इंसानों ने अपने स्वार्थ पूर्ति हेतु बहुत से जानवरों का इस्तेमाल उनकी पीड़ा को नजरअंदाज कर करता आ रहा है, उन्हीं में से एक बेहद महत्वपूर्ण जानवर है गधा, जो दुर्लभ से दुर्लभतम परिस्थितियों में इंसानों के काम आया, आ रहा है और भविष्य में आएगा।
आज 8 मई अर्थात विश्व गधा दिवस है। यह उसके प्रशंसनीय गुणों के अतिरिक्त उसके प्रति सम्मान के प्रदर्शन वाला दिन है। क्योंकि ये जीव दिन भर कड़ी मेहनत से नहीं डरते। जब सभी जानवर हार मान जाते हैं तब वे गाड़ियां खींचते हैं, चक्कियां चलाते हैं, मिलों-मील तक माल ढोते हैं। इसलिए हमारे दिल में उनके लिए एक विशेष सम्मान और महत्व है। वे हमेशा अपने स्वामी के लिए बिना किसी वेतन के विपरीत परिस्थितियों में भी सेवा करने हेतु तत्पर रहते हैं।
![](https://telanganasamachar.online/wp-content/uploads/2024/05/Donkey.2.png)
विश्व गधा दिवस 2018 से प्रतिवर्ष 8 मई को मनाया जा रहा है। गधे पर कृष्ण चंदर जी ने तो ‘एक गधे की आत्मकथा’ पूरी एक किताब ही लिख डाली है। जिसमें उनका मानना है कि गधों ने मानव इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। गधा अफ्रीकी मूल का जानवर होने के साथ विश्व के लगभग सभी देशों में इंसान के लिए बेहद जरूरी साथी साबित हुआ है। गधों की मदद के बिना आधुनिक दुनिया के अस्तित्व की कल्पना करना भी कठिन है। इसलिए गधे आज भी सकल समाज के लिए उतना ही जरूरी हैं जितना मिट्टी के बर्तन व अन्य इसी तरह के सामान जरूरी हैं।
![](https://telanganasamachar.online/wp-content/uploads/2024/05/subhratha5-44.gif)
गधों का उपयोग मानव ने सबसे पहले कब शुरू किया इस पर बहुत पुख्ता जानकारी का अभाव है पर मिस्र के एक कब्रिस्तान में मिले अवशेषों से पता चला कि 5 हजार साल पहले गधों का उपयोग ढुलाई में किया जाता था। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि गधों की वजह से ही मिस्र और सुमेर के बीच लंबी दूरी के व्यापारिक मार्गों को तय कर पाना संभव हुआ होगा। गधे मजबूत तो होते ही हैं साथ ही कम चारा-पानी में गुजारा कर लेते हैं। इसलिए ये हर जगह सर्वाइव कर जाते हैं।
![](https://telanganasamachar.online/wp-content/uploads/2024/05/Donkey.3-1024x768.jpeg)
गधों का मानव समाज के लिए योगदान इतना अधिक है कि उसके बदले में उनके साथ उचित व्यवहार आज तक नहीं किया गया है। ऐसा न केवल गधों के साथ ही होता है अपितु श्रम और श्रमिकों को हेय दृष्टि से देखने वाले लोग तमाम सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों में काम करने की ऐसी ही अद्भुत क्षमता और समर्पण भाव व ईमानदारी से काम करने के कारण कर्मचारियों को भी ‘गधे’ की संज्ञा देते हैं और उन्हें अपने से कमतर आंकते हैं।
![](https://telanganasamachar.online/wp-content/uploads/2024/05/Donkey.1-1024x303.jpeg)
