पंडित गंगाराम जी वानप्रस्थी की पुण्यतिथि पर विशेष-1 समाज सुधार और हैदराबाद के मुक्ति आंदोलन में योगदान

देश और दुनिया में अनेक महान लोगों ने जन्म लिया है। ऐसे महान लोगों की जीवनी हमारे लिए आदर्श है। उनकी प्रेरणा और संदेश हमारा मार्ग दर्शन करती है। उनके बताये राह पर चलने और चलाने की सीख देती है। तेलंगाना की धरती पर भी महान स्वतंत्रता सेनानियों और समाज सुधारकों को जन्म लिया है। ऐसे ही महान लोगों में वह भी हैदराबाद में एक महान सुपूत ने जन्म लिया। उनका नाम है- पंडित गंगाराम जी वानप्रस्थी। ऐसे महान पंडित गंगाराम जी की 25 फरवरी को पुण्यतिथि है।

हैदराबाद के मुक्ति आंदोलन में गंगाराम वानप्रस्थी का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। हैदराबाद की स्वतंत्रता और विकास के लिए अथक संघर्ष किया। समाज सुधार कार्यक्रम, समाज के कमजोर तबकों के सशक्तिकरण, अस्पृश्यता उन्मूलन और तरह से भेदभाव को मिटाने के लिए गंगाराम जी समर्पित थे। हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में इस्तेमाल करने के प्रबल समर्थक थे। मूक समाजसेवी पं. गंगाराम का जन्म वसन्तपंचमी 8 फरवरी 1916 को हैदराबाद के साधारण परिवार में हुआ था। गंगाराम जी का सारा जीवन इतिहास का एक अध्याय है। निर्भीकता और साहस मनुष्य को कहां से कहां तक पहुंचा देता है। ऐसी ही निर्भीकता और साहस की साकार प्रतिमूर्ति है पं. गंगाराम जी।

गंगाराम के पिताजी अनन्तराम जी का देहांत उस समय हुआ जब उनकी उम्र 3 वर्ष की थी। मातुश्री के कुशल देख-रेख में उनका पालन-पोषण हुआ था। मातुश्री के कुशल देख-रेख शायद प्रकृति को पसंद नहीं आई। 1942 में उनकी माताजी का भी देहांत हो गया। आपकी प्रारंभिक शिक्षा मराठी माध्यम से हुई। इसके बाद आपकी बीएससी, एलएलबी की पढाई उर्दू और अंग्रेजी माध्यम से हुई।

पं. गंगाराम के बाल्य जीवन की सेवा, कहानी और अदम्य साहस का परिचय उस समय देखने को मिलता है जब वे केवल सत्रह वर्ष के थे। उन्होंने बासर गांव के निकट उफनती गोदावरी नदी में डूबती एक बाल विधवा के प्राण बचाए। इस साहस भरी वीरता के लिए तत्कालीन सरकार ने उन्हें पुरस्कृत व सम्मानित किया। सन् 1934 में चारमीनार के चारों ओर पटाखों की दुकानों में लगी आग में फंसी एक महिला और उसके गोद के बच्चे को जलते हुए चौखट और दरवाजों से दोनों को गंगाराम जी बाहर लेकर आये। इस प्रयास में वे स्वंय भी झुलस गए। उनके बारे में ऐसी कई कहानियां है। उनकी इच्छा शक्ति और लोगों को समाज और राष्ट्र की सेवा करने की सहज भावना बयां करती है।

गंगाराम जी को 18 वर्ष की आयु में सरकारी नौकरी मिल गई, किंतु निजामी शासन के अत्याचारों से उनमें क्रांतिकारी भाव जाग उठे। तत्कालीन क्रांतिकारी नेता पं. दत्तात्रेय प्रसाद एडवोकेट के वे सहयोगी बन गए। क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने के कारण उनका सरकारी सेवा में बना रहना कठिन हो गया। नौकरी छोड दी और भूमिगत हो गये। 10 वर्ष की आयु में ही आर्यसमाज की विचार धारा से प्रभावित हो गये। 1945 में महर्षि दयानंद का जीवन चरित्र लिखा। उसे पुस्तक को निजाम सरकार ने जब्त कर दिया।

