स्वतंत्रता दिवस-2021 पर विशेष: किसान और मजदूरों को प्रमुखता दें आजादा देश

संपादकीय

आज देश 75वां स्वतंत्रता दिवस (अमृत महोत्सव) मना रहा है। इन 74 सालों को थोड़ा पीछे मुड़कर देखे तो पता चलता है कि आज हम कहां हम कहां पर है। 1947 में देश की 33 आबादी करोड़ थी। आज देश की आबादी 138 करोड़ है। देश में किसान 70 फीदसी थी। आज 50 फीसदी से कम है। हां यह सच है देश विकास कर रहा है। मगर विकास का फल किसान और मजदूरों को नहीं मिल रहा है। केवल 20 फीसदी पूंजीपतियों के पास देश की संपत्ति केंद्रीत है।

आजाद देश की राजधानी दिल्ली की सीमा पर पिछले नौ महीने से किसान आंदोलन कर रहा है। उन आंदोलनकारियों पर लाठियां बरसाई जा रही है। इस साल में अब तक लगभग 400 किसानों ने आत्महत्या कर ली है। अन्नदाता आत्महत्या करना देश के लिए अभिशाप है। मगर हमारी सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है। ऐसा कब तक चलता रहेगा?

मजदूर रोजी-रोटी के चक्कर में दर-दर भटक रह है। इस चक्कर में फंसा मजदूर अपने बच्चों के न ठीक से खिला पा रहा है और पढ़ा रहा है। बेचारा मजदूर यह सब नसीब पर छोड़ दे रहा है और पेट भरने के लिए हालात से समझौता कर ले रहा है। हर दिन शहरों की चौराहों पर हजारों मजदूर रोजगार की तलाश में आते और निराश होकर घर लौट जाते हैं। क्या इस देश में ऐसा क्यों हो रहा है?

इस समय देश के पहले प्रधानमंक्षी प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की एक बात को याद करना जरूरी है। नेहरू ने अपने पहले भाषण (15 अगस्त 1947) में कहा था कि देश को किसान और मजदूरों के लिए कुछ करने का मौका आया है। क्या हम ऐसा कुछ कर पाये है? ढूंढने पर भी इसका जवाब सकारात्मक नहीं मिलता है। यदि कुछ किया भी गया है तो वह केवल वोट बैंक के लिए किया जा रहा है। कब होगा किसान और मजदूरों का भला?

देश के पढ़े-लिखे युवक उपाधियां लेकर नौकरी की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं। नौकरी की तलाश करते-करते उन्हें पता ही चला है कि उनकी आयु 35 साल पार हो गई हैं। एक और सरकारी संस्थानों को बंद किया जा रहा है। दूसरी ओर श्रमिक आंदोलन कर रहे हैं। उनकी समस्याएं सुनने के बजाय कुचला जा रहा है। केंद्र और राज्य सरकारें देशवासियों पर कर्ज का बोझ डालते ही जा रहे हैं। यह सब विकास के नाम पर किया जा रहा है। क्या हम इसे ही विकास मान लेें?

वहीं देश समृद्ध और विकास करेगा और कहलाएगा जिस देश में किसान और मजदूर अपने परिवार का पेट भर सके और बच्चों को पढ़ा लिखा सकें। और सरकार पढ़े-लिखे युवकों को नौकरियां दे सकें। किसी भी आजाद देश का यही मतलब निकलता है और निकलना चाहिए।

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