पुण्यतिथि विशेष-3: एक अद्वितीय ‘ अदम्य ‘ अद्भुत ‘ अनमोल ‘ वीर स्वतन्त्रता सेनानी पण्डित गंगाराम जी वानप्रस्थी!

हमारा भारतीय इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि जब भी मानवता और धर्म का नाश होने लगता है तब मानवता की पीड़ा से मुक्ति दिलाने के लिए किसी महामानव का जन्म होता है जिसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस प्रकार लिखा है कि

जब जब होई धर्मकी हानि
असुर भहई महाअभिमानी
तब तब प्रभु घरि मनुज सरीरा
हरहि भव भंजन पीरा।

इसी चोपाई को सिद्ध करते हैं महान और अद्भुत व्यक्तित्व के स्वामी स्वर्गीय श्री पं गंगाराम वानप्रस्थी जी। उनका त्याग समाज सेवा देशसेवा आर्य समाज की सेवा और अन्य कार्य अविस्मण्यीय है। यह अति प्रसन्नता का विषय है कि उनके परिवार ने उनकी स्मृति में स्वतन्त्रता सेनानी पण्डित गंगाराम स्मारक मंच की स्थापना की। और मुझे भी पण्डितजी के अद्वितीय व्यक्तित्व की स्मृति में कुछ लिखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। परन्तु मुझे ऐसा लगता है कि ये कार्य आसान नहीं है क्योंकि इस अद्भुत व्यक्तित्व पर प्रकाश डालना सुरज को दिया दिखाना जैसा है। फिर भी में अपनी लेखनी द्वारा यह साहस करती हूँ और कहती हूँ-

सात समुन्दर की मसिकरु
लेखनी सब बनराय
सारी घरती का गद करू
फिरभी पण्डित जी का गुण लिखा न जाए।

हमारे परिवार और उनके परिवार में बहुत घनिष्ठता थी। श्रीमती इन्द्राणी मौसीजी जी का हम सब पर बहुत स्नेह था।
इस वीर सेनानी का जन्म 8 फरवरी 19 16 में बसन्त पंचमी के दिन हैदराबाद में हुआ था । इनकी माताका नाम बाडू बाई और पिताजीका नाम श्री अनन्तराम जी था। परन्तु दुर्भाग्यवश इनका परिवार 1918 में प्लेग की चपेट में आ गया और बाल्यकाल में ही पण्डितजी का जीवन एकाकी हो गया। परन्तु इन्होंने अपना साहस और आत्म विश्वास नहीं छोड़ा। बचपन की विषम परिस्थितियों का सामना अदम्य साहस और दृढता से किया। इन्होंने बचपन में ही बॉय स्काऊट द्वारा सुरक्षा का प्रशिक्षण लिया जिसके कारण बहुत कम उम्र में ही इन्होने गोदावरी में डूबती हुई एक बाल विधवा के प्राणों की रक्षा की। इनके इस साहसिक कार्य के लिए इन्हें बचपन में ही गैलेंट्री मेडल रूपी शौर्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पण्डित जी ने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज की सेवा के लिए समर्पित किया। आर्य समाज की और वेदों के महत्व को समझाया।

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समाज से अशिक्षा अस्पृश्यता जातिवाद बाल विवाह विधवाओं के प्रति अत्याचार आदि कुभावनाओं और कुपरम्पराओं का निराकरण किया। कमजोर वर्गो का सशक्तिकरण किया। राष्ट्र भाषा के रूप में हिन्दी की सेवा की सर्मथन किया । निजाम शासन से हैदराबाद को मुक्त कराने में अथक परिश्रम किया। पण्डित जी ने सदा देश और देश के राष्ट्रीय और सांस्कृतिक तथा मानवीय मूल्यों को महत्व दिया और उनका प्रचार तथा प्रसार किया। इन्होने आर्य समाज के कई सम्मेलनों का आयोजन किया। रजाकारों के उपद्रव जब तीव्र गति से बढने लगे तब विभिन्न प्रकार के अस्त्र शस्त्रों का निमार्ण करवा कर राजकारों और निजाम सरकार से लोहा लिया। जिसके कारण निजाम प्रशासन ने उन्हें झूठे आरोप लगा कर पकड़ना चाहा पर वे कभी भी सफल न हुए। क्रान्ति काल में वे गुप्त संदेश वाहक रहे। महात्मा गांधी जी से तथा कांग्रेस से भी जुडे रहे।

वे एक अच्छे वक्ता तथा रचनाकार भी थे। उन्होंने महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के जीवन पर ऋषि चरित्र प्रकाश की रचना की तथा वर्णाश्रम पत्रक का सम्पादन। अपना सम्पूर्ण जीवन वैदिक पम्पराओं के अनुसार जिया। वर्णाश्रम धर्म का पालन किया । पण्डित जी ने अपने सम्पूर्ण कार्यो में कभी शिखरस्थ कलश बनाने का विचार नहीं किया वे सदैव नींव के पत्थर की तरह बुनियादी काम करते थे। आज भी उनकी स्मृति में प्रसिद्ध इतिहासकार और प्रोफेसर जिज्ञासु जी जिनकी आयु 93 वर्ष है और 72 वर्षो से जो इतिहासकार है वे हिन्दू समाज को चैलेंज देते हुए कहते हैं कि हिन्दू समाज में कोई ऐसा नहीं पैदा हुआ जो विधवाओं और देव दासियों की कुप्रथा के विरुद्ध बोला हो और लड़ा हो और बाल विधवाओं का उद्धार किया हो। उनका कहना है कि पण्डित जी के सभी कार्य और घटनायें एक कीर्तिमान हैं।

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परन्तु ईश्वर की लीला निराली होती है वह भी घरती को हमेशा के लिए सुखी और खुशहाल नहीं रखता है। इसी कारण वह मौत को रचता है मृत्यु इस संसार और प्रकृति की स्वाभाविक और सत्य प्रक्रिया है परन्तु कुछ महान लोगों की मृत्यु संसार में और समाज में बहुत बडी रिक्तता और अभाव को लाती है जिसे ईश्वर भी पूर्ण नहीं कर पाता है और जो सभी के लिए एक अभिशाप बन जाती है। और ऐसा ही हुआ जब 25 फरवरी 2007 को पण्डित जी का स्वर्गवास हुआ। सारा समाज और परिवार अनाथ हो गया। परन्तु प्रत्यक्ष रुप से पण्डित जी हमारे बीच नहीं हैं परन्तु उनके आदर्श उनकी स्मृतियाँ सदैव हमारे साथ रहेंगी और हमारा समय समय पर मार्ग दर्शन करती रहेगी। यह मेरी शब्द रूपी हार्दिक श्रद्धांजलि पण्डित जी के प्रति। और मैं अन्त में यह कहूंगी-

“जबतक सूरज चाँद रहेगा।
तबतक पण्डित जी का नाम रहेगा।।

सुधा ठाकुर प्राध्यापिका, स्टेनली डिग्री एंड PG कॉलेज,
चेपल रोड, एबीड्स, हैदराबाद



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