गधे अपने धैर्य, सरल-सहज स्वभाव और सौम्यता के लिए भी जाने जाते हैं। वे इंसानों के लिए प्रकृति का एक अद्भुत उपहार हैं क्योंकि वे हजारों वर्षों से युद्ध, शांति और काम तीनों समय में मजबूती से हमारे साथ खड़े रहे हैं। हालांकि अब उनके लिए रहने सुरक्षित स्थान अर्थात अभ्यारण्य बनाए जा रहे हैं। इन स्थानों से लोग भी गधों के बारे अच्छे से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। उनमें काम करने की अद्भुत क्षमता होती है जिसके कारण (तमाम समुदाय अपनी-अपनी जरूरत के मुताबिक इनका उपयोग करते आ रहे हैं) धोबी समुदाय के लोग दूर-दराज के क्षेत्रों से पर्यावरण के अनुकूल कपड़ा धोने का साबुन अर्थात रेह लाने के लिए, गड़रिया समुदाय के लोग अपने भेड़ों के साथ उसपर अपना रहने के खाने-पीने का सामान रखने के लिए, गांवों तथा शहरों में ढाई-तीन फीट तंग गलियों में सीमेंट, बालू व बजरी ले जाने के लिए आजकल तो सीढ़ियों के जरिए कई कई मंजिला इमारत में भी सामान पहुंचाने के लिए ईंट भट्ठों पर ईंट ढोने के लिए पहाड़ी व दुर्गम स्थानों पर जरूरत का सामान ले जाने के लिए भी गधों का उपयोग किया जाता है।
यह भी पढ़ें-
गधों का धोबी समुदाय के साथ चोली दामन का साथ लगता है। आज भी देश के कई हिस्सों में धोबी समुद्र के लोगों के यहां गधों को देखा जा सकता है। इन गधों पर धुलाई वाले कपड़े लादकर एकत्र करना, घाट तक पहुंचाना, और धुले हुए या सूखे हुए कपड़े लादकर घर तक लाना, वितरण करने के अलावा खाली समय में ईंट भट्ठों पर ईंट ढुलाई करने, खेत-खलिहान से बोझा व अनाज घर पहुंचाने तथा गांव भर की लड़कियों के ससुराल में (शादी-गौना के बाद) अनाज पहुंचाने का काम करते है।
हालांकि बदलते समय के साथ अन्य अत्याधुनिक साधनों का इस्तेमाल किया जाने लगा है पर इनकी उपयोगिता आज भी कम नहीं हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में एक देवी शीतला माता के नाम से जानी जाती हैं, की सवारी गधा ही है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि सहित कई राज्यों में चैत माह की सप्तमी और अष्टमी तिथि गधों के मशहूर मेलों का आयोजन होता है। उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी जनपद के कड़ा धाम में भी उपरोक्त तिथि को गधों का बहुत बड़ा मेला लगता है। जहां पर खरीदने और बेचने के लिए भारत के कई राज्यों से लोग आते हैं। यहां के गधे जम्मू कश्मीर के कटरा (वैष्णो देवी के दर्शनार्थ सवारी हेतु) तक ले जाए जाते हैं।
गधों की उपयोगिता केवल यहीं तक सीमित नहीं है आजकल इनके दूध, मांस और खाल तक की मांग काफी जोर पर है। गधी का दूध कोविड के दौरान 8-10 हजार रुपए प्रति लीटर तक बिका। दूध की उपयोगिता व गुण सर्वविदित है पर मांस और खाल के संदर्भ में यह माना जाता है कि इनके इस्तेमाल से लोगों में युवावस्था चिरकाल तक बनी रहती है। गधों की जितनी उपयोगिता है उस हिसाब से इनके देखभाल के लिए पर्याप्त उपाय नहीं किए गए हैं और न ही इनके देखरेख के संबंध में लोगों में जागरूकता है। भारत में ब्रुक्स इंडिया लिमिटेड सहित कुछेक संस्थान/संस्थाएं इनके देखरेख और इलाज हेतु प्रयास कर रहे हैं।
फिर भी इतना अधिक और कम खर्च में देखभाल वाले बेहद उपयोगी जानवर की ऐसी उपेक्षा नहीं होनी चाहिए। इनके संरक्षण व देख-रेख और इनकी उपादेयता के संबंध में भारतीय और राज्य सरकारों के साथ-साथ आम जनमानस को भी बृहद स्तर पर प्रयास करने की जरूरत है। (सदियों से बेहद उपयोगी जानवर गधे के बारे में छान-बीन जारी…)
नोट: समस्त छायाचित्र कड़ा, कौशाम्बी में लगने वाले प्रसिद्ध मेले से लेखक ने लिए हैं।
![](https://telanganasamachar.online/wp-content/uploads/2024/05/narendra.2.png)
लेखक डॉ नरेन्द्र दिवाकर
मो. 9839675023