय प्राप्त करना, सच में तो हार जाना ही है। ऐसी जीत का कोई मूल्य नहीं। महत्व इसका नहीं कि युद्ध में हार हुई या जीत। महत्व इसका है कि युद्धभूमि में प्राण संकट में पड़ने पर भी किसने धर्म का दामन नहीं छोड़ा, कौन कर्तव्य से विमुख नहीं हुआ। युद्ध में हार जाना या मारे जाना उतनी बड़ी क्षति नहीं, जितनी बड़ी क्षति योद्धा के कर्तव्य से विमुख हो जाने पर होती है। युद्ध यद्यपि विजय-कामना से ही लड़ा जाता है, लेकिन पराजय देखकर विजय की खातिर मूल्यों का सौदा कर लेना योद्धा का धर्म नहीं है’। 13
यह एक भ्रामक धारणा है कि तनाव में रोने से, अपना दुख दूसरों के साथ बाँटने से व्यक्ति और कमजोर हो जाता है। मानस में राम तनाव में आकर रोते भी दिखाई पड़ते हैं-

‘जथा पंख बिनु खग अति दीना । मनि बिनु फनि करिबर कर हीना॥
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही । जौं जड़ दैव जिआवै मोही॥ 14

एक भाई का ऐसे रोना उसकी कमजोरी को नहीं उसकी प्रेम की शक्ति को प्रदर्शित करने में सक्षम है। तनाव में यह आवश्यक है कि व्यक्ति अपने मन की ईमानदार भावनाओं को अवश्य ही व्यक्त करें।

तनाव प्रबंधन कैसे करना है यह सीता के चरित्र से सीखना तर्कसंगत होगा। सीता, जनक पुत्री सीता, अयोध्या की कुलवधू सीता राक्षसों के बीच क्या वह डरी हुई, तनाव ग्रस्त नहीं थी? अवश्य ही वह तनाव ग्रस्त थी। लेकिन उस नारी की शक्ति को देखिए तिनके की आड़ में वह रावण को चुनौती देने से भी पीछे नहीं हटती-

‘सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा । कबहूँ कि नलिनी करइ बिकासा॥
अस मन समुझु कहति जानकी । खल सुधि नहीं रघुबीर बान की॥15

तनाव प्रबंधन की बात हो और हनुमान का नाम न लिया जाए यह संभव ही नहीं है। तनाव से बचने या तनाव को हराने के लिए ‘स्वाभाविक धैर्य’ का रहना बहुत आवश्यक है। राम का रुदन गलत नहीं था लेकिन हनुमान के धैर्य के सामने राम का धैर्य भी हल्का तो लगता है। विकट से विकट परिस्थिति का सामना राम से पहले हनुमान ही करते हैं। चाहे वह सिंहिका राक्षसी की भीषणता हो या फिर रावण के द्वारा हनुमान के पुंछ पर आग लगा देना। हनुमान हरेक परिस्थिति का सामना ‘कार्य कौशल’ के साथ करते है। तनाव से बाहर वही व्यक्ति आ सकता है जो केवल समाधान नहीं खोजता बल्कि कौशल के साथ समाधान खोजता है।

उपसंहार- आलेख से यह ज्ञान प्राप्त हो ही गया कि जब से मनुष्य ने अपना चरण इस धरती पर रखा है तब से ही तनाव के साथ उसका संबंध जुड़ गया है। ‘कामायनी’ की निम्न पंक्तियाँ इस उक्ति को प्रमाणित करने के लिए उत्कृष्ट है-

‘ओ चिंता की पहली रेखा, अरी विश्व-वन की व्याली,
ज्वालामुखी स्फोट के भीषण, प्रथम कम्प-सी मतवाली’॥

तनाव से मुक्ति देने के लिए योग अब YOGA के रूप में दिखाई पड़ता है, परामर्श के नाम पर CONSULTING FEES साधारण लोगों से इतनी ऐंठी जाती है कि चिंता मुक्ति केंद्र ही चिंता जन्म केंद्र के रूप में फैल गए हैं। आज फिर से अच्छे साहित्य और अच्छे मनोवैज्ञानिकों की बहुत आवश्यकता है। तुलसी भाव सम्राट और शब्द सम्राट दोनों थे। तुलसी को सबसे बड़ा समन्वयवा और लोकनायक कवि माना जाता है क्योंकि उनकी रचनाओं का मूल भाव ही ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ रहा। तुलसी ने सरल भाषा में तनाव प्रबंधन से संबंधित अनेक उपाय बताएं हैं। तुलसी का साहित्य ‘तनाव प्रबंधन’ की दृष्टि से कालजयी है।

डॉ. सुपर्णा मुखर्जी
सहायक प्राध्यापक
भवंस विवेकानंद कॉलेज, सैनिकपुरी
हैदराबाद केंद्र- 500094
सचलभाषा- 9603224007
drsuparna.mukherjee@gmail.com

संदर्भ सूची
गूगल सौजन्य
गूगल सौजन्य
रामायण संदर्शन – 36
रामचरितमानस, उत्तरकांड, दोहा- 101
तुलसीदास कृत दोहावली
तुलसीदास कृत दोहावली
तुलसीदास कृत दोहावली
तुलसीदास कृत दोहावली
रामचरितमानस 172
रामचरितमानस 172
रामचरितमानस, उत्तरकांड, दोहा- 37
रामचरितमानस, अयोध्याकांड- 497
रामायण संदर्शन-75
रामचरितमानस, लंकाकाण्ड – 674
रामचरितमानस, सुंदरकांड– 588

संदर्भ पुस्तकें
रामायण संदर्शन
ऋषभ देव शर्मा
प्रकाशक: साहित्य रत्नाकर
प्रथम संस्करण: 2022
श्री हनुमान-चरित-मानस
प्रोफेसर सियाराम तिवारी
मुद्रक- पंकज प्रेस
गुलजार बाग, पटना-80007
श्रीरामचरितमानस
तुलसीदासजीविरचित
टीकाकार – हनुमान पोद्दार
गीता प्रेस, गोरखपुर- 273005

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