इसके अलावा गंगाराम जी कईं दिनों तक महात्मा गांधी के साथ रहे और उनके आदेश से पटना व असम का दौरा किया। 1947 में आर्य प्रतिनिधि सभा हैदराबाद के मंत्री निर्वाचित हुए। हैदराबाद की मुक्ति आंदोलन में गंगाराम वानप्रस्थी जी का योगदान काफी रहा है। उन्होंने हैदराबाद की स्वतंत्रता और विकास के लिए अथक संघर्ष और प्रयास किया। 1942 में वे उस्मानिया विश्वविधालय की ओर से भारतीय वायुसेना में चुन लिए गए थे, किंतु जनता के सैनिक को विदेशी शासन का सैनिक बनना पसंद नहीं आया। रजाकार आंदोलन के समय उन्हें निजाम शासन ने नजरबंद कर दिया। मगर ज्यादा दिन जेल में नहीं रहे है। 25 दिसंबर को अपने अनेक साथियों के साथ वे जेल से फरार हो गये। 17 सितंबर 1948 को (भारत को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के एक साल से अधिक समय बाद) हैदराबाद राज्य को निजाम के शासन से स्वतंत्रता मिली। इसमें पं. गंगाराम जी का बहुत बड़ा योगदान रहा है।

पं. गंगाराम जी की मौन साधना करते हुए आध्यात्मिक जीवन के ऊंचाई तक पहुंच गया था। वे भीतर से आत्मिक उन्नति में अग्रसर हो उठे थे। पंडित गंगाराजी 68 साल की आयु में वानप्रस्थ आश्रम प्रवेश किया। डेली हिंदी मिलाप में गंगाराम जी के वानप्रस्थ आश्रम पर एक अग्रलेख लिखा था। यह लेख हम सबको जीवन का नया संदेश देता है। वानप्रस्थ प्रवेश जीवन एक नए अध्याय की शुरुआत है।

गंगाराम जी ने आर्य समाज में जो सुधार लेकर आये वे सराहनीय है। जीवन की अंतिम सांस तक आर्य समाज के माध्यम से भारतीय संस्कृति और मूल्यों को बढावा देते रहे। जीवन में चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना किया। महान मूल्यों को स्थापित किया। कभी हार स्वीकार नहीं की। आगे बढते ही रहे। जाति आधारित भेदभाव और अस्पृश्यता के खिलाफ गंगाराम जी की लड़ाई सबके लिए अनुकरणीय है। मूल्यों, समानता, न्याय, बंधुत्व और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष भावी पीढ़ी को संदेश देते है।

पं. गंगाराम जी का सारा जीवन समाज सेवा और राष्ट्रोत्थान में ही बीता। अनेक लोगों के प्रेरणा स्त्रोत रहे। निष्ठापूर्वक आर्य संगठन का उचित पथ प्रदर्शन किया। गंगाराम जी की सेवाएं इतिहास की सुरक्षित निधि बन चुकी हैं। नए भारत के निर्माण संकल्प के साथ जुडे गये हैं। शिक्षा, बलिदान और आदर्शों से सीख लेकर हम निश्चित रूप से भारत के नवनिर्माण को साकार कर सकते है। ऐसे महान पंडित गंगाराम जी 25 फरवरी 2007 को निधन हुआ। उनके दिखाये गये राह पर चलने के लिए संकल्प लेना ही पं. गंगाराम वानप्रस्थी जी को सच्ची श्रध्दांजली है। विश्वास है कि स्वतंत्रता सेनानी पण्डित गंगाराम स्मारक मंच भी इस कार्य के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगी।

लेखिका डॉ के संगीता व्यास
हिंदी विभाग उस्मानिया विश्वविधालय हैदराबाद

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